दादा दिनेश राय द्विवेदी की हार्दिक इच्छा थी कि कचैहरी के सामने भी आईना रखा जाये उन के आदेश पर मैंने प्रयास भर किया है विश्वास है कि दादा के साथ-साथ आप सब भी मेरा समर्थन करेंगें
लंपट, चोर, लुटेरे, डाकू मिलते यार कचैहरी में
कैक्टस भी चंपा के जैसे खिलते यार कचैहरी में
कानून की आंखों पर पट्टी है, काले भेस वकीलों के,
झूठी कसमें, झूठे वादे मिलते यार कचैहरी में
जज साहब को जूता चहिये लेकिन खालिस चांदी का,
फाइल-पेपरवेट तभी तो हिलते यार कचैहरी में
कानून की सौदेबाजी, घपले, डुप्लीकेट रजिस्ट्रेशन
काले गोरखधंदे सारे मिलते यार कचैहरी में
लुटे-पिटे को और लूटते, आड़-धौंस कानूनों की
वरदी और गुंडे गलबहियां मिलते यार कचैहरी में
शोषण की तकनीकें सारी होती हैं ईज़ाद यहीं
तस्कर-अफसर-रंडी-गुंडे मिलते यार कचैहरी में
--योगेन्द्र मौदगिल
25 comments:
बहुत सटीक!
बहुत सटीक तस्वीर खींची कचहरी की मौदगिल साहब !
लिखा तो बिल्कुल ठीक है, लेकिन वकील साहब की सलाह भी ले लीजिये, कहीं कोई जज साहब नाराज न हो जायें....
बहुत ही तीखे रूप में कड़वे सच को उगलती आपकी ये रचना बहुत पसंद आई...
बड़ी दुखद और शर्मनाक स्थिति है ये इंसानियत और न्याय को जिन्दा रखने के लिहाज से ,कुछ सोचिये सब मिलकर इसको कैसे बढ़ने से रोका जय |
आह मी लार्ड, कंटेप्ट आफ़ कोर्ट को बुलावा !
karara tamacha maara hai sir...
आपने तो बिल्कुल ही डरा दिया, कचहरी में ।
वाह !! क्या बात है !! सर जी कचहरी में आना जाना लगा रहता है क्या ?
कचहरी का ऐसा रूप ?????/ आपने आँखें खोल दीं....हर जगह भ्रष्टाचार है
कच्ची नॉलिज, हरी पत्तियाँ, चेहरे लाल गुलाबी हैं,
इंद्र्धनुष है न्याय का काला देखो यार कचेहरी में.
एक गणितीय समीकरण बन गई है कचेहरी
कच्ची + हरी = कचेहरी
(हरी नोटों की पत्तियाँ)
कच्ची + चेहरे = कचेहरी
थाना और कचहरी - शायद भगवान् भी डरता है वहां जाने से इसीलिये वहां के लोग बेख़ौफ़ काम कर पाते हैं
kya sach me hu-b-hu yahi picture hai kach-heri ki? vishwas puri tarah se nahi ho pata.
acchhi rachna.
@ संवेदना के स्वर
कच्ची नॉलिज, हरी पत्तियाँ, चेहरे लाल गुलाबी हैं,
इंद्र्धनुष है न्याय का काला देखो यार कचेहरी में.
आपने बढ़िया पंक्तियां प्रतिक्रिया में दी
मुझे प्रसन्नता हुई किंतु उन्हें मैं लिखता तो यों लिखता
ऒछी नॉलिज, हरी पत्तियाँ, चेहरे रंगे सियारों से,
इंद्र्धनुष भी काले-भूरे खिलते यार कचेहरी में.
@ अनामिका जी
आपको कभी कचैहरी से दो-चार होना नहीं पड़ा होगा इसलिये आपको संशय है यद्यपि अपवाद रूप में कुछ प्रतिशत इसका ठीक उलट भी होता है
विडम्बना यह है कि देश में सर्वाधिक भ्रष्टाचार के बड़े अड्डे न्यायालय परिसर, तहसील परिसर ही हैं
आपने पिछली टिप्पणी में जो प्रश्न किया था वो भी याद आ गया
मैं पानीपत के सैक्टर १२ में रहता हूं मेरा मोबाइल नं है ०९८९६२०२९२९
अच्छा है बहुत कुछ ऐसा है ..परन्तु फिर भी न्याय-और कानून जैसे शब्द पूरी तरह अभी नहीं मरे ...कभी-कभी गर्म सांस भी लेते है ,,,,अच्छी प्रस्तुति धन्यवाद ...blog par aakar achha laga
aaaaadrniy yogendr modgil ji achchaa likhaa or sch likhaa lekin aesaa likh kr raajsthaan men pehle india today ke aek reportr contempt of court act men szaayaab hkr maafi maang kr bdhi muskilon men bche hen . akhtar khan akela kota rajasthan
maudgil ji shukriya mere prashno ka jawab dene k liye. aur mere blog par apna samay dene k liye.
गुरुवर,
वास्तव में ‘कचहरी’ शब्द का विग्रह करके उन शब्दों को अपनी पंक्तियों में समेटने का प्रयास किया है... अतः ‘कच’ से कच्ची नॉलिज लिखा, ‘हरी’ से हरे नोटों की पत्तियों से चलता कारोबार एवं इन हरी पत्तियों के खाने से ‘चेहरे’ का खिला गुलाबी रंग...
आपका आशीष शिरोधार्य!!
हर शेर ... धमाके दार आवाज़ में मारा चाँटा है ... गूँज रा है हर शेर कोने कोने में ... ग़ज़ब है सर ...
वाह जी वाह आप ने तो बौत अच्छे से गुण गान कर दिया कचहरी का, बहुत सुंदर धन्यवाद
@ भाई राजेन्द्र मीणा जी
आपने ठीक कहा पांचो ऊंगलियां बराबर नहीं होती. अपवाद हर क्षेत्र में होते हैं. मैंने तो कुछ प्रचलित ढर्रों का जिक्र भर किया है. इस देश में वैसे भी सच बोलना ठीक नहीं है.
@भाई अकेला जी
आपकी बात भी सच है. ठीक है. मेरी चिंता के लिये शुक्रिया अदा कर आपके प्रेम को हल्काऊंगा नही. स्नेह-भाव बनाए रखें.
@भाई संवेदना के स्वर जी
आपका नाम पता लग जाता तो sambodhan me आसानी हो जाती. मेरी पिछली टिप्पणी फिर पढ़े. मैंने आपके लिखे को कतई गलत नहीं kaha था. मेरा aashay तो यह था कि मैं लिखता तो ऐसा लिखता.
बहुत खूब! सुन्दर कचहरी कथा सुनाई आपने।
योगेन्द्र जी, कुछ अतिरेक हो गया है। लेकिन कवि को इतनी छूट तो होती है। रचना अच्छी है। कचहरी में कुछ भली बातें भी होती हैं। पर इतनी कम कि दिखाई देंगी भी नहीं। वस्तुतः आज कचहरियाँ न्याय का प्रतीक न हो कर लोगों को चक्रव्यूह में फंसाने का माध्यम हो गई हैं। इस का बहुत बड़ा श्रेय हमारी सरकारों को जाता है जो पर्याप्त संख्या से चौथाई अदालतें भी स्थापित नहीं कर सकीं हैं। देरी से न्याय का अर्थ है न्याय नहीं। और यही हो भी रहा है।
bahut achchi rachna.badhai...
bahut achchha laga.
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