एक और स्मृति-चित्र
जयपुर के महामूर्ख सम्मेलन का चित्र
मेरे दायीं और क्रमशः सुरेश नीरव (दिल्ली), सर्वेश अस्थाना (लखनऊ)
और एक ग़ज़ल भी
पैसा सब कुछ पैसा क्या ?
जयपुर के महामूर्ख सम्मेलन का चित्र
मेरे दायीं और क्रमशः सुरेश नीरव (दिल्ली), सर्वेश अस्थाना (लखनऊ)
और एक ग़ज़ल भी
पैसा सब कुछ पैसा क्या ?
देख रहा हूं दुनिया क्या ?
दीवारों को फांद ले यार,
दीवारों से डरना क्या ?
स्वर्ग यहीं है, नर्क यहीं,
आना क्या भई जाना क्या ?
देख न पाया इन्सां को,
फिर दुनिया में देखा क्या ?
फूल दिये पत्थर लेकर,
इससे बढ़िया सौदा क्या.
कहीं गेरूआ, पीत कहीं,
परदे ऊपर परदा क्या ?
फिर अपनों को ढूंढ रहा,
फिर खाएगा धोखा क्या ?
कान्हा तो मृगतृष्णा है,
क्या राधा भई मीरा क्या !
चलो 'मौदगिल' और कहीं,
हर डेरे पर रुकना क्या !
--योगेन्द्र मौदगिल
21 comments:
फूल दिए पत्थर लेकर
इससे बढ़कर सौदा क्या
सुंदर चित्र.
aadarniya moudgil ji.........
bahut achchi lagi aapki yeh ghazal....
saadar
mahfooz
मेरी रचनाएँ !!!!!!!!!
चरैवेति चरैवेति ..जी सच कहा चलते रहिये !
maoudgil ji murkh dirgha main junch rahe ho....
gazal bahut hi badhiya bus yunhi panne palattay rahiye....
मूर्खो के मेले में आपकी फोटो बहुत बढ़िया आई है..माला पहिने हुए एकदम ज़ँच रहे हैं..
रही बात कविता की तो वो हमेशा की तरह लाज़वाब....
.
अरे वाह आज तो सज रहे है माला पहन कर, बिल्कुल दुल्हे लग रहे है:) आप की कविता हमेशा की तरह लाजवाब.
धन्यवाद
हर शेर लाजवाब,एक से बढ कर एक,खासकर ,
फ़ुल दिये पत्थर लेकर,
इससे बढकर सौदा क्या।
बेहतरीन ग़ज़ल है योगेन्द्र भाई।
वहां कौन है तेरा,
'मौदगिल' जाएगा कहां...
दम ले घड़ी भर,
ये आराम पाएगा कहा...
जय हिंद...
फूल दिए पत्थर लेकर
इससे बढ़कर सौदा क्या
बहुत बढिया
मूर्खाधिपति के खिताब के लिए बधाई :)
गधा कहीं दिखाई नहीं दे रहा...शायद ताऊ के खूंटे पे बंधा होगा :)
गजल तो आपकी हमेशा की तरह से बढिया ही है ।
बहुत अच्छी ग़ज़ल है छोटी बहर पर पैनी ग़ज़ल लिखना कोई आपसे सीखे । फिर अपनों को ढूंढ रहा फिर खाएगा धोखा क्या । आपके शेरों में जो गहन व्यंग्य होता है वो शेरों से उफन उफन कर बाहर आता है । फूल दिये पत्थर लेकर इससे बढि़या सौदा क्या ।
बहुत खूब,
पैसा सब कुछ पैसा क्या
देख रहा मुझको ऐसा क्या
एक शेर हमने हमारे लिए लिखा है...आज आपको सुना रहे हैं...अपने तक ही रखना...
'मूरख' क्यूँ ढूंढें बाहर
घर का शीशा टूटा क्या
भाई जी एक बार फिर छोटी बहर में धमाके दार ग़ज़ल पेश की है आपने...हर शेर शेर नहीं सवा शेर है...ये कमाल आपके बस की ही बात है...हमारे शेर तो छोटी बहर में चिडिया घर वाले शेर हो जाते हैं जिनको चूहा भी डरा देता है...जय हो...
नीरज
चलो मोदगिल और कहीं .....
बहुत ही दार्शनिक अंदाज़ है आज ...... बहुत ही कमाल की रचना .... आपको पढ़ कर हमेशा ही अच्छा लगता है ...
सच को दर्पण दिख दिया।
पैसा सब कुछ पैसा हाँ।
------------------
और अब दो स्क्रीन वाले लैपटॉप।
एक आसान सी पहेली-बूझ सकें तो बूझें।
waah kya baat kahi hai
phir apno ko dhoondh raha hai
phir khaayega dokha kya
bahut khoobsurat baat
bahut achchee gazal hai..
waise bhi samaaj ka sach aap ki rachnaon mein bolta hai.
har sher umda hai.
देख न पाया इन्सां को
फिर दुनिया में देखा क्या ।
कान्हा तो मृगतृष्णा है
राधा क्या भई मीरा क्या ।
बहुत ही सुंदर।
'fir apno ko dhoondh raha.fir khayega dhokha kya'bahut sunder sher moudgil sahab!aajkal aap hamaare blog per nahi aate kya narazgi hai.aapka margdarshan milta rahe to khushi hogi.aapka email add den.'
yatharth ki kurupta ko sundar shabdon me lapet aapne grahneey aur vicharneey bana diya hai apni is rachna me....
Bahut bahut sundar rachna...
बहुत खूब!
फूल दिए पत्थर लेकर
इससे बढ़कर सौदा क्या
ग़ज़ल में मज़ा आ गया.
महावीर शर्मा
Post a Comment