उसके तेवर में बदज़बानी है.
लगता है बात खानदानी है..
उस के हाथों में राजरेखा सी,
उस की आँखों में राजधानी है..
पेट भर के वो भूख पर चीखा
देख पानी भी पानी-पानी है..
एक दिन रिश्ता हो ही जाएगा,
मैं भी राजा हूँ, वो भी रानी है..
पर हैं गिरवी मगर परिंदों ने,
आसमां नापने की ठानी है..
--योगेन्द्र मौदगिल
15 comments:
मौदगल जी
बहुत सुन्दर ||
गिरवी पर तब भी हौसला है आसमान नापने का |
बधाई ||
आपने निशब्द कर दिया..
एक दिन रिश्ता हो ही जाएगा,
मैं भी राजा हूँ, वो भी रानी है..
सभी अशआर लाजवाब हैं.....बहुत खूब.
पेट भर के वो भूख पर चीखा
देख पानी भी पानी-पानी है..
रोमांचित कर देने वाली ग़ज़ल...
वाह
पर हैं गिरवी मगर परिंदों ने,
आसमां नापने की ठानी है..
खूबसूरत गज़ल...
आसमाँ नाप के दम लेंगे हम।
पर हैं गिरवी मगर परिंदों ने,
आसमां नापने की ठानी है..
Bahut kux kah diya sir apne.
Badhai.
Hamre yaha bhi padhare.....hame bahut klhusi hogi.
बहुत सटीक रचना, शुभकामनाएं.
रामराम.
पर हैं गिरवी मगर परिंदों ने,
आसमां नापने की ठानी है..
मौदगिल साहब! इन दो लाइनों के ज़रिये बहुत बड़ी बात कह गए हैं आप....
उसके तेवर में बदज़बानी है.
लगता है बात खानदानी है..
...बहुत खूब.
देख पानी भी पानी-पानी है..
बदिया .
भाई योगेन्द्र जी बहुत सुन्दर गजल बधाई |
भाई योगेन्द्र जी बहुत सुन्दर गजल बधाई |
भाई जी..जय हो
नीरज
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