बाबा...

मन भारी, तन बेदम बाबा.
सारी दुनिया मातम बाबा.

वो जख़्मों को नाप रहे हैं,
जिनके हाथों मरहम बाबा.

चैन भला क्या उसके हिस्से,
जिस के हिस्से में ग़म बाबा.

दोनों आंसू बांट रहे हैं,
क्या शोला, क्या शबनम बाबा.

आधा दरज़न बेटे फिर भी,
बाप के हिस्से आश्रम बाबा.

ना रिश्तों में गरमी बाक़ी,
ना यारी में दमख़म बाबा.

धूआं-धूआं सारी दुनिया,
बुझा-बुझा सा मौसम बाबा.

पंडित हो, मुल्ला हो, दोनों,
बेच रहे हैं तिकड़म बाबा.

नेता जब से हुये सयाने,
राजनीति है निर्मम बाबा.

अपना सपना यही 'मौदगिल',
नगरी-नगरी खुशदम बाबा.
--योगेन्द्र मौदगिल

27 comments:

Smart Indian said...

बहुत सुंदर रचना. नीचे की पंक्ति तो लाजवाब है:
"आधा दर्ज़न बेटे फ़िर भी, बाप के हिस्से आश्रम बाबा"

भारतीय नागरिक - Indian Citizen said...

वाह, बहुत खूब, ताज महल, अप्रतिम.

Unknown said...

बहुत सुंदर रचना है. बहुत सारे सच कह दिए हैं आपने इस कविता के माध्यम से.

Vinay said...

100 प्रतिशत खरी बात कही आपने,

---मेरा पृष्ठ
गुलाबी कोंपलें

अमिताभ मीत said...

आप मालिक हैं. कमाल है .... बस कमाल है !!

रंजू भाटिया said...

बहुत सुंदर लिखा है आपने

Shiv said...

बहुत सुंदर रचना है. बहुत शानदार.

एस. बी. सिंह said...

बात निराली है मौदगिल की
लिखते बढ़िया हरदम बाबा।

नववर्ष की ढेर सारी शुभकामनाएं।

आभा said...

मार्मिक और सटीक...

Sadhak Ummedsingh Baid "Saadhak " said...

साधक को खुश किया आपने,
कितना सुन्दर लिखा है बाबा.

अविनय दिखा चुका हूँ पहले,
परिचय नहीं था आपसे बाबा.

मैं तो नया-नया आया हूँ,
महारथी तो आप हैं बाबा.

सुन्दर गजल से स्वीकारें
साधक के प्राणाम ओ बाबा.

RAJIV MAHESHWARI said...

कमाल कर दिया बाबा

राजीव महेश्वरी

admin said...

बहुत खूब।

गजल पढ कर मजा आ गया।

Abhishek Ojha said...

यथार्थ !
'आधा दर्ज़न बेटे फ़िर भी, बाप के हिस्से आश्रम बाबा'

बवाल said...

योगी बड्डे यही कहूंगा, आप हो ग़ज़ले-आज़म बाबा
क्या बात है ! वाह वाह

मोहन वशिष्‍ठ said...

अपना सपना यही 'मौदगिल',
नगरी-नगरी खुशदम बाबा.


बेहतरीन बाबा

ताऊ रामपुरिया said...

बहुत खूबसुरत बाबा. बाई.


-खून्टेआले ताऊ की रामराम.

"अर्श" said...

बहोत खूब लिखा है आप ने ,क्या कहूँ कोई शब्द नही है मेरे पास...बस यही के कमाल हो गया ....


अर्श

विवेक सिंह said...

बाबा भी सोच रहे होंगे किस कवि से पाला पड गया . सब शांति भंग कर दी . अबकी बार धारा 144 लगाए हुए मिलेंगे :)

नीरज गोस्वामी said...

कैसे लिख लेते बतलाओ
इतनी अच्छी ग़ज़लें बाबा
भाई जी आप का जवाब नहीं...लाजवाब शायरी रचते हैं आप...वाह...
नीरज

Straight Bend said...

Very good flow and tarannum. Overall a good creation .. leaves you with a feeling if reading good Ghazal ... but could not find any She'r that can be called powerful.

God bless
RC

रंजना said...

वाह ! क्या कहूँ....यथार्थ के रंगों का दिग्दर्शन कराती sadaiv की भांति बहुत बहुत बहुत ही सुंदर रचना...

Manish Kumar said...

achcha hai...

लावण्यम्` ~ अन्तर्मन्` said...

बहुत बढिया लिखा है
योगेन्द्र जी आपने -- बधाई
लावण्या

राज भाटिय़ा said...

आधा दर्ज़न बेटे फ़िर भी,
बाप के हिस्से आश्रम बाबा"
आज का नंगा सच,
बहुत अच्छी लगी आप की कविता.
धन्यवाद

दिगम्बर नासवा said...

सत्य कड़ुआ होता है, तीखा होता है, धार दार होता है, और आपकी रचनाएं सत्य के करीब होती हैं

आधा दर्जन बेटे फ़िर भी............

क्या बात कह दी

श्रद्धा जैन said...

आधा दर्ज़न बेटे फ़िर भी,
बाप के हिस्से आश्रम बाबा"

aaj ka sach

aapki gazal main aaj padne milta hai bhaut achha lagta hai

गौतम राजऋषि said...

छोटी बहर में कहर बरपाती गज़ल है योगेन्द्र जी....
"वो जख्मों को नाप रहे हैं / जिनके हाथों मरहम बाबा"....