पगला हुआ.....

सोच भी बिखरी हुई है, ज़ेहन भी उलझा हुआ.
आदमी इस दौर का भई किस क़दर बिखरा हुआ.

आग लेकर घूमता है वो जुबां में इस क़दर,
प्यार का भी बोल उसका यों लगे दहका हुआ.

अपने ही लेने लगे, अपनों से पंगा आजकल,
देखते हैं शान से घर-द्वार को ढहता हुआ.

ना सहनशक्ति है, ना ही बात मन के मान की,
एक पल गलबहियां दूजे पल में लो झगड़ा हुआ.

बोर्डिंग-कान्वेंट से लौटे हुये बच्चे की सोच,
मां तो है भई फालतू अब बाप भी बोझा हुआ.

तू दखल ना देना मुझमें, मैं भी दूंगा ना दखल,
अपनी लव-मैरिज़ बचाने को यही सौदा हुआ.

कैसे रिश्ते, कैसे नाते, कैसी दुनिया, 'मौदगिल',
प्यार दिखलाएगा, समझेंगें, सभी पगला हुआ.
--योगेन्द्र मौदगिल

31 comments:

विवेक सिंह said...

मज़ेदार ! आज तो बडे स्मार्ट लग रहे हैं जी ! काले चश्मे में !

संगीता पुरी said...

इस दौर का सही चित्रण....बहुत सुंदर...

Pt. D.K. Sharma "Vatsa" said...

बोह्त बढिया.......
इब्बि थारे दूसरे ब्लाग पै तै ताऊ आला किस्सा पढ कै ही हटया था.हंस हंस कै पेट पाटन नै आ गया.

अर एक बात पूछनी चाहूं था के आज कल फोटू बदल बदल कै कोई अक्सपैरीमैंट करण लाग रहे हो के, या फेर थारे ब्लाग का किसी नै किडनैप तै नी कर लिया.

P.N. Subramanian said...

बड़ी दुखद स्थिति है मौदगिल जी. आपने बजा फरमाया. आख़िर ये काले चश्मे का माजरा क्या है, वह भी ठंड के दिनों में?

Udan Tashtari said...

बहुत सही खाखा खींचा है..वाह!!

bijnior district said...

बहुत अच्छी गजल।

gaganjaingarg said...

chashma jo kala laga rakha hai ,
iske niche bhala kya chhupa rakha hai.

Asha Joglekar said...

सच्चाई ।

राज भाटिय़ा said...

बहुत सुंदर , क्या बात है सच मै पगला आशिक ही तो है.
धन्यवाद

Smart Indian said...

इसी कू तो कलयुग बोलता था जी!
अच्छी कविता है, मगर पहले यह बताइये कि आपकी फोटो हटाकर यह काले चश्मे वाला शख्स कौन आ बता है यहाँ?

seema gupta said...

सोच भी बिखरी हुई जेहन भी जेहन भी उलझा हुआ .............
"इस एक लाइन ने ही आम इंसान की व्याख्या कर दी है कितना सच है इन शब्दों में सुब कुछ ही तो जैसे उलझा और बिखरा है....और कुछ भी समेटे नही बनता....शानदार अभिव्यक्ति.."

Regards

ताऊ रामपुरिया said...

बहुत लाजवाब अभिव्यक्ति. शुभकामनाएं

रामराम.

Dr. Amar Jyoti said...

'आदमी इस दौर का…।'
बहुत ख़ूब!

भारतीय नागरिक - Indian Citizen said...

नये युग की कलुषताओं का खूब चित्रण किया है, सर, कहीं मुम्बई जाने का इरादा तो नहीं है आपका.

डॉ .अनुराग said...

सच कहा मोदगिल साहब

शारदा अरोरा said...

यथार्थ का चित्रण करने में इस रचना का जवाब नहीं | आप तो हास्य कवि हैं , संवेदनाओं की व्याखा भी शानदार कर लेते हैं |

राजीव तनेजा said...

आज के ज़माने की सोच को उजागर करती बढिया गज़ल...

दिगम्बर नासवा said...

मोदगिल साहब
क्या लिख दिया, गज़ब, मजा आ गया

Abhishek Ojha said...

गजब की सच्चाई लिखते हैं आप !

परमजीत सिहँ बाली said...

बहुत उम्दा रचना है।बधाई।

श्रद्धा जैन said...

apni love marriage bachane ka yahi souda hua
kamaal kaha hai
kitna sach

bhaut achha lagta hai aapko padhna

KK Yadav said...

Nice Poem.
गाँधी जी की पुण्य-तिथि पर मेरी कविता "हे राम" का "शब्द सृजन की ओर" पर अवलोकन करें !आपके दो शब्द मुझे शक्ति देंगे !!!

"अर्श" said...

jam gai baat akhirkar... bahot hi badhiya likha hai sahab aapne dhero badhai aapko...


arsh

सुशील छौक्कर said...

सच कहती हुई रचना। वाह वाह वाह ....।

Arvind Mishra said...

सचमुच गजब !

अविनाश वाचस्पति said...

गर यही है पागलपन
तो कौन न पगलाना
चाहेगा,
अपना नाम लिखाएगा।

इष्ट देव सांकृत्यायन said...

कब से तो आपको बुला रहे हैं की दिल्ली आइये तो शाहदरा में दिखा दें. आप बतावे नहीं मान रहे हैं तो हम क्या करें!

Reetesh Gupta said...

बढ़िया है जी...बहुत सुंदर ...बधाई

गौतम राजऋषि said...

अच्छी गज़ल है सर जी---हमेशा की तरह आस-पड़ोस से जुड़ी हुई

Alpana Verma said...

''आग ले कर घूमता है............''
वाह! क्या शेर है!


पूरी ग़ज़ल ही बहुत खूबसूरत है!
यथार्थ के करीब!!

Vinay said...
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