कुल्हाड़ी देख कर सिज़दा नहीं सीना किया होगा.
ये जंगल की हक़ीकत है, नगर को भी पता होगा.
कईं सरगोशियां, आपस में, दीवारों ने की होंगी,
खुले सेहनों का ये बेबाकपन सब को खला होगा.
नज़ारे दूर के होंगें, परों की फड़फड़ाहट में,
कबूतर गुम्बदों से जब निकल ऊपर उड़ा होगा.
खिजां से क्या गिला करना, बहारें फिर भी आएंगी,
मैं मौसम हूं, यक़ीनन तू भी मुझमें आशना होगा.
बचा रखना, वज़ूद अपना, जरूरी है ज़माने में,
सितारों, जुगनुऒं से ये सलीका सीखना होगा.
--योगेन्द्र मौदगिल
23 comments:
yaugendra bhai,
bahut khoob, aapkaa ye andaaje bayan bhee katilaanaa hai, ab laut aaye hain to padhte rahenge ya kahun ki katl hote rahenge.
बहुत संवेदनशील रचना है
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चाँद, बादल और शाम
http://prajapativinay.blogspot.com/
मौदगिल साहब आखिरी शे'र तो जैसे कहर बरपा रहा है बहोत खुबसूरत लिखा है आपने ढेरो बधाई और साधुवाद बंधुवर .....
अर्श
'खुले सहनों का ये बेबाकपन…'
बहुत ख़ूब!
बहुत खूब कहा आपने हर शेर अच्छा लगा
सुभानअल्लाह! बचा रखना वजूद अपना...... आभार.
ये जंगल की हकीकत है नगर को भी पता होगा
बहुत सुंदर!
लाजवाब रचना !
रामराम !
योगेन्द्र जी
एक और हकीकत मैं डूबी सुंदर कविता
मज़ा आ गया पढ़ कर
वाह मौदगिल साहब वाह ,
किस किस शेर की तारीफ करूं
नज़ारे दूर के होंगे परों की फ़ड़फड़ाहट में
वाह वाह
हर तरफ से इक आह सुनाई दे रही,
हर कोई आप की गज़ल का कायल हुआ होगा।
मेरा एक आग्रह है आपसे अपना ग़ज़ल संग्रह "अंधी आँखें गीले सपने" मुझे वी पी पी से भिजवाईए न मैं और जो भी मूल्य होगा चुका कर पढ़ना चाहूंगा। मेरा पता आप मेरे व्लॉग से ले सकते हैं
prakashbadal.blogspot.com
किस शेर पर दाद दूं सर..सब एक-से-बढ़ कर एक हैं खास कर मक्ता तो गज़ब का है और कई सरगोशियां आपस में दीवारों ने की होंगी तो उफ
ये सारा जिस्म झुककर बोझ से दुहरा हुआ होगा
मैं सजदे में नहीं था, आपको धोखा हुआ होगा।
दुश्यंत का यह शेर याद आ गया।
आदाब !
वाह! वाह! क्या खूब लिखा है!
एक एक शव्द भावना मे डुबा हुआ है, बहुत सुंदर योगेन्द्र जी किस किस शेर की तारिफ़ करे सभि एक से बढ कर एक.
धन्यवाद
वाह मौद्गिलसाहब हर शेर लाजवाब !
बहुत अच्छी गजल. कोई भी पढ़कर सराहे बिना नहीं रह सकता. बधाई.
wah wah
bahut khoob.....is gajal ka doosra sher sabse khas hai....aapne shayad lock laga rakha hai isliye copy nahi kar paaya .
बहुत सुंदर भाव
बचा रखना, वज़ूद अपना, जरूरी है ज़माने में,
सितारों, जुगनुऒं से ये सलीका सीखना होगा.
भाई जी...आपकी ग़ज़लों लाजवाब होती हैं...और ये तो बहुत ही कमाल की है...जिंदाबाद जनाब...जिंदाबाद...
नीरज
कुल्हाड़ी देखकर सिजदा नहीं सीना किया होगा
ये जंगल की हकीकत है नगर को भी पता होगा
लाजवाब...
बहुत खूब
...
इसे कहते हैं दिलो-दिमाग पे छा जाने का हुनर
.
द्विजेन्द्र द्विज
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