कहीं किसी रोज रिश्तो की तुरपाई के बारे में शायद डा अनुराग के ब्लाग पर पढ़ा था तभी से ये ब्रह्मवाक्य कौंध रहा था बस आज कुछ पंक्तियां हो गयी इसलिये ये पंक्तियां डा अनुराग को सादर समर्पित
रिश्तों पर तुरपाई क्यों..?
फोकट जगत हंसाई क्यों..?
पूत को ब्याहा था तूने,
अम्मां तिरी विदाई क्यों..?
एक के घर में मातम तो,
दूजे घर शहनाई क्यों..?
सूखा-बाढ़ मुसल्सल है,
फिर मैं करूं बिजाई क्यों.
बेटी को चौका-बर्तन,
बेटा चरे मलाई क्यों..?
बेच के पिल्ले सोच रहा,
ये कुतिया हड़काई क्यों..?
फ्लैट तनेंगें छाती पर,
सोच रही अमराई क्यों..?
छोड़ के दारू सोच ज़रा,
बिटिया बिना विदाई क्यों..?
रितुराज देख हैरान कली,
भंवरे से शरमाई क्यों..?
जुगनू भी हैरान हुये,
हमने आग लगाई क्यों..?
मांगने वाला चला गया,
अब तू बाहर आई क्यों..?
नाम से पेट नहीं भरता,
दाता, क़लम थमाई क्यों..?
देख बुलबुले पूछ रहे,
दुनिया हवा-हवाई क्यों..?
जांच रहे धब्बे बोले,
ये चादर रंगवाई क्यों..?
कहो 'मौदगिल' बात है क्या..
थामी दियासलाई क्यों..?
--योगेन्द्र मौदगिल
27 comments:
पुत को ब्याह था तुने,
अम्मा तेरी बिदाई क्यूँ....
कमाल कर दिया मौदगिल साहब आपने बहोत ही शानदार लिखा है गज़ब की सोच आपके लेखनी को सलाम.....
अर्श
गज़ब भाई..बहुत जबरदस्त!!
आपकी ये रचना काफी कुछ सोचने पे मजबूर करती है....
बढिया है ....
।बहुत बढिया!! जीवन के बहुत से सवालों को रचना मॆ उठा दिया।बहुत बढिया॥
बहुत खूब उस्ताद
वाह क्या बात है आप ने तो सब कुछ कह दिया इस कविता मै.
धन्यवाद
... रोचक व प्रसंशनीय अभिव्यक्ति है।
बहुत ख़ूब!अन्तिम शेर ने पुरानी याद ताज़ा कर दी:-
'जला दो इसे फूंक डालो ये दुनिया'
हार्दिक बधाई।
मोदगिल साहब..........
इस रचना के लिए बहुत बहुत बधाई............
इतनी खूबसूरत, इतनी सच्ची है ये ग़ज़ल की क्या बताऊँ, मुझे लगता है ये पिछले कुछ दिनों में पढ़ी सबसे अच्छी ग़ज़लों में से एक है (इसका मतलब ये नही और अच्छी नहीं थीं). एक एक शेर इतना गहरा, यथार्थ, सटीक क्या बताऊँ, नतमस्तक हूँ आपकी कलम को
mujhe yah lag raha hai ki main ab aapko "0" de doon (ank nahin), par kavita likhne ke liye, to us par bhi aap bahut shaandaar shaahkaar khada kar denge.
बहुत जबरदस्त सवाल हैं कविवर !
पूत को ब्याहा था तूने,
अम्मा तेरी विदाई क्यों?
मौदगिल जी,आज तो आपने निशब्द कर दिया. अब क्या कहूं, अब तो हमारी शब्दों वाली पोटली भी खाली हो चुकी है.
मुझे तो ऎसा लगता है कि तारीफ के लिए अब कुछ नए शब्द ही धडने पडेंगे.
नमन आपकी कलम को।
क्या बात है योगी बड्डे! विस्मयादिबोधक कविता। मान गए आपको।
आदरणीय मौदगिल जी ...आपने मुझ नाचीज को आदर दिया ,इसके लिए आपका शुक्रगुजार हूँ .....छोटी बहर में लिखना वाकई मुश्किल काम है ओर आप उसमे महारत रखते है ,एक शेर खास पसंद आया
जाँच रहे धब्बे बोले
ये चादर रंगवाई क्यों
..
इतने प्रश्न !
और हो भी क्यूँ न?विषय ही गंभीर जो हैं...
उम्दा ग़ज़ल है.
'रिश्तो की तुरपाई 'से जन्मी इस बेहतरीन रचना के लिए अनुराग जी और आप को बधाई.
Bahut hi pyari GHAZAL hai. BADHAAYI.
behad khoobsurat rachna ek ek sher moti hai.dheron badhai.
badhiya...
Respected Yogendra ji,
jeevan ke katu yatharth ko apne bahut sundar shbdon men piroya hai.
On 12/02/2009, yogesh swapn योगेश स्वप्न yogeshverma wrote:
maudgil ji , namaskaar, aapke blog par comment post nahin kar pa raha isliye e mail kar raha hun , aapki "kyon " shirshak ki kavita ne dil jeet liya kaun si panktiyon ki tareef karun kaun si chhodun , ek se badhkar ek hain .bahut badhaai. yogesh swapn
आपका धन्यवाद लेकिन यह बतायें कि टिप्पणी पोस्ट करने दिक्कत क्या आ रही है..? शेष शुभ
विनय जी, आपका आभार.. लगता है अब समस्या ठीक हो गयी..
चलिए निवारण तो आसानी से हो गया, वरना तो बड़ी मुश्किल आने वाली ही थी! अब मेरी फ़ीस के बारे में क्या ख़्याल है?
सर्वप्रथम आपको मेरे ब्लॉग पर आने व अपनी टिप्पणी से उसकी शोभा बढ़ाने हेतु हार्दिक धन्यवाद.
वाह क्या बात कही है आपने !!
"बेटी को चौका-बर्तन, पूत चरे मलाई क्यों"
आपकी इस पंक्ति को पढ़कर मुझे रघुवीर सहाय जी की यह कविता याद आ गयी कि-
पढ़िए गीता
बनिए सीता
फिर इन सबमें लगा पलीता
किसी मूर्ख की हो परिणीता
निज घरबार बसाइये .
आंखें गीली
लकड़ी सीली , तबियत ढीली
घर की सबसे बड़ी पतीली
भरकर भात पसाइये .
अस्तु, आपने अपनी टिप्पणी में कहा कि "आपने देव-वाणी को जीवन यापन का माध्यम बनाया. यह अनुकरणीय है" तो यहां मेरी आपसे थोड़ी-सी असहमति है। संस्कृत भाषा को हुए नुकसान में इस संज्ञा "देववाणी" का भी बहुत बड़ा योगदान है। अब यह हमारा ही कर्तव्य भी है कि इसे "लोकवाणी" के रूप में प्रचलित करें।
आपकी शुभाशंसाएं समय-समय पर मिलती रहेंगी,
इसी आशापुष्प के साथ,
मणि दिवाकर.
कुछ लोगो की तारीफ करने में मेरा की बोर्ड शरमा जाता है....! पूँछता है कि एक ही बात कितनी बार लिखोगी :) :)
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