रफ्ता-रफ्ता जो बेकसी देखी
अपनी आंखों से खुदकुशी देखी
आप सब पर यक़ीन करते हैं
आपने खाक़ ज़िन्दगी देखी
आग लगती रही मक़ानों में
लो मसानों ने रौशनी देखी
एक अब्बू ने मूंद ली आंखें
चार बच्चों ने तीरगी देखी
उतनी ज्यादा बिगड़ गयी छोरी
जितनी अम्मां ने चौकसी देखी
बाद अर्से के छत पे आया हूं
बाद अरसे के चांदनी देखी
--योगेन्द्र मौदगिल
अपनी आंखों से खुदकुशी देखी
आप सब पर यक़ीन करते हैं
आपने खाक़ ज़िन्दगी देखी
आग लगती रही मक़ानों में
लो मसानों ने रौशनी देखी
एक अब्बू ने मूंद ली आंखें
चार बच्चों ने तीरगी देखी
उतनी ज्यादा बिगड़ गयी छोरी
जितनी अम्मां ने चौकसी देखी
बाद अर्से के छत पे आया हूं
बाद अरसे के चांदनी देखी
--योगेन्द्र मौदगिल
28 comments:
नमस्कार योगेन्द्र जी,
बहुत ही सुन्दर ग़ज़ल कही है आपने...............
खासकर ये शेर "एक abbu ने moond ली.........." और "बाद arse के............"
bhut hi sunder gazal pdhne ko mili aaj...ek ek sher bhavpurn or lajvaab.."
Regards
क्या बात है
आजकल छाये हुए हो
साहित्य शिल्पी में देखा
तो ईर्ष्या हुई
एक चाय वाली की बाहों में
आये हुए हो
उतनी ज्यादा बिगड़ गयी छोरी
जितनी अम्मां ने चौकसी देखी
बाद अर्से के छत पे आया हूं
बाद अरसे के चांदनी देखी
waah bahut khub
हर शेर बेहतरीन।
रफ्ता-रफ्ता जो बेकसी देखी
अपनी आँखो से खुदकुशी देखी
आप सब पर यकीन करते है
आपने खाक जिन्दगी देखी
बहुत उम्दा। आपके ब्लोग पर आकर दिल खुश हो जाता है।
बहुत ही बेहतरीन रचना है .......पढ़कर मज़ा आ गया
भाई जी लाजवाब ग़ज़ल है...एक एक शेर कमाल का है...आप का तो कोई जवाब ही नहीं है जी...
नीरज
प्रणाम आप को.
"बाद अरसे के छत पे आया हूँ,
बाद अरसे के चांदनी देखी."
बहुत सुन्दर!
वाह ! लाजवाब........सभी शेर एक से बढ़कर एक....आनंद आगया पढ़कर...
बहुत बहुत आभार.
हास्य से ज़िन्दगी की तरफ़ मुड़ना बहुत ख़ूब रहा!
---
चाँद, बादल और शाम
गुलाबी कोंपलें
बहुत लाजवाब चांदनी दिखी हमको भी.
रामराम.
उतनी ज्यादा बिगड़ गयी छोरी
जितनी अम्मां ने चौकसी देखी
बहुत ही बढिया
आपकी हर रचना कोई ना कोई सन्देश लिए होती है
चांदनी के बाप ने देख लिया तो ????..:)
बहुत ही सुंदर रचना, जब बाप देखे गा तब की बात
धन्यवाद
ghazal khud aapka t`aaruf karvaa
rahi hai.......lajwaab...nayaab..
aur ye.......
'aap sb pr yaqeen karte haiN
aapne khaak zindgi dekhi..'
niche naam na bhi dete, to ghazal
khud hi keh de rahi hai k YogenderMoudgil ki qalam se aaee hai.......
badhaaee. . . .
---MUFLIS---
प्रणाम योगेन्द्र जी
आपका अपना nirala andaz होली के बाद फिर से vapas aa गया, व्यंग और yathart का mishran, एक एक शेर कमाल का है,बहुत ही बेहतरीन रचना
वाह मौदगिल जी वाह ये अंदाज अब तक छुपाये बैठे थे आप.. बहोत खूब ...
उतनी ज्यादा बिगड़ गई छोरी... क्या बात कही .. .. खुबसूरत ग़ज़ल के साथ भी एक कास के लगाया सब को ... कल मसरूफियत के कारण नहीं आ पाया मुआफी चाहूँगा ...
अर्श
वाह्! मौदगिल जी, हर शेर उम्दा.......बेहतरीन
क्या बात है... मज़ा आ गया....
हर शेर उम्दा.....
'बाद अरसे के छत पे आया हूं।
बाद अरसे के चांदनी देखी।'
हासिले ग़ज़ल। बधाई।
भाई मौदगिल जी,
होली की मौज मस्ती, बनाने-बनाने के बाद जिन्दगी के कडुवे सच एक बार पुनः शेर बन कर दहाड़ ही उठे, और हमें भी महसूस हो उठा कि
रफ्ता -रफ्ता जो बेकसी देखी,
अपनी आँखों से खुदकशी देखी
ग़ज़ल के सभी शेर एक बार फिर से जिन्दगी के सच को ही उजागर कर रहे हैं.
सुन्दर प्रस्तुति पर बधाई.
चन्द्र मोहन गुप्त
एकदम नये अंदाज़ और तेवर वाली ये ग़ज़ल आपकी....वाह। हर शेर अलबेले हैं नयी बात लिये
आप तो हमेशा ही अच्छा लिखते हैं..! हर शेर उत्तम...!
लेकिन ये अच्छा मज़ाक है मैं वो वाली पोस्ट आपके पूरे चिट्ठे में ढूँढ़े पड़ी हूँ, जिसकी शिकायत मेरी पोस्ट पर हुई है....! :) :) गुरुवर मुझे तो नही मिली...!
आपकी गजल में हमने
एक सुन्दर सी जिंदगी देखी।
अब्बू वाल शेर दिल में उतर गया सर जी....
बाद अर्से के छत पे आया हूं
बाद अरसे के चांदनी देखी
बहुत खूब मौदगिल साहब ..बहुत ही लाजवाब ग़ज़ल है !!!!!!!
Bahut bahut achchi Ghazal. Sarey She'r bahut achche. Doosra She'r zabardast!
God bless
RC
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