चर कर माल जंवाईं ने............

दारू ने अंगड़ाई ली.
घर की पाई-पाई ली

समझा-समझा टूट गया,
अब्बू ने चारपाई ली.

अपना घर बर्बाद किया,
फोकट जगत-हंसाई ली.

प्यार मुफ्त में बांट दिया,
उसने मोल लड़ाई ली.

लूटा क्या इक बार मज़ा,
सारी उमर दवाई ली.

कूंआ देकर हिस्से में,
अपने हिस्से खाई ली.

उसने सबको जीत लिया,
उसने पीर परायी ली.

चर कर माल जंवाईं ने,
जम कर दांत घिसाई ली.
--योगेन्द्र मौदगिल

26 comments:

Pt. D.K. Sharma "Vatsa" said...

अजी वाह्! क्या खूब लिखा है.हर शेर में सच्चाई छुपी है.
..................................

"चर कर माल जंवाई ने
जम कर दांत घिसाई ली"
मौदगिल जी, या गजल कदी ससुराड मैं बैठ के ही तो नी लिखी.

राज भाटिय़ा said...

बहुत खुब, लेकिन अब तो नारीयां भी पब मे जा कर खुब पीने लगी है, जो कल तक हमे रोकती थी, यानि अब तो बरवादी से कोई नही रोक सकता.
बहुत सुंदर लगी आप की यह रचना , हमेशा की तरह से
धन्यवाद

इष्ट देव सांकृत्यायन said...

क्या आलतू-फ़ालतू बात करते हैं योगेन्द्र भाई! लगता है आज वेलेंटाइन डे पर भौजाई ने मेरा शास्त्र आपको उपहार स्वरूप भेंट कर दिया क्या जो दारू के ख़िलाफ़ आप इतनी लम्बी ग़ज़ल कह गए?

परमजीत सिहँ बाली said...

बहुत बढिया!! बहुत सामयिक रचना है। सच्चाई ब्यान करती है आपकी यह रचना।बहुत अच्छी लगी।धन्यवाद।

राजीव तनेजा said...

ला पिला दे साकिया पैमाना
पैमाने के बाद...

होश की बातें करूँगा होश में आने के बाद


सच्चाई ब्याँ करती उम्दा रचना के लिए बहुत-बहुत बधाई

समय चक्र said...

bahut badhiya rachana .abhaar

Arvind Mishra said...

वाह .मान गये उस्ताद !

Udan Tashtari said...

जबरदस्त मौदगिल साहेब!! छा गये.

दिनेशराय द्विवेदी said...

भैया, तीन दिन के लिए ससुराल की शादी में जा रहा हूँ। याद रखूंगा, दांत और पेट बचा कर रखूँगा।

Manoshi Chatterjee मानोशी चटर्जी said...

बड़ी अच्छी गज़ल। और वैलेंटाइन डे पर cursor भी intersting.

Vinay said...

बहुत अच्छे, अब तो चकाचक टिप्पणियाँ छप रही हैं!

Anil Pusadkar said...

छा गये गुरू,सिद्धू स्टाईल मे बधाई।

भारतीय नागरिक - Indian Citizen said...

छोटे छोटे वाक्यों में आपकी रचनायें कुछ सतसइया के दोहरों की तरह हैं.

Yogesh Verma Swapn said...

jabardast , hamesha ki tarah khoobsurat rachna.

Anonymous said...

आपकी रचना सुन्दर है।
आभार!

hem pandey said...

बात तो खरी कही है.

ताऊ रामपुरिया said...

घणी सुंदर रचना, बधाई.

रामराम.

Dr. Chandra Kumar Jain said...

योगेन्द्र जी,
आप ब्लाग पर पधारे
बड़ी प्रसन्नता हुई....आज
आपकी रचनाएँ पढ़ रहा हूँ.
बहुत सीधे-सादे अंदाज़ में नसीहत
की बड़ी बातें कह देना प्रभावित कर रहा है.
शेष फ़िर....
============
चन्द्रकुमार

Abhishek Ojha said...

बढ़िया दारुबाज चित्रण !

Science Bloggers Association said...

मैं कितनी दाद दूं, समझ में नहीं आ रहा, क्योंकि पूरी गजल ही लाजवाब है।

कंचन सिंह चौहान said...

पहली पंक्ति पढ़ कर

मयखार को इतना होश कहाँ,
रिश्ते की हकीकत को समझे,
बेटी का सौदा कर डाला,
दारू की बोतल की खातिर

शेर याद आ गया...!

Hari Joshi said...

छुड़ा कर ही मानोगे जी।

Dr. Amar Jyoti said...

बहुत ख़ूब!

गौतम राजऋषि said...

क्या कहें सर...क्या कहें
बस वाह कह कर चुप हो जाना जँचता नहीं
बहुत खूब

बवाल said...

उसने सबको जीत लिया
उसने पीर पराई ली।
बहुत संजीदा बात कह गए योगी बड्डे। अहा!

Satish Chandra Satyarthi said...

क्या कहें ............
अपनी ठेठ बिहारी जुबान में कहें तो "गर्दा" लिखे हैं.