जब भी देखूं आईना तो धड़ से गायब सर लगे
सरकटा धड़ देख अपना सच बहुत ही डर लगे
मुझको तुम्हारी बेवफाई पर यकीं बिल्कुल न था
लेकिन मुझे करना पड़ा जब पीठ पर खंज़र लगे
डाईनिंग टेबुल के नीचे से पकड़ता रोटियां
शख्स ये सरकारी दफ्तर का कोई अफसर लगे
अल्लसुबह परमात्मा का नाम ले कर चीखना
तुम यकीं कर लो तो कर लो मुझको आडंबर लगे
दोस्तों की देख कर नज़रें इनायत 'मौदगिल'
दोस्तों से दो कदम का फासला बेहतर लगे
--योगेन्द्र मौदगिल
29 comments:
अच्छा चित्र खींचा है।
बधाई।
सार्थक रचना है, जो हमें सचेत करती है।
-Zakir Ali ‘Rajnish’
{ Secretary-TSALIIM & SBAI }
बहुत सही कहा.
रामराम.
दोस्तों की देख कर नज़रे इनायत मौदगिल
दोस्तों से दो कदम का फासला बेहतर लगे है
क्या खूब कहा यूँ तो पूरी गज़ल खूबसूरत है मगर ये सीख देती अभिव्यक्ति दिल को छू गयी आभार्
सरकारी अफसर का सही चित्रण किया है!
बेहतरीन । सबकी सच्चाई ।
'डाईनिंग टेबुल के नीचे से पकड़ता रोटियां
शख्स ये सरकारी दफ्तर का कोई अफसर लगे'
सत्य वचन !
बेहतरीन ग़ज़ल।
दोस्तों की देख कर नज़रें इनायत मौदगिल
दोस्तों से दो कदम का फासला बेहतर लगे
ये ज्यादा ही सच्चा लगा।
बहुत ही बढिया शेर लिखे हि आपने ..........विविधता है ...सुन्दर ........
दोस्तों की देख कर नज़रें इनायत मौदगिल
दोस्तों से दो कदम का फासला बेहतर लगे
सच कहा और सलीके से कहा। इसके लिये आप धन्यवाद के पात्र हैं।
मुझको तुम्हारी बेवफाई पर यकीं बिल्कुल न था
लेकिन मुझे करना पड़ा जब पीठ पर खंज़र लगे
बहुत सुंदर योगेन्दर जी होश भी तभी आती है.
धन्यवाद
बहुत खूबसूरत तरीके से सचाई बयाँ की है।
ऐसे बहुत से हैं जिनके धड़ पर सिर हैं ही कहाँ.
डाईनिंग टेबुल के नीचे से पकड़ता रोटियां
शख्स ये सरकारी दफ्तर का कोई अफसर लगे
भाई जी जिंदाबाद...एक दम नयी बात पैदा की है शायरी में...मजा आ गया पढ़ कर...आप का जवाब नहीं.
नीरज
डाईनिंग टेबुल के नीचे से पकड़ता रोटियां
शख्स ये सरकारी दफ्तर का कोई अफसर लगे
दोस्तों की देख कर नज़रें इनायत मौदगिल
दोस्तों से दो कदम का फासला बेहतर लगे
bahut khubsurat
डाईनिंग टेबुल के नीचे से पकड़ता रोटियां
शख्स ये सरकारी दफ्तर का कोई अफसर लगे
इनपर यूँ नज़र रखता है जो
हमको तो ये कवि मोदगिल लगे ....
डाईनिंग टेबुल के नीचे से पकड़ता रोटियां
शख्स ये सरकारी दफ्तर का कोई अफसर लगे
इनपर यूँ नज़र रखता है जो
हमको तो ये कवि मोदगिल लगे ....
मुझको तुम्हारी बेवफाई पर यकीं बिल्कुल न था
लेकिन मुझे करना पड़ा जब पीठ पर खंज़र लगे
बहुत बढ़िया योगन्द्र जी क्या बात है बधाई.
दोस्तों की देख कर नज़रें इनायत मौदगिल
दोस्तों से दो कदम का फासला बेहतर लगे
बहुत बढिया
जब भी देखूं आईना तो धड़ से गायब सर लगे
सरकटा धड़ देख अपना सच बहुत ही डर लगे.....
bahut khoobsoorat.
बिल्कुल सही लिखा है जी आपने....बहुत बढिया!
SAARI SACHCHAYEEYAAN KITANE SALIKE SE KAHI HAI AAPNE.... MAGAR IS SHE'R KE KYA KAHANE... BAHOT KHUBSURATI SE HAK ADAA KIYA HAI AAPNE....
दोस्तों की देख कर नज़रें इनायत मौदगिल
दोस्तों से दो कदम का फासला बेहतर लगे
BAHOT BAHOT BADHAAYEE IS SHE'R KE LIYE
ARSH
kheench laayee aapkii rachana hamein...
मुझको तुम्हारी बेवफाई पर यकीं बिल्कुल न था
लेकिन मुझे करना पड़ा जब पीठ पर खंज़र लगे
bahut sachha sher
'दोस्तों से दो कदम का फ़ासला बेहतर लगे'
बहुत कठोर पर सटीक व्यंग।
बधाई।
bahut badhiya..
Badhaai !!
दोस्तों की देख कर नज़रें इनायत मौदगिल
दोस्तों से दो कदम का फासला बेहतर लगे
आपका daarshnik andaaz भी lajawaab है guru dev............. mast लिखा है
Bahut badhiya ashaar padhne ko mile Yogendra ji. Khoobsoorat Gazal.
मुझको तुम्हारी बेवफाई पर यकीं बिल्कुल न था
लेकिन मुझे करना पड़ा जब पीठ पर खंज़र लगे
दोस्तों की देख कर नज़रें इनायत मौदगिल
दोस्तों से दो कदम का फासला बेहतर लगे
Bahut khoob !
God bless
RC
bahut badhia.....
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