तन का क्या विश्वास रे जोगी
तन तो मन का दास रे जोगी
भगवे में भगवान बसे हैं
जटा-जूट विन्यास रे जोगी
उर्मिल पूछ रही लछमन से
कौन दोष मम् खास रे जोगी
जाम-सुराही छूट गये सब
छूट गया अभ्यास रे जोगी
सूरज, चंदा, जुगनू, तारे
किस को, किस की आस रे जोगी
तितली, भंवरे, कोयल, खुशबू
किस को दुनिया रास रे जोगी
मंत्र, मणि, मंदिर, मर्यादा
मन, माया, मधुमास रे जोगी
पाहुन, कुत्ता जांच रहा है
कुत्ता, पाहुन-बास रे जोगी
जे विध राखे राम-रमैय्या
सो विध खासमखास रे जोगी
गंगा गये सो गंगादासा
जमना, जमनादास रे जोगी
कूएं में गूंगी परछाई
जगत पे अट्टाहास रे जोगी
मैच अभी है शेष मौदगिल
अभी हुआ है टास रे जोगी
--योगेन्द्र मौदगिल
19 comments:
कुंये में गूंगी परछाई,
जगत में अट्टाहास रे जोगी
सबसे बढ़िया मुझे ये पंक्तियां लगीं...
तन का क्या विश्वास रे जोगी
तन तो मन का दास रे जोगी
लाजवाब रचना .....जो भी शब्द तारीफ़ में कहे कम है
सटीक और सार्थक लेखन....कुएं में परछाईं...बहुत बढ़िया लगा...
मौदगिल साहब,
छा गये।
सटीक और सार्थक पोस्ट।
तन का क्या विश्वास रे जोगी
तन तो मन का दास रे जोगी
जबाब नही जी, बहुत खुब सुरत रचना धन्यवाद
भई वाह्! महाराज! क्या कमाल की गजल लिखी है....आनन्द आ गया पढकर.
khoob likhaa saabaas re jogee !
khoob likhaa saabaas re jogee !
तन का क्या विश्वास रे जोगी
तन तो मन का दास रे जोगी
-शानदार अभिव्यक्ति!! बहुत खूब महाराज!
ताऊ जी..बहुत खूब.. एक बेहतरीन ग़ज़ल.. आज की ग़ज़ल पर पढ़ चुका हूँ आज फिर से दुबारा पढ़ा आगे भी पढ़ता रहूँगा इतना बढ़िया ग़ज़ल बन पड़ी है की क्या कहूँ..बहुत अच्छी लगी....आपको ढेरों सारी बधाई...
मैच अभी है शेष ...पूरी समग्रता में बेहतरीन अभिव्यक्ति !
वाह ! बहुत बढ़िया है कविवर !!
तन का क्या विश्वास रे जोगी
तन तो मन का दास रे जोगी
बहुत सुन्दर ।
आज तो अमृतवाणी पेश की है।
bahut sundar poetry
आपकी दोनों ग़ज़लों मौ द् गि ल और जोगी ने अच्छा रंग जमाया , बधाई !
- राजेन्द्र स्वर्णकार
शस्वरं
कमाल .. बस कमाल ... बस कमाल ही कमाल कर रहे हैं सब शेर गुरुदेव .....और आखरी वाला शेर तो बब्बर शेर है ...
प्रथम आगमन पर जिस लयात्मकता से हमारा परिचय हुआ, वह अद्भुत है... जहाँ ग़ज़ल के मक़्ते पर मुस्कुराहट जन्म लेती है, वहीं सातवें शेर में वृत्यानुप्रास अलंकार का प्रयोग, एक लुप्तप्राय प्राणि के सजीव दर्शन से कम नहीं...
नमस्कार यौगेन्द्र जी,
आपने, जोगी पे बहुत अच्छे शेर निकाले हैं
सूरज, चंदा, जुगनू, तारे
किस को, किस की आस रे जोगी
भगवे में भगवान बसे हैं
जटा-जूट विन्यास रे जोगी
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