अच्छा काम हुआ....

भाई विनय जी,
आपकी सलाह से ब्लाग ने पूर्ववत् काम करना शुरू कर दिया..
आपकी फीस की पहली किश्त के रूप में यह ग़ज़ल आपको सप्रेम समर्पित करता हूं...

वो कहता है नाम हुआ.
मैं कहता बदनाम हुआ.

दिन में हुआ अमीबा वो,
रातों-रात तमाम हुआ.

ढाई आखर प्रेम-पगे,
सारा दौर गुलाम हुआ.

मन में लीला रमी रही,
तन भी ललित-ललाम हुआ.

अम्मां-बाबू पूज लिये,
घर बैठे हर धाम हुआ.

सपने दिखते रहे मुझे,
सोना जो अविराम हुआ.

इक भूखे को रोटी दी,
इक तो अच्छा काम हुआ.
--योगेन्द्र मौदगिल

26 comments:

seema gupta said...

ढाई आखर प्रेम-पगे,
सारा दौर गुलाम हुआ.
" wah wah wah kya baat khi ....ek dam stik or saty.."

regards

परमजीत सिहँ बाली said...

बहुत बढिया गज़ल है !
मौदगिल जी,बहुत अच्छा कहा है_

अम्मां-बाबू पूज लिये,
घर बैठे हर धाम हुआ

Udan Tashtari said...

पोस्ट पढ़ें और टिप्पणी कर दें,
ये तो सुबह शाम हुआ..

गीत पढ़ें और वाह वाह निकले
यूँ मौदगिल का कलाम हुआ..

--वाह !! वाह!

Anonymous said...

हम जिन पंक्तियों को उद्धृत करना चाहते थे उसे तो किसे ने चुरा लिया. सुंदर रचना. आभार.

सुशील छौक्कर said...

सच कह दिया।
अम्मां-बाबू पूज लिये,
घर बैठे हर धाम हुआ
वाह वाह वाह।

भारतीय नागरिक - Indian Citizen said...

सर जी - जहां प्रेम पगे लिखा था वहां मैं प्रेम पेग पढ़ गया.लेकिन मजा बल्कि नशा आ गया.

मोहन वशिष्‍ठ said...

अम्मां-बाबू पूज लिये,
घर बैठे हर धाम हुआ

बहुत ही अच्‍छी रचना रच डाली आपने जनाब इसको पढवाने के लिए आपका बारम्‍बार शुक्रिया
मन से

निर्मला कपिला said...

amma bapu pooj liye ghar baithe sab dhaam hua bahut badiya gazal hai bdhai

Anonymous said...

waah lajawaab bahut badhai

दिनेशराय द्विवेदी said...

बधाई!
पहला शेर तो मुझ पर ही लिख दिया गया है।

Abhishek Ojha said...

आपकी खुशी में हम भी शरीक हैं जी. हर बार की तरह बस वाह ही निकल रहा है मुंह से !

pritima vats said...

इस बेहतरीन गजल के लिए आपको शुक्रिया।

अमिताभ मीत said...

मुश्क़िल है साहब !! रोज़ रोज़ क्या कहूँ ??

Pt. D.K. Sharma "Vatsa" said...

भई वाह्!क्या कहने........ आज तो आपकी गजल के हर शेर में 'शास्त्र वाक्य' छुपा हुआ है.

गौतम राजऋषि said...

अम्मा-बाबू पूज लिये
घर बैठे हर धाम हुआ

..क्या बात है योगेन्द्र जी,क्या बात है...

बहुत सुंदर

Gyan Darpan said...

बेहतरीन गजल

Vinay said...

बदनाम होंगे तो क्या नाम न होगा! बहुत चर्चित वाक्य हैं! सुन्दर रचना!

राज भाटिय़ा said...

बहुत सुंदर,
धन्यवाद

राजीव तनेजा said...

अम्मां-बाबू पूज लिये,
घर बैठे हर धाम हुआ

सीख देती एक बहुत बढिया गज़ल

बवाल said...

अरे योगी बड्डे इक अच्छा काम क्या आपके सारे अच्छे काम होते हैं जी हा हा बहुत शानदार ग़ज़ल।

समयचक्र said...

जो हुआ अच्छा हुआ . बढ़िया रचना . धन्यवाद.

KK Yadav said...

पतंगा बार-बार जलता है
दिये के पास जाकर
फिर भी वो जाता है
क्योंकि प्यार
मर-मिटना भी सिखाता है !
.....मदनोत्सव की इस सुखद बेला पर शुभकामनायें !!
'शब्द सृजन की ओर' पर मेरी कविता "प्रेम" पर गौर फरमाइयेगा !!

Yogesh Verma Swapn said...

amma babu pooj liye
ghar baithe har dhaam

beshkeemti panktian bahut......................................badhai.

रंजू भाटिया said...

बहुत सुंदर..

अम्मां-बाबू पूज लिये,
घर बैठे हर धाम हुआ

बढ़िया ....

Satish Saxena said...

बहुत प्यारी ग़ज़ल, बेहद प्रभाव शाली ! आपको शुभकामनायें !

hem pandey said...

बहुत सुंदर रचना.साधुवाद.