मित्रों आप सभी का आभारी हूं
एक अन्य रचना के साथ पुनः उपस्थित हूं
कामसूत्र कंडोम दिखाता, चैनल युग का टीवी.
बेटा-बेटी आंख फाड़ते, नज़र झुकाती बीवी.
घर के भीतर खुली दुकान...
जय जय जय हो हिंदुस्तान...
ईस्टइंडिया के वंशज़ हैं, सभी कंपनी वाले.
हड़काएंगें तुझको चाहे, जितनी पूंछ हिला ले.
स्वयं की खुद ही कर पहचान...
जय जय जय हो हिंदुस्तान...
सकल क्रान्ति कम्प्यूटर की, बन गयी देसी हलुवा.
नीली फिल्में देख रहे हैं, मिल कर बंटी-ललुवा.
बच्चे सीख गये विग्यान...
जय जय जय हो हिंदुस्तान...
कर्म कला है, कला कर्म है, पैसा इनका संगी.
पैसा ले कर फिरैं, नाचती, बालाएं अधनंगी.
नंगे बेच रहे सामान...
जय जय जय हो हिंदुस्तान...
फिल्म रिलेटिड कम्पीटीशन, हर चैनल पर छाया.
बूढ़ा दद्दू इंस्टीच्यूट में, डांस सीखने आया.
पोते फेंक रहे मुस्कान...
जय जय जय हो हिंदुस्तान...
लिटरेचर में काग़ज़ काले, तन के, मन के दुखड़े.
कविता लिखनी छोड़ लिखो, रे, धारावाहिक मुखड़े.
फिल्मी गीत बने पहचान...
जय जय जय हो हिंदुस्तान...
कैसे-कैसे दांव, दिखा, सकती है रे देवरानी.
धारावाहिक देख-देख कर, सन्न हुई जेठानी.
ससुर जी ढूंढ रहे शम्शान...
जय जय जय हो हिंदुस्तान...
च्यवनप्राश की जगह सजे हैं, चाकलेट के पैकेट.
पंडित्जी भी पूजा करते, पहन के लैदर-जैकेट.
कण-कण छोड़ गये भगवान...
जय जय जय हो हिंदुस्तान...
--योगेन्द्र मौदगिल
27 comments:
बहुत खूब। आप के काव्य में बहुत रवानी है।
वाह मौदगिल साहब, पढ़कर मजा आ गया। क्या कविता है।
क्या सही चित्र खीचा है मौदगिल भाई। धन्यवाद
जबरदस्त ! मजे आ गए ! चिंता भी हो रही है |
बहुत लाजवाब !
रामराम !
कैसे कैसे दावं दिखा.....
ससुर जी ढूढं रहे...
योगेन्दर जी क्या शव्द ढूढ कर लाये है एक एक शव्द आप की कविता का सचा हाइ आज के युग मै.
धन्यवाद
भाषा हास्य से भरपूर है लेकिन बात १६ आने खरी
नाम मौद्गिल है मेरा सब की खबर रखता हूँ :)
बना दिया बाज़ार राष्ट्र को, भूल गए अपना इतिहास.
बहुत अच्छी और सच्ची बात कही है।
नीली फिल्में देख रहे हैं,मिल कर बंटी-ललुवा..
आपके इन्हीं सब जरा हट कर के कहे गये जुमलों से अद्भुत हो जाती हैं आपके रचनायें..
वाह!!!!!!!!!!!!१
कविता तो आपकी हमेशा की तरह सुन्दर है ही.इसमे तो कोई शक की गुन्जाईश ही नहीं है.
लेकिन ये सोच कर हैरानी होती है कि आखिर हम कहां जा रहे है.
आज हमारे समाज ने एक ऎसे रास्ता चुन लिया है,जिसकी मंजिल दूर-दूर तक नहीं दिखाई पड्ती, दिखाई देता है तो सिर्फ ओर सिर्फ अन्धकार.
जिंदाबाद मोदगिल भाई जिंदाबाद...बहुत ही अच्छी रचना है आपकी...हास्य की मीठी चटनी के साथ यतार्थ की तीखी मिर्च खिला दी है आपने...वाह
नीरज
--yahi aaj kal vastivik sthiti hai..
-- aap ne apni kavita ko hasya aur vyangy ki chashni mein dubo kar itni badee baton[samsyaon] ko asani se kah diya -
-achchee rachna ke liye badhayee.
मोदगिल भाई जिंदाबाद | बहुत अच्छी रचना |
योगेन्द्र जी
क्या लिखते हैं आप. हमेशा की तरह आप के अपने ही अंदाज़ की कविता
कविता के साथ साथ जो व्यंग का तडका आप लगाते हैं, मज़ा हि आ जाता है
बहुत पैनी रचना. यथार्थ समाया हुआ.
हमेशअ की तरह उत्तम...! बधाई
सच कहा साहब !
आज के कठोर यथार्थ के मुंह पर व्यंग का उतना ही कठोर तमाचा। बधाई।
kya likha hai sir ji ..
sasur dhoondh rahe hai shamshan ...
maan gaye sir ji ......
appko bahut badhai...
vijay
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बहुत सही! सहजतापूर्वक गंभीर चोट की आपने। ऐसी सुंदर रचनाएँ पढ़वाते रहने का शुक्रिया।
बहुत ही ज़बरदस्त !!!!!!!!!!!!
बहुत खूब। जय हो हिन्दुस्तान।
Adbhut....Happy X-mas.
दुशाले में लपेट कर मार मार मारना इसे कहते है;न
Bahut Sundar, Gambhir muddo ko hashya shali me pradarshit karne ki aapki kala prasnashaniye hai.
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