दुनिया भर में भयंकर रिसैशन याने मंदी का दौर आया. जमीन के, शेयरों के, फ्लैटों के कम्बख्त रेट ऐसे गिरे कि जिन्होंने ईमानदारी का पैसा लगाया था बेचारे गश खा गिरे... लेकिन दोस्तों, इस भयानक मंदे में भी एक चीज ऐसी थी.... जिसके रेट जैसे थे वैसे ही रहे... रिसैशन उनका कुछ नहीं उखाड़ पाया... जानते हैं क्या......?
मैं बताऊं.....
वो चीज है नेता..
ये सुसरे पहले भी दो कौड़ी के थे और आज भी दो कोड़ी के है.....
बहरहाल एक ग़ज़ल देखें कि--
वो सियासत में जब से आए हैं.
खूब खेलें हैं, खूब खाये हैं.
रात सोने के, दिन हैं चांदी के.
वोट पाते ही गुल खिलाये हैं.
जो पराये थे दिल में आन बसे,
दिल के टुकड़े मगर पराये हैं.
बरकतें साथ चैन और सुख भी,
जिनके घर में बड़ों के साये हैं.
जुगनुऒं ने परों को तौल लिया,
खेत-खलिहान जगमगाये हैं.
सांझ उन का जवाब आ ही गया,
सांझ से बादलों के साये हैं.
आज तक हम समझ नहीं पाये,
आप अपने हैं या पराये हैं.
उल्लुऒं ने बसा लिये डेरे,
बाग़ पै गर्दिशों के साये हैं.
प्यार की बोलियां सिखाईं पर,
कटखने, काटने को आये हैं.
उसकी बातों में कितनी गहरायी,
उसकी बातों के पुख्ता पाये हैं.
--योगेन्द्र मौदगिल
27 comments:
बिलकुल माकूल बात ! ये दो कौडी के लोग मगर कहर बरपा रहे हैं !
प्रस्तावना में ही जादू कर दिया आपने !
धारदार व्यंग्य ...
नवरात्री की बहुत शुभकामनायें ..!!
जिसकी कोई नीति न हो, वो नेता
दूसरों को गिराने की रणनीति, वो राजनीति
जो हर पांच साल बाद बहकावे में आए, वो गधा...सॉरी वोटर
योगेन्द्र भाई,
आपके इतने करीब आने के बाद भी मुलाकात नहीं हुई, ये मेरा दुर्भाग्य है...
बहुत उम्दा रचना...और उतना ही बेहतरीन आगाज!
बहुत खुब , इक दम सटिक व्यंग। बहुत-बहुत बधाई,,,,,,,,,
आप की रिसेशन की बात पे आज भी उतना ही हंसा जितना की आप ने सुनाई थी जब हंसा था...
बरकतें साथ चैन और सुख भी
जिनके घर में बड़ों के साए हैं
सांझ उनका जवाब आ ही गया
सांझ से बादलों के साए हैं
भाई जी कमाल कर दिया आपने...ऐसे ऐसे शेर कह जाते हो आप की दुबारा पढ़ कर दांतों तले ऊँगली दबानी पड़ती है...पहली बार लगता है कुछ बात है और दूसरी बार पढने पर होश गम हो जाते हैं....वाह भाई जी वाह...जय हो.
नीरज
बहुत सुंदर सामयिक चित्र
बहुत ख़ूब...........झंडे गाड़ दिए भाई..........
बधाई !
बहुत बढ़िया
---
तकनीक दृष्टा
धारदार व्यंग्य !!! अतिसुन्दर रचना सदैव की भांति वाह वाह करने को मजबूर कर गयी....वाह ...
lajawaab, bemisaal.
आप अपने हैं या पराए है,
इसी उलझन में कई लम्हें बिताए है,
अब तो वो बात भी नही रही उनकी बातों में,
वादों के हालात भी डगमगाए हैं,
पर एक बात दिल से कहता हूँ, ताऊ जी,
आपकी ये रचना हमें बहुत भाए हैं....
हमेशा की तरह धारदार व्यंग्य को अपने में समेटे हुई प्रभावी रचना
इन दो कोडी के लोगो ने देश को भी दो कोडी का बनाने मै कोई कसर नही छोडी.
बहुत सुंदर
Rat soneke din hain Chandi ke
vote pate hee Gul khilaye hain
aur
sanz unka jawab aahee gaya
sanz se Badalon ke saye hain
Bahut pasand aaye
waise to gajal aap hee ka mohlla hai .
HAMESHA KI TARAH TEZ DHAAR .....
LAJAWAAB LIKH HAI GURUDEV ...
सटीक और धारदार.हर शेर पॉकेट साइज्ड डायनामाईट है.
Makta bahut khoobsoorat hai!
RC
इस रिशेशन वाली बात ने आज फिर से उतना ही हँसाया जितना उस दिन मोबाइल पर...हा! हा!
"जुगनुओं ने परों को तौल लिया"...वाह! बहुत खूब गुरूवर!
और सांझ उन का जवाब आ ही गया, सांझ से...में जो तस्वीर उभर कर आती है उसके क्या कहने!!!
उल्लुऒं ने बसा लिये डेरे,
बाग़ पै गर्दिशों के साये हैं.
बहुत बढिया.
जो दो कौडी के कल भी थे वो आज भी हैं इनका रिसेसन कुछ भी न बिगाड़ पाया.
अरे भाई ये तो वो हैं जो बाढ़-भूकंप,सूखा, युद्ध, दंगें,...... जैसी कैसी भी आपदाएं आयें अपने खानदान और गुर्गों की तीन पुश्तों के लिए समस्त प्रबंध बड़े इतमिनान से कर ही लेते है..........
जो आपकी ग़ज़ल के बेमिसाल शेरों से भी दृष्टिगत हो रहा है.
हार्दिक बधाई.
चन्द्र मोहन गुप्त
जयपुर
www.cmgupta.blogspot.com
jinke ghar mein bado ke saayen hai
bahut man bhaa gaya
bahut shaandaar gazal hui hai
इष्ट मित्रों एवम कुटुंब जनों सहित आपको दशहरे की घणी रामराम.
बरकतें साथ चैन और सुख भी
जिन के घर में बड़ों के साए हैं
---यह शेर बहुत प्यारा है।
yogendra ji
namaskar
deri se aaya , maafi ..
prastavana aur gazal dono hi shaandar ban padhe hai .. gazal bahut hi dil ko chooti hui si hai ..
is post ke liye meri badhai sweekar kare..
dhanywad
vijay
www.poemofvijay.blogspot.com
aap aur galat likhen....impossible.
Post a Comment