एक हाथ में गंगाजल है.
और दूसरे में पिस्टल है.
तनातनी के युग में लगती,
सारी दुनिया ही पागल है.
बाहर चुप्पी बांटने वाले,
तेरे घर में कोलाहल है.
कहां धरूं, असबाब बताऒ,
कोना-कोना हुआ डबल है.
निंदा-रस का पागल प्रेमी,
चढ़ा मंच पर लिये कमल है.
बात प्यार की सुनता कैसे,
उसके कानों में दलदल है.
सांझ नहीं ये मेरे भाई,
सूरज के आगे बादल है.
--योगेन्द्र मौदगिल
35 comments:
बात प्यार की सुनता कैसे,
उसके कानो में दल दल है....
" कितने सरल शब्दों में कितनी गहरी बात व्यक्त की......"
Regards
बात प्यार की सुनता कैसे,
उसके कानो में दल दल है....
bahut sunder yogendra ji aap to lagta hai shabd pakad kar/chhookar use sona bana dete hain. wah.........................................
समाज क़ी पारट खोल दी जी आपने तो.. बहुत ही उम्दा
बाहर चुप्पी बांटने वाले
तेरे घर में कोलाहल है
बहुत खूब ..सही कहा आपने
सत्यवचन कविवर ! सत्यवचन !
निन्दा रस का पागल प्रेमी
चढा मंच पर लिए कमल है.
ये कमल प्रॉपर नाउन में है क्या?
आप जो समझें सो ठीक ईष्टदेव जी, आपकी बात नकारेंगें थोड़े ही...
or haan
Inke sath-sath Seema g, Swapn g, Kush g, Ranjna g evm Abhishek g aap sab ka shukriya........
भाई जी अब कोई एक शेर हो तो तारीफ करूँ यहाँ तो पूरी की पूरी ग़ज़ल की कमाल की है...आप के लेखन को नमन है जी...सच में.
नीरज
सांझ नहीं ये मेरे भाई
सूरज के आगे बादल है.
नितांत सुन्दर...कितनी गहरी बात कह डाली.
आभार.....
सचमुच बादल ही है जी।
बाहर चुप्पी बांटने वाले,
तेरे घर में कोलाहल है.
shandaar ....behad
waah bahut umda gazal badhai suraj ke aage badal hai bahut khub
आपके हर शेअर पर हमने दिल थाम लिया
--
गुलाबी कोंपलें
चाँद, बादल और शाम
ग़ज़लों के खिलते गुलाब
वाह !
बहुत गहरी और सटीक बात कही आपने.
रामराम.
डुबकियां ले रहे हैं. बह न जायें. हम अपनी बात कह रहे हैं. आभार.
बहुत सही व सटीक कहा है आपने।आज का सच तो यही है।बढिया रचना है बधाई।
"बात प्यार की सुनता कैसे,
उसके कानो में दल दल है..."
बाहर चुप्पी बांटने वाले,
तेरे घर में कोलाहल है.
कैसे कैसे लोगोँ से घिर
दुनिया मेँ दिखती है दलदल
तूने दुनिया को पह्चाना
दुनिया मे अब है यह हलचल
इतना सच-सच बोलोगे तो कैसे चलेगा? तारीफ़ के लिये शब्द नही है मेरे पास्।
एक हाथ में गंगाजल है.
और दूसरे में पिस्टल है.
तनातनी के युग में लगती,
सारी दुनिया ही पागल है.
बिलकुल सही चित्र खींचा है आज के जमाने का. बहुत सुंदर.
धन्यवाद
"सूरज के आगे बादल है..." बहुत खूब योगेन्द्र जी!
baat pyaar ki sunta kaise....
bahut umda !
saadar
khyaal
इष्टदेव जी की बात को दोहराता हूं
बहुत खूब.. दोहरे चरित्र पर शानदार कटाक्ष..
wah! wah! bahut hi shandar rachna hai..
सांझ नही यह मेरे भाई
सूरज के आगे बादल है ।
सही कहा । सारी कविता ही बहुत संदर है ।
बस इतना ही कहा जा सकता है, बहुत खूब।
ऊपर सी गिनता आ रहा था कि कितने लोगों ने ’सही’ , ’सटीक’ और ’शानदार’ का प्रयोग किया है...
हें हें हें हें
शानदार शेरों से सजी
बड़ी सही सटीक गज़ल है
साँझ नहीं ये मेरे भाई,
सूरज के आगे बादल है।
क्या ही ख़ूब कहा योगी बड्डे !! वाह वाह ।
वाह मोदगिल साहब
क्या तेवर हैं, क्या अंदाज़ है. बेहतरीन रचना आपके अपने अंदाज़ में
मौदगिल साहब जी नमस्कार
माफ करना पिछले काफी दिनों से अस्त-व्यस्त दिनचर्या और थोडे शरीर की अस्वस्थता के कारण ब्लाग पर सक्रिय नहीं हो पा रहा हूं अभी थोडा और समय लगेगा इसलिए ज्यादातर ब्लाग पर कमेंट नहीं कर पा रहा हूं
बाकी आपने जो गजल पेश की है अतिउत्तम
एक एक शब्द को बखूबी पिरोया है आपने इस प्रेम के धागे में बहुत ही अच्छी लगी आपकी गजल
सबसे ज्यादा अच्छा जो लगा वेसे सारी गजल ही मजेदार है
बात प्यार की सुनता कैसे,
उसके कानों में दलदल है
सांझ नहीं ये मेरे भाई
,
सूरज के आगे बादल है
बेहतरीन आपका किसी बात को कहने का ढंग भी बेमिसाल है कि बात प्यार की सुनता कैसे
शायद इस बात को कोई मेरे जैसा अनाडी तो लिख देता कि उसके कान ही बंद हैं लेकिन आपने जो दलदल को उसके कान में डाला
मजेदार उत्तम अति उत्तम
मन से
सांझ नहीं ये मेरे भाई
सूरज के आगे बादल है.
सच कहा भाई जी आपने. याद करें महाभारत का वो प्रकरण, जब घोर निंदनीय अनीति के खात्मे के लिए ईश्वर को भी प्राकृतिक क्षद्म का सहारा लेकर अनीति के सहारे ही सही नीति को बचाने का प्रयास करना पड़ा था.
समझना होगा कि कब सूरज के आगे बादल है, और पापी सम्मुख है और अर्जुन को तैयार रहना होगा ................
चन्द्र मोहन गुप्त
बहुत सुंदर है सलाम आपकी ग़ज़ल को और आपको भी
सांझ नहीं ये मेरे भाई
सूरज के आगे बादल है.
-बादल छंटेंगे. रोशनी आयेगी
आपकी हर रचना में कोई ना कोई सन्देश निहित होता है....
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