भाई सतपाल ख्याल जी ने राहत इंदौरी साहब का मिसरा ग़ज़ल कहने के लिये अपने ब्लाग
आज की ग़ज़ल पर लगाया था इस खूबसूरत मिसरे पर जो भी जैसा भी कह पाया उन्हें भेज दिया था लेकिन मिसरे का नशा दिमाग़ से उतरा नहीं सो उन्हें भेजने के बाद भी शेर होते रहे
रदीफ बदल कर नीचे प्रस्तुत कर रहा हूं, देखियेगा.......
और हां जो उस ग़ज़ल को पढ़ना चाहें वो यहां क्लिक करें.
वहां मेरे साथ श्रद्धेय प्राण शर्मा और गिरीश पंकज भी उपस्थित हैं.
आज की ग़ज़ल पर लगाया था इस खूबसूरत मिसरे पर जो भी जैसा भी कह पाया उन्हें भेज दिया था लेकिन मिसरे का नशा दिमाग़ से उतरा नहीं सो उन्हें भेजने के बाद भी शेर होते रहे
रदीफ बदल कर नीचे प्रस्तुत कर रहा हूं, देखियेगा.......
और हां जो उस ग़ज़ल को पढ़ना चाहें वो यहां क्लिक करें.
वहां मेरे साथ श्रद्धेय प्राण शर्मा और गिरीश पंकज भी उपस्थित हैं.
जंगल, मंगल-रास मौदगिल.
कुचली-कुचली घास मौदगिल.
केबल-युग ने कसर ना छोड़ी,
घर का सत्यानास मौदगिल.
अभी शेष हैं जिम्मेवारी,
कैसे लूं सन्यास मौदगिल.
देख कचहरी में चलती हैं,
हरी-हरी दरखास मौदगिल.
ताल-पोखरे-नदियां सूखी,
शेष बची है प्यास मौदगिल.
खेत-कोख में ईंटें बोते,
कंकरीट के दास मौदगिल.
बन जाते क्या गांधी बोलो
सारे मोहनदास मौदगिल
सारे मोहनदास मौदगिल
मरा नहीं आज़ाद हुआ हूं
टूटा कारावास मौदगिल
टूटा कारावास मौदगिल
बदली-बादल सुबक रहे हैं
कौन चला बनवास मौदगिल
कौन चला बनवास मौदगिल
प्यार बेचते घूम रहे हैं,
देख प्रीत के दास मौदगिल.
ठनक रहा है माथा मेरा,
बात है कोई खास मौदगिल.
--योगेन्द्र मौदगिल
26 comments:
Har bar ki tarah tez aur tikhi rachna.
अपनी बात कहने का यह अंदाज़ भी बहुत अच्छा लगा
निर्मल आनंद मिला सवेरे
कवि बड़ा है ख़ास मोदगिल।
बहुत सुन्दर लिखा है मोदगिल जी ।
बहुत खूब... छोटे-छोटे शेरों में बड़ी बात..
बहुत सुंदर ग़ज़ल! मौदगिल जी, जरा कचहरी पर ही लिख डालिए एक ग़ज़ल।
वाह क्या कहनें हैं..
@ दराल साहब नमन करता हूं... क्या खूब शेर जोड़ा है आपने.... शुक्रिया.....
@ द्विवेदी दा आपने आदेश दिया और मैंने कर दिया कचहरी को समर्पित कुछ शेर लिख डाले हैं... मंगलवार को प्रकाशित हो जाएंगें
और संध्या जी, काजल भाई कार्टून वाले, मिश्र जी और भारतीय नागरिक आप सब का भी आभार..
बहुत अच्छी प्रस्तुति।
बहुत खूबसूरत गज़ल है।
बहुत सुन्दर रचना लिखा है आपने जो प्रशंग्सनीय है! इस उम्दा रचना के लिए बधाई!
बहुत पसंद आई आपकी यह रचना....खूब कटाक्ष है...
ये पोस्ट चर्चा मंच पर ली गयी है
http://charchamanch.blogspot.com/2010/05/163.html
bahut hi badhiya ghazal rahi aap ki ..khayaal ji ke blog pe ja kar jogi bhi padh aayaa.. :) achhi lagi wo bhi rachna...
आज सुबह आपकी यह रचना पढ़ी। आनंद आ गया।
waah
मौदगिल साहब वाह वाह।
बहुत सुन्दर, बेहतरीन .... हर शेर उम्दा ... खास कर ये शेर मुझे बहुत पसंद आया -
खेत-कोख में इंटें बोते
कंक्रीट के दास मौदगिल
रश्क करूँ किस्मत पे उसकी
तू है जिसके पास मौदगिल
ऐसे कमाल के शायर के पास रहने वाले भी कमाल के लोग ही होंगे...हमारी किस्मत कब चमेगी रे भाई? बल्ले बल्ले है भाई जी ये ग़ज़ल बल्ले बल्ले...
नीरज
ओह...लाजवाब...लाजवाब...लाजवाब !!!
और क्या कहूँ ?????
लाजवाज आंदाज है जी आप का धन्यवाद
बहुत अच्छा!
वाह...लाजवाज ग़ज़ल !!!
lajawaab Gurudev ... kuch gahri baat liye ..kuch haasy ka bhaav liye ...
aapka andaaz bejod hai ... kamaal ki gazal hai ..
वाह जी वाह वाही ले गये
अरे हुज़ूर ! वाह भई वाह !! :-)
ye bhi khoob rahi.
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