कुछ मुक्तक
आस छल रहा कोई उल्लास छल रहा.
रिश्तों में पैठ कर कोई विश्वास छल रहा..
क्या दोष है धरती का कोई मुझको बताए,
बादल दिखा-दिखा के जो आकाश छल रहा..
सहमे हुए से लोग हैं और घर भी मौन है.
दहशत है पंछियों में तो कोटर भी मौन है..
ये किसने बदल डाले हवाओं के रास्ते,
धरती भी मौन हो गई अम्बर भी मौन है..
इस देश की पहचान थी लंगोट का चलन.
पर धीरे-धीरे आ गया जी वोट का चलन..
फिर इस के बाद नोट जो आए तो हो गया,
देखते ही देखते विस्फोट का चलन..
जीने का नया ढंग कोई पालिये जनाब.
सिक्के को फिर से आप ही उछालिये जनाब..
अवसर के इंतज़ार में ना वक़्त टालिए,
यों गलतियों को भाग्य पे ना डालिए जनाब..
समलिंगियों ने चैट को बदरंग कर दिया.
खुद को भी किया दूसरों को नंग कर दिया..
हे फेसबुक के यूजरों खुद को संभाल लो,
तुमने तो कामदेव को भी दंग कर दिया..
--योगेन्द्र मौदगिल
20 comments:
तुमने तो कामदेव को भी दंग कर दिया..
बधाई ||
अच्छे भाव ||
इतनी गजब और सशक्त अभिव्यक्ति पढ़ हम भी दंग रह गये।
waah !
सहमे हुए से लोग हैं और घर भी मौन है.
दहशत है पंछियों में तो कोटर भी मौन है..
ये किसने बदल डाले हवाओं के रास्ते,
धरती भी मौन हो गई अम्बर भी मौन है..
कमाल के भाव लिए है रचना की पंक्तियाँ .......
क्या दोष है धरती का कोई मुझको बताए,
बादल दिखा-दिखा के जो आकाश छल रहा..
बहुत बढिया
प्रणाम
सारे मुक्तक में एक संदेश...शुक्रिया और बधाई
बहुत बढ़िया मुक्तक लिखे हैं भाई साहब . बधाई
इस देश की पहचान थी लंगोट का चलन.
पर धीरे-धीरे आ गया जी वोट का चलन..
फिर इस के बाद नोट जो आए तो हो गया,
देखते ही देखते विस्फोट का चलन..
बहुत उम्दा लाइनें,आभार.
waha....har shabd apne aap mei ek arth liye huye
bahut khub .....aabhar
सोचने पर मजबूर करते मुक्तक ... अच्छी प्रस्तुति
जीने का नया ढंग कोई पालिये जनाब.
सिक्के को फिर से आप ही उछालिये जनाब..
अवसर के इंतज़ार में ना वक़्त टालिए,
यों गलतियों को भाग्य पे ना डालिए जनाब..
behtareen
Modgil sahab dil to kar raha hai ye kriti aapke mukhravind se apki hi awaaz me sunu to sone pe suhaga ho jaye. maza aa gaya aaj ki aapki is abhivyakti ko padh kar. bahut hi sashakt lekhan hai.
लाजवाब मुक्तक।
आप हमेशा सार्थक रचते हैं।
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बेहतर लेखन की ‘अनवरत’ प्रस्तुति।
अब आप अल्पना वर्मा से विज्ञान समाचार सुनिए..
बहुत लाजवाब, शुभकामनाएं.
रामराम.
आज आपने समलैंगिये नाराज़ कर दिए :)
फेसबुकियों (कुछ) को नाराज कर दिया...शानदार मुक्तक...
बहुत खूब...लाजवाब रचना...
शब्दों के सिद्ध कशीदाकार हैं आप...
जीने का नया ढंग कोई पालिये जनाब.
सिक्के को फिर से आप ही उछालिये जनाब..
अवसर के इंतज़ार में ना वक़्त टालिए,
यों गलतियों को भाग्य पे ना डालिए जनाब..
Bahut khoobsoorat rachna hai.
aabhar
fani raj
वाह गुरुदेव ... आज तो लाजवाब छंद हैं सभी ,... गहरे भी बहुत ...
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