यहां तो मूंग दलती हैं निगाहें................


पुनः एक ग़ज़ल लेकर उपस्थित हूं.... पूर्ववत् दुलार अपेक्षित....

कभी बलियों उछलती हैं निगाहें.
कभी घंटों फिसलती हैं निगाहें.

मदरसा, दैर हो थाना या कोठा,
कईं कपड़े बदलती हैं निगाहें.

अजब उद्योगपतियों का शहर है,
यहां सिक्कों में ढलती हैं निगाहें.

चलो कुछ देर आंखें मूंद ले अब,
यहां मन को मसलती हैं निगाहें.

वहीं तक का सफ़र है ठीक बंधु,
जहां तक साथ चलती हैं निगाहें.

नज़ारे दूर खो जायें कहीं तो,
यक़ीनन् हाथ मलती हैं निगाहें.

हटो, दीवार के उस पार बैठें,
यहां तो मूंग दलती हैं निगाहें.

मोहल्ला ये शरीफों का है साहेब,
यहां गिर कर संभलती हैं निगाहें.
--योगेन्द्र मौदगिल

24 comments:

M VERMA said...

मोहल्ला ये शरीफों --
वाह क्या खूब
कभी शबनमी नमी है इनमें
तो कभी अंगारों सी जलती हैं निगाहें

विवेक सिंह said...

वाह, बहुतखूब !

अजय कुमार झा said...

कभी कहकहे तो कभी देखती हैं कराहें,
आदतन मजबूर, क्या क्या न देखती हैं निगाहें..॥



क्या बात है योगेन्द्र जी ...आज सुबह सुबह निगाहों ही निगाहों मे सब कह डाला ..

राजीव तनेजा said...

एक निगाह के इतने आयाम?...कभी ध्यान ही नहीं दिया...आपकी सोच और लेखनी...दोनों को सलाम..

विनोद कुमार पांडेय said...

यहाँ हर दिन बदलती है,निगाहें,
इशारों में जहाँ के रोज ढलती है, निगाहें
कहीं परदा नही सब कुछ खुला है सामने,
हक़ीकत देख जलती है निगाहें,

तारीफ़ क्या करूँ लेखनी का.. जमाना गवाह है की आप बेहतरीन है मैं तो बस इतना कहूँगा की इन रचनाओं से मुझे बहुत कुछ सीखने को मिलता है...आभार आपका.

ताऊ रामपुरिया said...

बेहतरीन.

रामराम.

संगीता पुरी said...

बहूत खूब !!

"अर्श" said...

सारे ही शे'र खूब बन पड़े हैं,निगाहों की बातें निगाहों से कर डाली आपने , दिल ठुमक ठुमक के झूम रहा है हुज़ूर ... बहुत बहुत बधाई


अर्श

Vinay said...

wah ji bahut khoob!

डॉ. महफूज़ अली (Dr. Mahfooz Ali) said...

aapki yeh ghazal bahut achchi lagi......

bahut hi khoobsoorat aur dil ko chhoo lene wali.....

के सी said...

वाह बहुत खूब !

अजित गुप्ता का कोना said...

बढिया अंदाज है। बधाई।

Kajal Kumar's Cartoons काजल कुमार के कार्टून said...

बहुत सुंदर.

दिगम्बर नासवा said...

YE MOHALLA SHARIFON KA HAI SAAHIB ...

AAPKI GAZAL KA HAR SHER BAHOOT KUCH BOLTA HAI .... SAMAAJ KA AAINA HOTA HAI HAR SHER ...

Mishra Pankaj said...

सुन्दर कविता ......

शेफाली पाण्डे said...

bahut badhiya likha aapne....aajkal ke haalat par vyangya...

Smart Indian said...

"मुहल्ला यह शरीफों का है साहेब,
यहाँ गिर कर संभालती हैं निगाहें"

क्या बात कही है योगेन्द्र जी, वाह!

Yogesh Verma Swapn said...

maudgil ji , hamesha ki tarah phir.................lajawaab..............rachna.

Pt. D.K. Sharma "Vatsa" said...

लाजवाब.....
आभार्!

Khushdeep Sehgal said...

मूंग दलती हैं निगाहें...

वो भी छाती पर चढ़कर...

जय हिंद...

पी.सी.गोदियाल "परचेत" said...

मुहल्ला यह शरीफों का है साहेब,
यहाँ गिर कर संभालती हैं निगाहें !!

बहुत सुन्दर, मौदगिल साहब !

Sulabh Jaiswal "सुलभ" said...

नज़ारे दूर खो जायें कहीं तो,
यक़ीनन् हाथ मलती हैं निगाहें.

मुहल्ला यह शरीफों का है साहेब,
यहाँ गिर कर संभालती हैं निगाहें

उम्दा शेरो से भरी ग़ज़ल.

पंकज सुबीर said...

छोटे और पैने व्‍यंग्‍यों को पढ़ कर वहीं बात याद आ गई कि देखन में छोटे लगें घाव करें गम्‍भीर । योगेंद्र भाई आपकी रचनाओं में जो धार होती है वो सीधी उतर जाती है ।

Asha Joglekar said...

मुहल्ला यह शरीफों का है साहेब,
यहाँ गिर कर संभालती हैं निगाहें
बहुत ही बढिया क्या चोट किये हैं ।


नज़ारे दूर खो जायें कहीं तो,
यक़ीनन् हाथ मलती हैं निगाहें.
हाथ की जगह आँख हो तो ? गुस्ताखी माफ ।