नीरवता का राज यहां पर, राम भजो.
शापित बस्ती-कुंठित घर-घर, राम भजो.
लहू के छींटे दरवाज़ों पर, राम भजो.
सहम-सहमे दीवारोदर, राम भजो.
सबके माथे पर अनसुलझे प्रश्न यहां,
नहीं किसी के वश में उत्तर, राम भजो.
गांव-गांव में राज लठैतों का प्यारे,
शहर में राजा हो गये तस्कर, राम भजो.
हाथ मोतियों वाले जाने कहां गये,
अब तो हाथों-हाथों खंज़र, राम भजो.
उत्पीड़न के नये बहाने रोज यहां,
खोज रहे सरकारी अफसर, राम भजो.
राम नाम का लिये उस्तरा मूण्ड रहे,
पंडिज्जी भी भक्तों के सर, राम भजो.
आश्रम फाइवस्टार में चेले चरणों में,
और चेलियां हैं हमबिस्तर, राम भजो.
छोटे बच्चे भी नंगी तस्वीरों के,
खेल खेलते मोबाइल पर, राम भजो.
इंटरनेट ने इतना ग्यान बढ़ा डाला,
नंगे हैं सारे कम्प्यूटर, राम भजो.
पंडित,मुल्ला-क़ाजी,नेता-अध्यापक,
सब हैं सपनों के सौदागर, राम भजो.
सह ना पाई भूख वो अपने बच्चों की,
बेच गई फिर हया का ज़ेवर, राम भजो.
--योगेन्द्र मौदगिल
शापित बस्ती-कुंठित घर-घर, राम भजो.
लहू के छींटे दरवाज़ों पर, राम भजो.
सहम-सहमे दीवारोदर, राम भजो.
सबके माथे पर अनसुलझे प्रश्न यहां,
नहीं किसी के वश में उत्तर, राम भजो.
गांव-गांव में राज लठैतों का प्यारे,
शहर में राजा हो गये तस्कर, राम भजो.
हाथ मोतियों वाले जाने कहां गये,
अब तो हाथों-हाथों खंज़र, राम भजो.
उत्पीड़न के नये बहाने रोज यहां,
खोज रहे सरकारी अफसर, राम भजो.
राम नाम का लिये उस्तरा मूण्ड रहे,
पंडिज्जी भी भक्तों के सर, राम भजो.
आश्रम फाइवस्टार में चेले चरणों में,
और चेलियां हैं हमबिस्तर, राम भजो.
छोटे बच्चे भी नंगी तस्वीरों के,
खेल खेलते मोबाइल पर, राम भजो.
इंटरनेट ने इतना ग्यान बढ़ा डाला,
नंगे हैं सारे कम्प्यूटर, राम भजो.
पंडित,मुल्ला-क़ाजी,नेता-अध्यापक,
सब हैं सपनों के सौदागर, राम भजो.
सह ना पाई भूख वो अपने बच्चों की,
बेच गई फिर हया का ज़ेवर, राम भजो.
--योगेन्द्र मौदगिल
27 comments:
ज़माने की सही तस्वीर....
इतना सबकुछ कैसे समेट लेते हैँ आप अपनी एक-एक रचना में?
पंडित मुल्ला काजी नेता अध्यापक
सब हैं सपनों के सौदागर, राम भजो
बहुत खूब..जोरदार रचना।
BAKHUBI LAGAYAA AAPNE KAS KE TAMAACHA IS BAARGI BHI SABHI KO.... BAHOT KHUB LAGI YE BYANGAATMAK RACHNA... DHERO BADHAAYEE .... SAHIB.. DHERO SADHUVAAD..
ARSH
राम भजो भाई -राम भजो .
सही तस्वीर-अच्छी शैली .
सुंदर अति सुंदर।
राम भजो
वाह वाह योगी बड्डे,
बहुत ही ग़ज़ब कहा आपने भाई, मज़ा आ गया।
लीजिए हमारी जानिब से भी दो शेर आपकी कविता का सम्मान करते हुए--
नंगे आएँ नंगे जाँए राम भजो,
नंगेपन से सब सुख पाएँ, राम भजो
जब चुनाव हो जाएँ, भजना राम तजो
जब चुनाव आ जाएँ, फिर से राम भजो
गुरु देव........
राम भी भजाया ..........वो भी अपने ही अंदाज़ में. आपके लिखने का अंदाज़ अब क्या कहें....चरण छूने को मन करता है
बहुत खूब. एकबार हम कर्ज वसूलने एक गाँव गए थे. जिससे भी मिलूं वही कहता राम भजो. सतनामियों की बस्ती थी. हम राम भजते रह गए.
आश्रम फाइवस्टार में चेले चरणों में,
और चेलियां हैं हमबिस्तर, राम भजो.
छोटे बच्चे भी नंगी तस्वीरों के,
खेल खेलते मोबाइल पर, राम भजो.
बहुत ही कडबा सच आप ने अपनी कविता मै ऊडेल दिया, लेकिन आज का यह सच है,
बहुत बहुत धन्यवाद
isi ko kahte hain bhigo bhigo kar maarna. wah maudgil ji jawaab nahin aapka, aapki rachna ka. wah..............
मौदगिल जी बिल्कुल सही और सच्चाई को मददेनजर रखते हुए रची है यह रचना आपने बिल्कुल समाज को आईना दिखाया है आपने बेहद खूब
बहुत बहुत धन्यवाद
राम भजो जी राम भजो. घणी बढिया भाई.
रामराम.
raam ka naam to gaali bana diya hai, raam ke rahne ke liye ek adad ghar tak nahi, dilon men rakhte hain lekin mandir nahi de sakte, hamne to desh ki buniyaad hi raam aur krishna tatha vedon se suni thi, lekin raam ko gaali do aur vote pao, yahi ban gaya hai raam ka naam, ram ke naam lene se jyada vote to gaali dene par milte hain.
बहुत बढ़िया लिखा है।
आपकी इस गज़ल के हम पुराने मुरीद रह चुके हैं प्रभु...
bahut sahi khaaka khincha hai Naye zamaane ka...is ghazal mein.
मौदगिल जी,गजल तो वाकई में वाह्! वाह्! की अधिकारिणी है, लेकिन आपसे एक शिकायत है कि कम से कम जान पहचान के नाते ही पंडितों को बख्श देते......
राम भजो!
सच कहा है - निर्बल के बल राम!
बहुत ही कडबा सच आप ने अपनी कविता मै ऊडेल दिया, लेकिन आज का यह सच ही जादू बन सर्वत्र सर पर नाच रहा है और सभी आये दिन इससे दो-चार हो रहें हैं.
फिर भी हम तो ठहरे ब्लागी , सो कह रहें हैं ................
समझ न पाया ग़ज़ल कभी इन मस्तानों की
कह गया मुक़र्रर यूं ही आकर, राम भजो
सुन्दर, आँख खोलती, अलख जगाती, गुदगुदाती आपकी इस ग़ज़ल पर कौन यूं ही मुक़र्रर कहेगा, जो कहेगा दिल से ही कहेगा.
मुक़र्रर ! मुक़र्रर !! मुक़र्रर !!!
चन्द्र मोहन गुप्त
बहुत ही बढ़िया
बडी सुरीली गजल कही है राम भजो।
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तस्लीम
साइंस ब्लॉगर्स असोसिएशन
bahut sundar ... uttam
bahut sundar ... uttam
क्या बात है मौदगिल जी मज़ा आ गया आपकी रचना पढ़कर। साले जो जूते के हक़दार है उन्हें जूता ही मारना चाहिए। सच में बहुत ख़ूब है आपकी रचना।
पंडित वत्स जी, राइटर की कोई जात नहीं होती। न ही कोई धर्म होता है। उसका एक ही धर्म और एक ही जात होती है, वो है लिखना और अपने शब्दों से प्यार करना।
वैसे लिखने वाले भी पंडित ही हैं। हा.....हा....हा...
और हां मौदगिल साहिब जब चाहे आ जाएं। गिलास भी हैं, बोतल भी और हम भी।
टिपियाने के लिए शब्द ना मिल पाए
इतना ही कह देते हैं अब - राम भजो
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