आप सब को
प्रणाम निवेदित करता हूँ
इस बार का कविसम्मेल्नीय सत्र कुछ लम्बा चला.
इस बीच दिल्ली, कुरुक्षेत्र व् पंचकूला सहित कुछ और यात्राएं रही...
पानीपत में बिजली का कहर भी रहा.. और घरेलु व्यस्तताएं भी.....
इन सब के बीच
अपने स्वास्थ्य से लोहा लेता मैं
एक बार पुन: आप सब के बीच
तीन दोहों के साथ उपस्थित हूँ..
तीन दोहे आते वसन्त के नाम
वासंती संवेदना सुंदर रूप अनूप
रितुगंध अठखेलियाँ काम मोक्ष का रूप
कलकल बहते नीर का शोर सुखद स्वछन्द
प्रेम सुधा का कूल ज्यों रति-मदन आनंद
जय वसन्त जय जय वसन्त ऋतुकुंवर ऋतुराज
नवल धवल नूतन सबल नव्य सनातन साज़
--योगेन्द्र मौदगिल
15 comments:
आखिर बसंत आ ही गया ..अंतिम दोहा बहुत पसंद आया
रंग बसन्ती आ ही गया..
स्वागत वसन्त।
बहुत खुब जी आप के दोहो मे भी बसंत के रंग झलक रहे हे, धन्यवाद
देर ही सही पर आप आए हो एकदम नई ताज़गी लिए. पुर्नस्वागत.
जय हो...
ज़नाब हमें बताते तो श्रोताओं में हम भीं आते ।
फ़िलहाल बसंत ऋतु की शुभकामनायें ।
बहुत सुंदर ....बसंत का स्वागत
वाह वा वाह वा ....
आनंद आ गया ! स्वस्थ्य खराब हो आपके दुश्मनों का ...शुभकामनायें
भाई जी आपकी जय हो...बसंत के दोहे पढ़ कर आनंद आ गया...तीन तीरों में ही जान निकल गयी...अपने स्वास्थ्य का ध्यान रखें...हमें आपकी चिंता है...
नीरज
sundar dohe..
swagat hai basant ka..
दोहों द्वारा वसंत का बेहतरीन स्वागत !
bahut khoon
bashant ka dili swagat.
बहुत सुन्दर!
PRANAM !
dohe padha kar aanad aaya .
saadar
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