१
बेशक आदमी का दिमाग बहुत बड़ा है
लेकिन दिल बहुत छोटा है
इसीलिये उसके आविष्कारों में
प्यार का टोटा है
अन्यथा श्रीमान्
मंगल और चांद पर
पानी की खोज में लगा विग्यान
थोड़ा सा तो लगाए धरती पर ध्यान
कि अभी भी इस धरती पर
बिन पानी के लोग रहते हैं
एक घड़ा भरने के लिए
रेत के दरिया में दूर तक बहते हैं
अरे जिस दिन
पृथ्वी के प्रत्येक भूभाग में
पीने को स्वच्छ पानी
सहज सुलभ हो जाएगा
देख लेना
मंगल और चांद का पानी तो
यहीं से नजर आ जाएगा
यहीं से नजर आ जाएगा
२
जलसे-जुलूस-मेले
बीच बाज़ार या अकेले
स्त्री देह
मात्र नयन पिपासा को झेले
हाय री विडम्बना
चरित्र की हेठी
कहीं पर भी तो नहीं दीखती
बहन या बेटी
हर और
प्रेयसियां या वारांगनाए
कोरा नेत्रविलास
या कुंठित भोगेच्छाएं
सत्य में जीवित नहीं हम
हो चुका है आत्मा का मरण
क्योंकि बेचारा अन्तःकरण
बच भी कैसे पाएगा
जैसा अन्न खाएगा
वैसा ही तो निभाएगा
--योगेन्द्र मौदगिल
बेशक आदमी का दिमाग बहुत बड़ा है
लेकिन दिल बहुत छोटा है
इसीलिये उसके आविष्कारों में
प्यार का टोटा है
अन्यथा श्रीमान्
मंगल और चांद पर
पानी की खोज में लगा विग्यान
थोड़ा सा तो लगाए धरती पर ध्यान
कि अभी भी इस धरती पर
बिन पानी के लोग रहते हैं
एक घड़ा भरने के लिए
रेत के दरिया में दूर तक बहते हैं
अरे जिस दिन
पृथ्वी के प्रत्येक भूभाग में
पीने को स्वच्छ पानी
सहज सुलभ हो जाएगा
देख लेना
मंगल और चांद का पानी तो
यहीं से नजर आ जाएगा
यहीं से नजर आ जाएगा
२
जलसे-जुलूस-मेले
बीच बाज़ार या अकेले
स्त्री देह
मात्र नयन पिपासा को झेले
हाय री विडम्बना
चरित्र की हेठी
कहीं पर भी तो नहीं दीखती
बहन या बेटी
हर और
प्रेयसियां या वारांगनाए
कोरा नेत्रविलास
या कुंठित भोगेच्छाएं
सत्य में जीवित नहीं हम
हो चुका है आत्मा का मरण
क्योंकि बेचारा अन्तःकरण
बच भी कैसे पाएगा
जैसा अन्न खाएगा
वैसा ही तो निभाएगा
--योगेन्द्र मौदगिल
26 comments:
पहली एक खूबसूरत विज्ञान गल्प कविता है -यह विधा भारत में बस सद्यप्रसूता है ! दूसरी पर कंमेंट नही -कोई ठकुर सुहाती थोड़े ही करनी है !
जैसा खायेगा अन्न वैसा ही तो निभाएगा
अगले जन्म में पिछला हिसाब चुकाया जाएगा
अरे जिस दिन
पृथ्वी के प्रत्येक भूभाग में
पीने को स्वच्छ पानी
सहज सुलभ हो जाएगा
देख लेना
मंगल और चांद का पानी तो
यहीं से नजर आ जाएगा
यहीं से नजर आ जाएगा
bahut hi lajawab aur sachi baat
किस ने देखा है अगला जन्म! जो लेना देना है वह यहीं चुकना है।
भाई जी,
इसी को तो प्रगति कहते है शायद आज के सन्दर्भ में.............
घर में प्यासे छोड़,
चाँद और मंगल में पानी और जीवन तलासते ही सब मिल रहे है.
ऐसे फिजूल खर्ची चल रही है,
तभी तो अर्थ-तंत्र में मंदी छा रही है.
सुन्दर रचना प्रस्तुति पर बधाई.
चन्द्र मोहन गुप्त
जय हो! जय हो!
बहुत सुंदर रचनाएं
रामराम.
बहुत सुन्दर कविताये हैं एक रेगिस्तान की प्यास को प्यार से जोड़ती विज्ञान को निमंत्रतित करती और दूसरी आँखों के कुसंसकारों को लताडती हुई . वाह वाह !!
व्यंग नहीं , व्यंग के माध्यम से यथार्थ की चित्रण किया है .
बहुत सुंदर रचनाएं , यथार्थ चित्रण
Regards
अरे जिस दिन
पृथ्वी के प्रत्येक भूभाग में
पीने को स्वच्छ पानी
सहज सुलभ हो जाएगा
देख लेना
मंगल और चांद का पानी तो
यहीं से नजर आ जाएगा....
अच्छी और भविष्यगत रचना .
ये व्यंग नही सच्चाई है कविराज,अपकी कलम की तारीफ़ के लिये शब्द नही है मेरे पास।
बहुत ही खूबसूरत रचनाएँ. पहली वाली ने तो बोल्ड कर दिया. आभार.
दोनों ही बहुत जबरदस्त!! आनन्द आ गया.
kyA baAT kahi.
hmmmm gambheeer....!
आज तो बहुत ही सीरियस लिखा है मोदगिल जी............
मानव जीवन की यंत्रणाओं को लिखा है
बहुत खूब लिखा हैं
भाई जी आप जो भी जब भी लिखो हो....कमाल का लिखो हो.....दोनों कवितायेँ एक से बढ़ कर एक...
नीरज
दोनो ही एक से बढकर एक.......पूरी तरह से सच्चाई बयां कर डाली..आभार
wah maudgil ji , dono khubsurat vyangya rachnayen. badhai.
हम्म! बहुत गहरी चोट की आपने। जैसा अन्न खायेगा.....सत्य वचन।
ये नया रूप और तेवर तो खूब है कविवर...सलाम आपको
पहली कविता जल-समस्या से उपजी है..सही व्यंग्य किया है.
दूसरी कविता में एक ऐसी समस्या है जिसमें कुंठा ग्रस्त मानसिकता का बड़ा हाथ है.गिरती नैतिकता का हाथ है.
सफल अभिव्यक्ति लिए हैं दोनों रचनाएँ
बहुत सुन्दर लेख चित्र खेंच दिये! वाह!
सटीक व्यंग्य....चुटीले कटाक्ष और लच्छेदार भाषा का जब संगम हो जाए तो बस मुँह से वाह....वाह-वाह ही निकलता है
प्रतिउत्तर -
हम लोग तो पानी को
ऊपर से पीते हैं
नीचे से बहाते हैं
और कुछ हमारे आका हैं
जो इसमें चीनी घोल के
लाखों कमाते हैं
वो मुआ कौन है-
जो पानी पीके फौरन
नीचे से नहीं बहाता है
और वहां साइड में जाके
अपना मगज खपाता है
चीनी भी नहीं घोलता
लाखों भी नहीं कमाता है
ये हमारी और आकाओं की
अमानत में खयानत है
और पानी और चीनी की-
लानत मलानत है
हमें चाहिए पानी को
पानी- पानी कर डालें
या तो चीनी घोलें
या नीचे से निकालें
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