गेरुआ: चार व्यंग्यचित्र

गेरुआ: चार व्यंग्यचित्र-------घनाक्षरी में.....

आज तीसरा




नौकरी में भूखा रहा, बिजनेस में नंगा रहा,
अक्समात् बुद्धि आई, धार लिया गेरुआ.


फिर तो ये जीवन का, दर्शन समझ लिया,
विचार-व्यवहार में, उतार लिया गेरुआ.


मेरी कामनाएं भला, मारता वो कैसे कहो,
मेरी कामनाऒं ने ही, मार लिया गेरुआ.


गेरुए से धन आया, धन से विलास आया,
और यों विलास से ही, हार लिया गेरुआ.
--योगेन्द्र मौदगिल


12 comments:

दिनेशराय द्विवेदी said...

सुंदर, यथार्थ काव्य!

Kajal Kumar's Cartoons काजल कुमार के कार्टून said...

ये हुई न बाबा की जय..

विनोद कुमार पांडेय said...

आज कल गेरुआ एक झूठी गवाही बन गई है,
धर्म और आडंबर के साथ उपदेश, वाह वाही बन गई है,

व्यंगचित्र सत्यता के बिल्कुल पास से होकर गुजर रहे है..बहुत बढ़िया रचना...बधाई

राज भाटिय़ा said...

बहुत सुंदर योगेंदर जी,आप के यह व्यंगचित्र बिलकुल सच्चे है, मेने इस बार एक ऎसे ही आश्रम को देखा, आंखो पर विशवास नही हुया,इतना बडा ओर इतना साफ़ सुधरा लेकिन मुझे यह सब आडंबर ही लगा

praneykelekh said...

गेरुआ का क्या मतलब कृपया बताये

Udan Tashtari said...

सटीक!!

Khushdeep Sehgal said...

गेरूआ, बाबा रे बाबा...

जय हिंद...

राजीव तनेजा said...

बाबा की जय हो...
बढिया व्यंग्य

Yogesh Verma Swapn said...

jai ho.

डॉ टी एस दराल said...

bhagva bana dekhkar dijo sheesh naway --

jai ho.

दिगम्बर नासवा said...

यथार्थ ..... आज के सत्य को रचना में ढाल दिया गुरु देव ..........

Yogesh Verma Swapn said...

wah karare vyangya baan.