कुछ नहीं बस आदतन लाचार हैं.
तेरे दीवाने बड़े हुशियार हैं.
धीरे-धीरे गरदनों को नाप कर,
आरियों के साथ वो तैयार हैं.
वक्त जाने और क्या दिखलाएगा,
डाकुऒं के साथ पहरेदार हैं.
काट डाले पेड़ नदियां रोक दीं,
और कहते है कि हम बीमार हैं.
बात जो सच्ची है उसको गाऊंगा,
जानता हूं सब लिये तलवार हैं.
देख लेना एक दिन झुक जाएंगें,
पेड़ जितने भी यहां फलदार हैं.
बज गया डंका इलैक्शन का मियां,
शहर के बेकार भी बा-कार हैं.
जिन्दगी की तो चढ़ा देते बलि,
पत्थरों के लोग ताबेदार हैं.
हैं बुजुर्गों के लबों पर गालियां,
और बच्चे भी लिये हथियार हैं.
'मौदगिल' बाजार उनके बस में है,
वो कि जिनके हाथ में दीनार हैं.
--योगेन्द्र मौदगिल
24 comments:
बहुत सुन्दर ग़ज़ल!!!
सदा ही बहुत धारदार होते हैं आपके शब्द.
बहुत खूब , मज़ा आ गया पढ़कर !
वक्त जाने ओर क्या दिखलाएगा
डाकुओं के साथ पहरेदार हैं
कितना स्टीक लिखा है आपने....बहुत ही उम्दा...
क्या कहूं ऐ दोस्त मेरे मोद में
टिप्पणी को कलम तैयार है
कवीवर
इतना पैना लिखते हो, सीधा दिल में उतर जाता है.........घाव नज़र ही नहीं आता.
आपका अंदाज़ ऐसा है की अगर किसी और ब्लॉग पर भी बिना नाम के कोई रचना पढूंगा तो समझ जाउंगा अगर आप की होगी
प्रणा
वाह साहब ! क्या बात है.
शेर को अब शेर कहना छोड़ दे
बरछा, भाला, तीर हैं, तलवार हैं
" बाजार उनके बस में है,
वो कि जिनके हाथ में दीनार हैं."
बहुत खूब रही. आभार.
kaat daale ped...........
zindgi ki to...........
wah maudgil hamesh ki tarah ek aur behtareen, rachna.wah wah wah. badhaai.
ऐसी रचना आई है गर ब्लॉग पे
जान लो मौदगिल बरखुरदार हैं...
वाह जी वाह क्या कहने आपने ..सीधा तमाचा मारा फिर से कसके आपने .... ढेरो बधाई साहब ...
अर्श
मिनटों में वार करते बेशुमार हैँ
मान गए उस्ताद जी आपको
लेखनी आपकी बड़ी धारदार है
सच मै कलम तलबार से ज्यादा तेज है, बहुत ही सुंदर लिखा आप ने.
धन्यवाद
मुझसे पहले आये भाईयो ने इतनी तारीफ़ कर दी कि मेरे लिये तारीफ़ करने के कुछ नही छोडा।शानदार,धारदार,सदाबहार और पढने को मन चाहे बारबार्।
हमेशा की तरह धारदार, शानदार
बज गया डंका इलेक्शन का मियां
अब यहाँ बेकार भी बा कार है.
भाई जी कमाल कर दिया आपने...भाई थारा कोई जवाब ही नहीं....एक दम दो टूक बात कही है...कितनी क तारीफ करूँ कम ही पढ़ती दीख रही है...
नीरज
बहुत बढ़िया लगी हमेशा की तरह ..लफ्जों से बात कहती हुई शानदार
घणी कलेजा चिरण आली रचना सै भई. घणि बधाइ.
रामराम.
बहुत सुंदर और लाजवाब रचना.
रामराम.
बहुत सुन्दर ग़ज़ल
Regards
हैं बुजुर्गों के लबों पर गालियां,
और बच्चे भी लिये हथियार हैं.
bahut khub.
Nice .. but 'mar gayi machhli' zyada dumdaar hai! Uska Matlaa bahut achcha hai.
(Ye kya mouse-pointer lagaya hai Yogendra ji!!!)
RC
बहुत ही चुने एवं सधे हुए शब्दों में आप ने जीवन के यथार्थ का वर्णन इस रीति से किया है कि कोई भी इसका आस्वादन कर सकता है.
सशक्त !!
सस्नेह -- शास्त्री
-- हर वैचारिक क्राति की नीव है लेखन, विचारों का आदानप्रदान, एवं सोचने के लिये प्रोत्साहन. हिन्दीजगत में एक सकारात्मक वैचारिक क्राति की जरूरत है.
महज 10 साल में हिन्दी चिट्ठे यह कार्य कर सकते हैं. अत: नियमित रूप से लिखते रहें, एवं टिपिया कर साथियों को प्रोत्साहित करते रहें. (सारथी: http://www.Sarathi.info)
जिनके हाथ में दीनार है.....सही कहा साहब .आपने....छोटी बहर के आप मालिक है
aapka apna style hai aur kya zordar style hai....bahut shaandar
Shaher ka becar bhi ab ba-car hai...
bahut sahi likha hai apne...
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