टिप्पणियां गवाह हैं
कुछ पुराने मित्रों का पुनरागमन हुआ है
कुछ नए मित्र भी जुड़े हैं.
सभी को प्रणाम निवेदित करते हुए चार पंक्तियाँ सौंपता हूँ कि
नेताऒं को दूध पिलाना ठीक नहीं
नाग पंचमी रोज मनाना ठीक नहीं
किसी ने खादी किसी ने भगवा धार लिया
जनता को इतना बहकाना ठीक नहीं
कुछ तो सालों शर्म करो नौकरशाहों
खुल्लमखुल्ला देश चबाना ठीक नहीं
गली, मोहल्ला, लोग तमाशा देखेंगें
भाई-भाई का टकराना ठीक नहीं
--योगेन्द्र मौदगिल
17 comments:
क्या बात है..कड़वा पर सच....
यही तो कमाल है आप के शब्दों का...जिसके सारा देश कायल है...बेहतरीन ताऊ जी..प्रणाम
नेताओं का बहनोई होने की बधाई!
सटीक कहा आपने !!
कुछ तो सालों शर्म करो नौकरशाहों
खुल्लमखुला देश चबाना ठीक नहीं !
ये मेरे दिल के अन्दर की बात आपने चुरा ली है !
बहुत सटीक लेखन....नागपंचमी ना ही मनाये जाये तो बेहतर है....
कम शब्द...बढ़िया धार...
कब सिखाओगे ...
बता दो मेरे यार
बहुत सही !
बहुत बहुत और बहुत ही बढ़िया मगर ये लोग आपकी बात मानेगे नहीं बहुत मोटी चमड़ी के है
कल को हम भी नेता बन सकते है
नेताओं को इतना खड्काना ठीक नहीं। :)
नाग हैं सामने दिखते हैं,
कुछ तो ऐसे हैं जो भाई कहकर
पीछे से छुरा घोंपते हैं....
खतरनाक मूड में हैं भाई !!
Netaon ko dhoodh pilana theek nahi
Nagpanchami ...
Yeh Sher sabse adhik pasand aaya!
Pranaam
RC
बहुत सुंदर जी, धन्यवाद
यथार्थ।
अलफ़ाज़ कुछ ज्यादा ही सख्त हैं.....रचनाधर्मिता में ये गाली गलौज ,तीसरे शेर में ......कुछ जँची नहीं (साफगोई के लिए माफ़ी चाहूँगा)
कुछ तो सालों शर्म करो नौकरशाहों
खुल्लमखुला देश चबाना ठीक नहीं !
Bahut sateek samyik rachna....
Sharm kahan rahi ab kuch netaon aur naukarsahon ko.... desh ko deemak ki tarah chat karne par tule hai...
Haardik shubhkamnayne
संक्षिप्त, सुन्दर और सामयिक!
Post a Comment