गेरुआ: चार व्यंग्यचित्र-------घनाक्षरी में.....
आज तीसरा
नौकरी में भूखा रहा, बिजनेस में नंगा रहा,
अक्समात् बुद्धि आई, धार लिया गेरुआ.
फिर तो ये जीवन का, दर्शन समझ लिया,
विचार-व्यवहार में, उतार लिया गेरुआ.
मेरी कामनाएं भला, मारता वो कैसे कहो,
मेरी कामनाऒं ने ही, मार लिया गेरुआ.
गेरुए से धन आया, धन से विलास आया,
और यों विलास से ही, हार लिया गेरुआ.
--योगेन्द्र मौदगिल
12 comments:
सुंदर, यथार्थ काव्य!
ये हुई न बाबा की जय..
आज कल गेरुआ एक झूठी गवाही बन गई है,
धर्म और आडंबर के साथ उपदेश, वाह वाही बन गई है,
व्यंगचित्र सत्यता के बिल्कुल पास से होकर गुजर रहे है..बहुत बढ़िया रचना...बधाई
बहुत सुंदर योगेंदर जी,आप के यह व्यंगचित्र बिलकुल सच्चे है, मेने इस बार एक ऎसे ही आश्रम को देखा, आंखो पर विशवास नही हुया,इतना बडा ओर इतना साफ़ सुधरा लेकिन मुझे यह सब आडंबर ही लगा
गेरुआ का क्या मतलब कृपया बताये
सटीक!!
गेरूआ, बाबा रे बाबा...
जय हिंद...
बाबा की जय हो...
बढिया व्यंग्य
jai ho.
bhagva bana dekhkar dijo sheesh naway --
jai ho.
यथार्थ ..... आज के सत्य को रचना में ढाल दिया गुरु देव ..........
wah karare vyangya baan.
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