आप सब को नमन करता हूं
विषयांतर करता हुआ अन्यान्य विषय समेटे एक ग़ज़ल आप सभी को समर्पित करता हूं
मन में खुशियां हो तो लगता, है आंखों का तारा चांद.
विरही मन को लगता ऐसे जैसे हो अंगारा चांद.
पिया गये परदेस वहीं के हो बैठे तुम बतलाऒ,
करवाचौथ कहां से लाए अपने लिये उधारा चांद ?
आदम ने अब खोज लिये हैं रस्ते इस तक आने के,
कब तक सुथरा रह पाऊंगा सोच रहा बेचारा चांद ?
तनखा थोड़ी, खरचे ज्यादा, तिस पर बिटिया बड़ी हुई,
देख-देख कर दुनिया के ढंग कैसे करे गुजारा चांद.
प्रेम चकोरी से मिलने को सारी रात भटकता है,
मत सोचो के फिरता है बस यों ही मारा-मारा चांद.
अपने-अपने भाग मौदगिल किसे दोष दें बतलाऒ,
पूनम को बेटे सा लगता विरहिन को हत्यारा चांद.
--योगेन्द्र मौदगिल
विषयांतर करता हुआ अन्यान्य विषय समेटे एक ग़ज़ल आप सभी को समर्पित करता हूं
मन में खुशियां हो तो लगता, है आंखों का तारा चांद.
विरही मन को लगता ऐसे जैसे हो अंगारा चांद.
पिया गये परदेस वहीं के हो बैठे तुम बतलाऒ,
करवाचौथ कहां से लाए अपने लिये उधारा चांद ?
आदम ने अब खोज लिये हैं रस्ते इस तक आने के,
कब तक सुथरा रह पाऊंगा सोच रहा बेचारा चांद ?
तनखा थोड़ी, खरचे ज्यादा, तिस पर बिटिया बड़ी हुई,
देख-देख कर दुनिया के ढंग कैसे करे गुजारा चांद.
प्रेम चकोरी से मिलने को सारी रात भटकता है,
मत सोचो के फिरता है बस यों ही मारा-मारा चांद.
अपने-अपने भाग मौदगिल किसे दोष दें बतलाऒ,
पूनम को बेटे सा लगता विरहिन को हत्यारा चांद.
--योगेन्द्र मौदगिल
29 comments:
बहुत सुंदर , हमेशा की तरह .
wah maudgil ji , chand ke alag alag roop dikhaye hain , bahut khoob.phir wahi baat dohraunga, ek se badhkar ek chand.
hamesha ki tarah kaabil-e.daad... bahot hi badhiya...badhaayee
arsh
waah lajawab,chand ko alag alag bhavo mein prastut kiya sunder
तनखा थोड़ी, खरचे ज्यादा, तिस पर बिटिया बड़ी हुई,
देख-देख कर दुनिया के ढंग कैसे करे गुजारा चांद.
प्रेम चकोरी से मिलने को सारी रात भटकता है,
मत सोचो के फिरता है बस यों ही मारा-मारा चांद.
behtarin sher lage ye.vakai agar gazal ki nabz koi janta hai to aapki kalam.waah
हमेशा की तरह...लाजवाब
विरही मन को लगता ऐसे जैसे अंगारा चाँद....
" ये एक लाइन जैसे विरह मन का दर्पण बन गयी है....बेहद शानदार..'
Regards
बहुत सुन्दर , लाजवाब
aap laajawab kar dete hain.
बहूत ही सुन्दर...भावः पूर्ण ग़ज़ल है, आपका बदला हुवा रूप, हंसते हुवे इंसान में भावुक धड़कते हुवे दिल का एहसास कराता है
अब चांद की बातें मैं तुमको क्या बतलाऊं
पढ़ने वाले को लगता लिखने वाला प्यारा चांद
बाबियो तुसीं आवो तां सही। सारा जलंधर तुहाडी सेवा च न ला दइए तां आखियो। बाकी पैग दे नाल शबाब तों इलावा जो कहोंगे सो होवेगा।
हा...हा...हा...
लाजवाब्! अंतिम पंक्तियों ने तो पूरी गजल में ही चार चांद लगा दिए....
मन में खुशियां हो तो लगता, है आंखों का तारा चांद.
विरही मन को लगता ऐसे जैसे हो अंगारा चांद.
तनखा थोड़ी, खरचे ज्यादा, तिस पर बिटिया बड़ी हुई,
देख-देख कर दुनिया के ढंग कैसे करे गुजारा चांद.
बहुत खूब ! आपने तो राही मासूम रज़ा की कृति हम तो गए परदेश में देश में निकला होगा चाँद की याद दिला दी।
वाह योगेन्द्र जी....वाह !!!!
पूनम को बेटे सा लगता विरहिन को हत्यारा चांद
बहुत सुंदर सर
khoob...! poora dukh aur adha chand ki yaad bhi aayi
बहुत सुंदर..भावः पूर्ण ग़ज़ल है.
'कब तक सुथरा रह पाऊंगा…'
बहुत सुन्दर।
आदम ने अब खोज लिए हैं रस्ते इस तक आने के
कब तक सुथरा रह पाऊंगा सोंच रहा बेचारा चंदा
आदमी की गंदी हरकत के नजारे ऊपर से देख-देख बेचारे चंदे पर क्या बीत रही होगी इसको बहुत ही खूबसूरती से बयाँ कर आपने आदमी को भी अनजाने अपनी हरकतों पर विचार करने को प्रेरित किया है.
सुन्दर ग़ज़ल प्रस्तुति पर आभार
चन्द्र मोहन गुप्त
आदम ने अब खोज लिये हैं रस्ते इस तक आने के,
कब तक सुथरा रह पाऊंगा सोच रहा बेचारा चांद ?
चाँद पर एक नई द्रष्टि डाली है अपने ,बहुत खूब .
sudra rachna hai....
आज आप ने विषय बदल कर एक नयी भाव भरी बहुत ही सुन्दर ग़ज़ल प्रस्तुत की है.
सभी शेर पसंद आये.
Kya tarif karun....Umda !!
दैनिक हिंदुस्तान अख़बार में ब्लॉग वार्ता के अंतर्गत "डाकिया डाक लाया" ब्लॉग की चर्चा की गई है। रवीश कुमार जी ने इसे बेहद रोचक रूप में प्रस्तुत किया है. इसे मेरे ब्लॉग पर जाकर देखें !!
"aadam ne jab khoj liye hain
raste iss tak aane ke ,
kab tak suthraa reh paaega
soch rahaa bechara chaand."
huzoor ! bahut hi achhi aur steek
chinta darshaaee hai aapne apni iss
aitihaasik rachna ke maadhyam se...
aur.....
poonam ko bete sa lagta,
bir`han ko hatyara chaand.
jawaab nahi ....ek-dm uttam.
badhaaee . . . .
---MUFLIS---
Awesome. Uncomparable!
चाँद के बहाने आपने जीवन के सत्य को बखूबी बयाँ किया है।
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तस्लीम
साइंस ब्लॉगर्स असोसिएशन
फिर एक सुन्दर रचना के लिए साधुवाद.
बहुत खूब कहते हैं आप। हर रचना होती है लाजवाब।
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तस्लीम
साइंस ब्लॉगर्स असोसिएशन
seeyaasee fizaa se door ho jab chaand,mouz kare masti kare binaa bhatke chaand.jhallevichar.blogspot.com
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