कोई वज़ह तो है.........

कोई वज़ह तो है कि सारा शहर है सुलगा हुआ.
हर गली, हर मोड़, हर इक द्वार है पिघला हुआ.

बाज़ार में हर चीज़ के भई दाम सुन कर यूं लगे,
मस्तिष्क में रक्खा हो जैसे कोयला जलता हुआ.

राशनिंग के दौर में कुम्हला गया है आदमी,
महंगी हुई है ज़िन्दगी पर आदमी सस्ता हुआ.

मजदूर बस्ती के मुहाने, हैं मुहैय्या मयक़दे,
रात-दिन मज़दूर मिलता है वहां लुढ़का हुआ.

भूख, रोटी, नौकरी, संत्रास, कुंठा, त्रासदी,
हैं ग़ज़ल के लफ़्ज़ के अंगार है दहका हुआ.

जब से भरती हो गया अपना भतीजा 'मौदगिल'
लौटता है घर करैंसी नोट ही गिनता हुआ.
--योगेन्द्र मौदगिल

26 comments:

ताऊ रामपुरिया said...

बहुत मार्मिक रचना.

रामराम.

Arvind Mishra said...

वाह !! गहरा कटाक्ष आज की व्यवथा पर -दिल को भेद जाने वाली ऐसी रचनाएं बस मौदगिल ही लिख सकते हैं ! !

Yogesh Verma Swapn said...

yogendra ji shuru ke teen sher to gazab ke hain. badhai.

इष्ट देव सांकृत्यायन said...

अच्छी रचना है भाई!

गौतम राजऋषि said...

क्या बात है सर...वाह "बाज़ार में हर चीज के भई दाम सुन कर यूं लगे / मस्तिष्क में रक्खा हो जैसे कोयला जलता हुआ"
वर्तमान को शेर में ढ़ालने का आपका कोई सानी नहीं..
"अंधी आँखें गीले सपने" के जादू में डूबा हुआ हूं अभी तो

Ashok Pandey said...

राशनिंग के दौर में कुम्‍हला गया है आदमी,
महंगी हुई है जिंदगी पर आदमी सस्‍ता हुआ।
............................
भूख, रोटी, नौकरी, संत्रास, कुंठा, त्रासदी,
हैं गजल के लफ्ज के अंगार है दहका हुआ।

भाई योगेन्‍द्र मौदगिल जी बहुत खूब..आपने आज के जीवन की विडंबनाओं को रचना में बखूबी दर्शाया है। ईश्‍वर से प्रार्थना है कि नए साल में आपको व आपके परिजनों को इन हालातों से कोसों दूर रखें।

"अर्श" said...

रात-दिन मज़दूर मिलता है वहां लुढ़का हुआ .......वह मौदगिल साहब बहोत खूब लिखा है आपने खुल के काफी दिनों बाद ऐसी ग़ज़ल पढ़ने को मिली आपके द्वारा बहोत बहोत बधाई साहब..आपका स्नेह भी मिला मेरे ब्लॉग पे ,
ढेरो बधाई कुबूल करें....

अर्श

Vinay said...

बहुत गंभीर बातें कह गये हर शे'र में


---
चाँद, बादल और शाम
http://prajapativinay.blogspot.com

hem pandey said...

नव वर्ष पर आपकी प्रस्तुति पढ़ी. अच्छी लगी. रचना का सकारात्मक उल्लेख मैंने अपने ब्लॉग की नयी पोस्ट में किया है. कृपया देखियेगा.

Unknown said...

बिल्कुल सत्य लिखा है आपने!

नीरज गोस्वामी said...

रोजाना जीवन में होने वाली त्रासदियों को आप जिस अंदाज़ से अपनी ग़ज़लों में ढालते हैं वो देखने लायक होता है और ये बात ही आप को अन्य शायरों से अलग करती है....बेहद खूबसूरत अंदाज़ में आप ने ये ग़ज़ल कही है...पढ़ कर सिवाय वाह वा...करने के और कुछ हो ही नहीं रहा...
नीरज

Abhishek Ojha said...

वाह ! इस लाइलाज वजह की नब्ज आपकी नजर ही पकड़ सकती है.

राज भाटिय़ा said...

अरे वाह आप ने तो आज के सारे हालत अपनी कलम से यहां उतार दिये... बिलकुल सच ऎसा ही हो रहा है आज.सभी शेर बहुत भाव लिये है.
धन्यवाद

Pt. D.K. Sharma "Vatsa" said...

आपकी इस रचना को मैं सुबह से दो-तीन बार पढ चुका हूं लेकिन तारीफ के लिए अभी तक सही शब्दों का चुनाव नहीं कर पाया हूं.
अब आप लिखते ही इतना जबरद्स्त है कि पढने वाला खुद ही 'बेलफ्ज' हो जाता है.

admin said...

कोई वज़ह तो है कि सारा शहर है सुलगा हुआ.
हर गली, हर मोड़, हर इक द्वार है पिघला हुआ.

भूख, रोटी, नौकरी, संत्रास, कुंठा, त्रासदी,
हैं ग़ज़ल के लफ़्ज़ के अंगार है दहका हुआ.

जब से भरती हो गया अपना भतीजा 'मौदगिल'
लौटता है घर करैंसी नोट ही गिनता हुआ.

दिल को छू लेने वाले शेर है, बधाई।

भारतीय नागरिक - Indian Citizen said...

बहुत मार्मिक अभिव्यक्ति

मोहन वशिष्‍ठ said...

आए होए मौदगिल साहब जी आपकी कलम को सलाम

दिगम्बर नासवा said...

रोज मर्रा की यंत्रणा को खूबसूरत अंदाज मैं उतारा है.
मज़ा आ गया मौदगिल साहब

कुश said...

वाह उस्ताद वाह!

प्रवीण त्रिवेदी said...

रोज मर्रा की यंत्रणा!!!!
मार्मिक रचना!!!!

और अब चलिए !! मेरी मदद करने .....

Unknown said...

सही में !! गहरा कटाक्ष आज की व्यवथा पर...

Straight Bend said...

Last She'r is very interesting!

पूनम श्रीवास्तव said...

Respected Yogendra ji,
Bahut sundar gajal.Hardik badhai.Mere blog par aane ke liye dhanyavad.

Alpana Verma said...

कोई वज़ह तो है कि सारा शहर है सुलगा हुआ.
हर गली, हर मोड़, हर इक द्वार है पिघला हुआ.


एक कड़वा सच बताती हुई कविता.
यही है व्यवस्था का बद हाल.

Smart Indian said...

यह ग़ज़ल मुझे बहुत अच्छी लगी!

daanish said...

"जो भी पढ़ता आपको, उस को मिली है हर खुशी ,
हो के शामिल बज़्म में, अब मैं भी उन जैसा हुआ."

हुज़ूर ! आपको पढ़ना हमेशा ही एक सुखद अनुभव रहता है ...
आप ब्लॉग पर पधारे, मेरे लिए फख्र की बात है, शुक्रिया !
आप की रचनाएं सब के लिए प्रेरणा संदेश होती हैं, आपकी लेखनी बहोत समृध्द है
मुबारक बाद क़ुबूल फरमाएं !!
---मुफलिस---