बोल हुआ........

जब से तन अन्मोल हुआ.
मन मिट्टी के मोल हुआ.

शीरीं वादे टूट गये,
कड़वा-कड़वा बोल हुआ.

देख मुझे असमंजस में,
वो भी डांवाडोल हुआ.

बादल ने अंगड़ाई ली,
मौसम भी रमझोल हुआ.

गीली मिट्टी सुबक रही,
देख केंचुआ गोल हुआ.

बाहर सारे राम बने,
घर में रावणरोल हुआ.
--योगेन्द्र मौदगिल

28 comments:

कंचन सिंह चौहान said...

गीली मिट्टी सुबक रही,
देख केंचुआ गोल हुआ.

waah ji waah

Udan Tashtari said...

गीली मिट्टी सुबक रही,
देख केंचुआ गोल हुआ.

:)

क्या बिम्ब खैंचा है, वाह!! महाराज, छा गये.

रंजना said...

Waah ! lajawaab !

seema gupta said...

शिरी वादे टूट गये
कड़वा कड़वा बोल हुआ....
" ये वादे क्यों टूटा करते हैं......सुंदर अभिव्यक्ति"

regards

नीरज गोस्वामी said...

भाई जी कमाल का लिखा है आपने..हर शेर में ग़ज़ब किया है...बहुत बहुत बधाई...
नीरज

नीरज गोस्वामी said...
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Vinay said...

बहुत सच्ची बातें, भले ही किसी कड़वी लगें

---
चाँद, बादल और शाम

भारतीय नागरिक - Indian Citizen said...

kyA baat hai huzoor.dil baag-baag ho gaya.

Dr. Amar Jyoti said...

'जब से तन अनमोल हुआ
मन मिट्टी के मोल हुआ।'
बहुत कह शब्दों मे बहुत गहरा सच !
बधाई।

डॉ .अनुराग said...

बादल ने अंगड़ाई ली,
मौसम भी रमझोल हुआ.

bahut khoob......

दिगम्बर नासवा said...

मोदगिल साहब .......
शशक्त रचना सब के सब खूबसूरत शेर , आज के हालात बयां करते
भावः पूर्ण रचना

"अर्श" said...

kadawi to hai magar sachhi baten hai bahot hi shandaar tarike se likha hai aapne .... ek aur lagaya kas ke sabko.


arsh

प्रताप नारायण सिंह (Pratap Narayan Singh) said...

बहुत सुंदर रचना!!!

hem pandey said...

सुंदर प्रस्तुति.

गौतम राजऋषि said...

वाह योगेन्द्र जी ...वाह
इस छोटी बहर में इतनी बड़ी कटरिया कैसे रख लेते हैं आप?
इजाजत हो,तो एक मैं भी जोड़ दूँ?
गज़लें निखरी चमके शेर
बहरों का जब तोल हुआ

और एक और
देखा जब हँसकर उसने
दिल ये बजता ढ़ोल हुआ

आशिर्वाद बनायें रखें कविराज

परमजीत सिहँ बाली said...

बहुत बढिया रचना है।
बहुत सही व सच कहा है-
"बाहर सारे राम बने
घर में रावण रोल हुआ।"

Yogesh Verma Swapn said...

sunder rachna ke liye badhai

Pt. D.K. Sharma "Vatsa" said...

'जब से तन अनमोल हुआ
मन मिट्टी के मोल हुआ।'
वाह्! चन्द लफ्जों में ही आपने तो वर्तमान परिवेश की सारी सच्चाई बयां कर डाली.

ताऊ रामपुरिया said...

गीली मिट्टी सुबक रही,
देख केंचुआ गोल हुआ.

बहुत लाजवाब जी.

रामराम.

P.N. Subramanian said...

बाहर के रावण घर में राम भी बन जाते हैं. हा हा हा. आभार.

राजीव तनेजा said...

बाहर सारे राम बने,
घर में रावणरोल हुआ

सच्छाई ब्याँ करती एक बढिया गज़ल

राज भाटिय़ा said...

जब से तन अन्मोल हुआ.
मन मिट्टी के मोल हुआ.
क्या बात है योगेन्द्र जी, बहुत सटीक लिखी आप ने यह कविता.
धन्यवाद

Arvind Mishra said...

जब से तन अन्मोल हुआ.
मन मिट्टी के मोल हुआ.
वाह मौदगिल जी वाह -आपके काव्य प्रणयन में जबर्दस्त सम्प्रेषनीयता होती है !

Science Bloggers Association said...

छोटी बहर में लिखना मुश्किल होता है, लेकिन आपने फिर यहॉं चमत्‍कार कर दिखाया है, बधाई।

निर्मला कपिला said...

बाहर सारे राम बने अन्दर रावन खेल हुया बहुत हि सत्य है बधाइ

रंजू भाटिया said...

bahut sundar likha hai aapne

Abhishek Ojha said...

बहुत बढ़िया जी !

Vinay said...
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