विलंबित प्रणाम स्वीकारें और एक छंद पढ़ें
चन्दन, तिलक, रौली, हल्दी, सिन्दूर-
श्रृंगार श्रृंखलाओं को उठा-उठा के झूमिये.
चन्दन, तिलक, रौली, हल्दी, सिन्दूर-
श्रृंगार श्रृंखलाओं को उठा-उठा के झूमिये.
प्राण, देह, धन, अभिमान, यश, गौरव की,
गाथाओं को भले आप रोज-रोज चूमिये.
पीर व् फकीर, साधू-संत, देवी-देवताओं,
भूत व् भविष्य को घुमा-घुमा के घूमिये.
माटी-वंदना से बड़ी कोई वंदना नहीं है,
इसी वंदना को बस गाते-गाते झूमिये..
-- योगेन्द्र मौदगिल
14 comments:
जीवन की मौज, माटी की प्रार्थनाओं में ही है।
सचमुच माटी वंदना से बड़ी कोई वंदना नहीं है !
सुन्दर शब्द संयोजन के साथ पंक्तियों में निहित गहन भाव छन्द को बहुत प्रभावी बना रहे हैं !
साधुवाद
सत्य वचन भाई जी...आपके लेखन का अंदाज़...बस जी कमाल का है...
नीरज
वाह वाह बहुत सुन्दर और सटीक वंदना।
बहुत ही sahi kaha....
seekh detee hitkaaree sundar रचना...
एकदम सही बात कही आपने !
सफल वहीं है हर साधना,
जहां माटी की हो अराधना !
माटी वंदना से बढ़कर और कौन सी वंदना हो सकती है ?
भारत की माटी , माटी कहाँ ?
सुन्दर छंद के लिए साधुवाद
bhawpoorn rachna ke liye hardik badhai.
बिल्कुल सही कहा भाई.
रामराम.
अन्त में माटी ही में मिलना है.
वाह जी सब से बडी ओर अच्छी वंदना तो माटि की वंदना ही होगी, क्योकि इसी से जन्मे इसी मे मिल जाना हे, आप से सहमत हे जी धन्यवाद
क्या खूब लिखा है,अति सुंदर,आभार.
क्या खूब लिखा है,अति सुंदर,आभार.
प्रियवर योगेन्द्र मौदगिल जी
सादर सस्नेहाभिवादन !
सहमत हूं । मैं स्वयं मिट्टी की वंदना के गीत और छंद कवि सम्मेलनों में पढ़ता हूं ।
♥♥ प्रेम बिना निस्सार है यह सारा संसार !
♥ प्रणय दिवस मंगलमय हो ! :)
बसंत ॠतु की हार्दिक बधाई और शुभकामनाएं !
- राजेन्द्र स्वर्णकार
माटी-वंदना से बड़ी कोई वंदना नहीं है,
इसी वंदना को बस गाते-गाते झूमिये..
सत्य वचन गुरु देव ।
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