जब से तन अन्मोल हुआ.
मन मिट्टी के मोल हुआ.
शीरीं वादे टूट गये,
कड़वा-कड़वा बोल हुआ.
देख मुझे असमंजस में,
वो भी डांवाडोल हुआ.
बादल ने अंगड़ाई ली,
मौसम भी रमझोल हुआ.
गीली मिट्टी सुबक रही,
देख केंचुआ गोल हुआ.
बाहर सारे राम बने,
घर में रावणरोल हुआ.
--योगेन्द्र मौदगिल
28 comments:
गीली मिट्टी सुबक रही,
देख केंचुआ गोल हुआ.
waah ji waah
गीली मिट्टी सुबक रही,
देख केंचुआ गोल हुआ.
:)
क्या बिम्ब खैंचा है, वाह!! महाराज, छा गये.
Waah ! lajawaab !
शिरी वादे टूट गये
कड़वा कड़वा बोल हुआ....
" ये वादे क्यों टूटा करते हैं......सुंदर अभिव्यक्ति"
regards
भाई जी कमाल का लिखा है आपने..हर शेर में ग़ज़ब किया है...बहुत बहुत बधाई...
नीरज
बहुत सच्ची बातें, भले ही किसी कड़वी लगें
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चाँद, बादल और शाम
kyA baat hai huzoor.dil baag-baag ho gaya.
'जब से तन अनमोल हुआ
मन मिट्टी के मोल हुआ।'
बहुत कह शब्दों मे बहुत गहरा सच !
बधाई।
बादल ने अंगड़ाई ली,
मौसम भी रमझोल हुआ.
bahut khoob......
मोदगिल साहब .......
शशक्त रचना सब के सब खूबसूरत शेर , आज के हालात बयां करते
भावः पूर्ण रचना
kadawi to hai magar sachhi baten hai bahot hi shandaar tarike se likha hai aapne .... ek aur lagaya kas ke sabko.
arsh
बहुत सुंदर रचना!!!
सुंदर प्रस्तुति.
वाह योगेन्द्र जी ...वाह
इस छोटी बहर में इतनी बड़ी कटरिया कैसे रख लेते हैं आप?
इजाजत हो,तो एक मैं भी जोड़ दूँ?
गज़लें निखरी चमके शेर
बहरों का जब तोल हुआ
और एक और
देखा जब हँसकर उसने
दिल ये बजता ढ़ोल हुआ
आशिर्वाद बनायें रखें कविराज
बहुत बढिया रचना है।
बहुत सही व सच कहा है-
"बाहर सारे राम बने
घर में रावण रोल हुआ।"
sunder rachna ke liye badhai
'जब से तन अनमोल हुआ
मन मिट्टी के मोल हुआ।'
वाह्! चन्द लफ्जों में ही आपने तो वर्तमान परिवेश की सारी सच्चाई बयां कर डाली.
गीली मिट्टी सुबक रही,
देख केंचुआ गोल हुआ.
बहुत लाजवाब जी.
रामराम.
बाहर के रावण घर में राम भी बन जाते हैं. हा हा हा. आभार.
बाहर सारे राम बने,
घर में रावणरोल हुआ
सच्छाई ब्याँ करती एक बढिया गज़ल
जब से तन अन्मोल हुआ.
मन मिट्टी के मोल हुआ.
क्या बात है योगेन्द्र जी, बहुत सटीक लिखी आप ने यह कविता.
धन्यवाद
जब से तन अन्मोल हुआ.
मन मिट्टी के मोल हुआ.
वाह मौदगिल जी वाह -आपके काव्य प्रणयन में जबर्दस्त सम्प्रेषनीयता होती है !
छोटी बहर में लिखना मुश्किल होता है, लेकिन आपने फिर यहॉं चमत्कार कर दिखाया है, बधाई।
बाहर सारे राम बने अन्दर रावन खेल हुया बहुत हि सत्य है बधाइ
bahut sundar likha hai aapne
बहुत बढ़िया जी !
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