मन आजकल कुछ अजीब से संशयों में हिलोरें ले रहा है..... समझ नहीं पा रहा था कि आज क्या पोस्ट करूं..... बस फिर अपना संग्रह उठाया और आंख मूंद कर जो पेज खोला............ उस पर यही ग़ज़ल थी......... आप भी देख लीजिये........................
हो आग का अहसास जो अपने बदन के बीच.
कारण तलाश यार तू अपने ही मन के बीच.
औक़ात भूल जाते हैं आग़ोश में आकर,
दहके हुए अंगार भी गंगोजमन के बीच.
ये आंख जो भी देखती है भूलती नहीं,
टिकता नहीं है मन तभी तो आचमन के बीच.
लौ जानती है शेष है अहसास का भरम,
मेरी लगन के बीच या तेरी लगन के बीच.
परियों के देश जाऊंगा मैं एक दिन जरूर,
जंग छिड़ गयी है मौदगिल अब तो सपन के बीच.
--योगेन्द्र मौदगिल
25 comments:
औकात भूल जाते हैं आगोश में आकर
दहके हुए अंगार भी गंगोजमन के बीच
अहा! बहुत सुंदर गुरूदेव!
दहके हुए अंगार भी गंगोजमन के बीच
बहुत ही सुन्दर और भावपूर्ण
वाह
गंगोजमन के बीच - अच्छे भाव की पंक्तियाँ योगेन्द्र भाई। देखिये एक तुकबंदी आपके ही तर्ज पर-
जम के मनाओ खुशियाँ पर भूलना नहीं
जीवन का ये सफर है काँटों सुमन के बीच
सादर
श्यामल सुमन
09955373288
www.manoramsuman.blogspot.com
bahut hi sunder hai rachna hai moudgil ji.
आँखे मूंद कर रचना का चयन किया ..वो भी लाज़वाब...बेहतरीन ग़ज़ल...धन्यवाद!!
बेहतरीन...और पन्ने खोलो!!!
ये कहाँ की डुबकी का अहसास है जो पीछा नही छोड़ रहा -लाजवाब !
हो आग का अहसास जो अपने तन के बीच
कारण तलाश यार तू अपने मन के बीच
क्या बात है मौदगिल साहब, बहुत खूब !
सपनों के बीच छिड़ी जंग की इस अभिव्यक्ति को पढ़ना अच्छा लगा। अच्छी गजल।
bahut hi achchee gazal hai.
aap ke liye purani hai..lekin hamne to ise aaj hi padha hai.
Akhiri sher khaas laga.
[Shail chaturvedi ji ke saath aap ki tasveer dhoondhli dikh rahi hai.]
बहुत बढिया योगेंद्र भाई,बहुत बढिया।
एक और सुंदर रचना । हर शेर अपने आप में सम्पूर्ण । लौ जानती है वाला शेर बहुत रुचा । लिखते रहें आप इसी प्रकार यही ईश्वर से कामना है ।
योगेंद्र पुराण के पन्ने यूंही रोज़ खुलते रहें,
पढ़ने वाले पढ़़-पढ़ कर निहाल होते रहें...
यही कामना है प्रभु...
जय हिंद...
भाई खजाने मे कहीं भी हाथ डाल दो हीरे मोती ही निकलेंगे.
पर मुझे चिंता इस बात की हो रही है कि आपका चित आजकल क्यों नही लगता? कहीं भौडिया ने सेवा पूजा म्ह कसर तो नही घाल राखी सै?
लगता है एक दो मेड-इन-जर्मन भिजवाने पडेंगे भाटिया जी को बोल कर.:)
रामराम.
आँखे बन्द कर के भी क्या अचूक निशाना साधा है गुरू जी आपने...
अगली बार... 'अक्कड़-बक्कड़..बम्बे बो' करके चयन कीजिएगा...इससे भी शानदार निकलेगी
kya boloon sir jee.. aap to itne mahaan insaan hain...
saari ki saari lines bahut umda, bahut badhiya...
wah wah wah bahut khoob , aap pariyon ke desh zaroor jayen lekin swapn se laden nahin.
ताऊ जी की बात ही दुहराना चाहूंगी....खजाने में जब हीरे मोटी अनमोल रत्न ही भरे पड़ें हों तो जहाँ से भी हाथ दाल निकालिएगा,कुछ अनमोल ही तो निकलेंगे....
gurudev .. aapto aankhe बंद कर भी nikaalenge तो moti ही miklega .......... naayaab moti है ये आपके pitaare से .........
औकात भूल जाते हैं आगोश में आकर
दहके हुए अंगार भी गंगोजमन के बीच
वाह क्या बात है। ऐसे ही पन्ने पलटते रहिए जी।
सही है खजाने में से तो हीरे मोती ही निकलने है ।
एक एक शेर खूबसूरत ।
ये आंख जो भी देखती है भूलती नही
टिकता नही है मन तबी आचमन के बीच ।
khubsurat rachanaa ke liye aur kya kuchh kahaa jaa sakta hai ... lau jalti rahe... yah she'r nayaab hai .. behatarin rachanaa ... bahut bahut badhaayee sahib...
arsh
बहुत सुंदर गजल लिखी आप ने , यह आप के साथ चित्र किन सज्जन का है? कही यह सज्जन गुलाटी जी तो नही?
aapki gazal ka teesra sher' 'lau janti hai shesh hai.....'achha laga.
shail ji ki ab sirf yaden hi shesh rah gayi hai.inhe yun hi sambhalkar rakhiyega.
एकदम दहकते हुए शेर कहे हैं आपने।
बधाई।
-Zakir Ali ‘Rajnish’
{ Secretary-TSALIIM & SBAI }
Post a Comment