आया तो था नज़र उठा कर.
लौट गया पर नज़र बचा कर.
सचमुच कितना जालिम है तू,
चुप बैठा है मुझे बुला कर.
चिट्ठी पढ़ली, पढ़ कर रख दी,
बैठ गया फिर चैन लुटा कर.
शहर में इन्सां भी तो होंगें,
चल फिर से इक बार पता कर.
अब तो बस शम्शान चलेंगें,
तन को नहला और धुला कर.
बात प्यार की छेड़ दे कोई,
दिन भर की हर बात भुला कर.
चेहरे से मन पढ़ूं 'मौदगिल',
मुझ को ये तौफ़ीक़ अता कर.
--योगेन्द्र मौदगिल
28 comments:
शहर में इन्सां भी तो होंगें,
चल फिर से इक बार पता कर.
अब तो बस शम्शान चलेंगें,
तन को नहला और धुला कर.
bahut sunder
शहर में इन्सां भी तो होंगे
चल फिर से इक बार पता कर
बहुत संदर! आनंद आ गया।
चेहरे से मन पढूं ’मौदगिल’
मुझ को ये तौफ़ीक अता कर
...सुभानल्लाह योगेन्द्र साब-सुभानल्लाह!!!
तेरे शेरों पे जां लुटाऊँ
सारी दुनिया को पढा कर
चिट्ठी पढ़ली, पढ़ कर रख दी,
बैठ गया फिर चैन लुटा कर.
भाई जी कुछ अलग सी बात रहती है आप की ग़ज़लों में जो और कहीं दिखाई नहीं देती है, कमाल के भाव और शब्दों से सजाते हैं आप अपने शेर को...लिखते रहें और हमें आनंद की सरिता में डुबकियां दिलाते रहें...
नीरज
बहुत संदर! आनंद आ गया...
शहर में इंसान भी हैं
मै आया तो था तुझे बता कर
जरा सी देर में शम्शान चल दिए
मुझ को बहला और भुला कर |
गज़ब है भाई ...
बहुत खूब... हमेशा की तरह सुंदर गजल।
भाई योगेन्द्र जी,
आपके ग़ज़ल के निम्न शेर
चिट्ठी पढ़ली, पढ़ कर रख दी,
बैठ गया फिर चैन लुटा कर.
को पढ़ कर लगा कि प्रतिक्रिया तो देनी ही पड़ेगी, वरना अगली
बार आप लिख मारेगें कि
ब्लॉग पढ़ली, पढ़ कर रख दी,
बैठ गया फिर चैन लुटा कर.
वरना अपनी तो यही मर्जी थी कि
अब तो बस शम्शान चलेंगें,
तन को नहला और धुला कर.
और वही ढेरों गप - शप करेगें.
खैर ये तो हुई मजाक की बातें, पर सुंदर ग़ज़ल प्रस्तुति पर यदि हार्दिक बधाई न दी जाय, तो शायद अन्याय होगा और आप फिर कह उठेंगे कि
शहर में इन्सां भी तो होंगे
चल फिर से इक बार पता कर
चन्द्र मोहन गुप्त
क्या बात है,बहुत ही सुंदर
धन्यवाद
बहुत खूबसूरत ! शुभकामनाएं !
'………चल फिर से इक बार पता कर'
सहज-सरल शब्दों में गंभीर भाव।
बधाई।
अब तो बस शम्शान चलेंगें,
तन को नहला और धुला कर.
" ah! kitne sereious baat ko kitne saralta se likha or vykt kiya hai aapne, hairan hun..."
regards
चिट्ठी पढ़ली, पढ़ कर रख दी
बैठ गया फिर चैन लुटा कर
बहुत सुंदर!
शहर में इन्सां भी तो होंगें,
चल फिर से इक बार पता कर
पूरी कविता इस से ही सार्थक हो गयी
शहर में इन्सां भी तो होंगें,
चल फिर से इक बार पता कर.
बहुत खूब !
bahut khub sir
बात प्यार की छेड़ दे कोई,
दिन भर की हर बात भुला कर.
चेहरे से मन पढ़ूं 'मौदगिल',
मुझ को ये तौफ़ीक़ अता कर.
हर बार एक से बढ कर एक ग़ज़ल.
तारीफ करने के लिए लफ्ज़ नही है मेरे पास.
सुंदर गजल।
बधाई।
वाह बहुत सुन्दर।
सच मुच कितना जालिम है तू ,
चुप बैठा है मुझे बुलाकर ..
बहोत खूब साहब क्या अंदाज है आपके भी बहोत मज़ा आया
ढेरो बधाई आपको ...
रेगार्स्ड्स
अर्श
शहर में इन्सां भी तो होंगें,
चल फिर से इक बार पता कर.
अब तो बस शम्शान चलेंगें,
तन को नहला और धुला कर.
बहुत ही बेहतरीन गजल के लिए बारम्बार बधाई हो आपको मौदगिल साहब जी
वाह बहुत सुन्दर।
kya baat hai..itani chhoti chhoti panktiyo.n me itani gahri gahari bate.n kahan kash hame bhi aata.....!
bahut hi sundar rachna hai.
अब तो बस शम्शान चलेंगें,
तन को नहला और धुला कर.
बात प्यार की छेड़ दे कोई,
दिन भर की हर बात भुला कर.
Kya shandar ghazal padh dee yogee badde aapne. vaah vaah.
चेहरे से मन पढ़ूं 'मौदगिल',
मुझ को ये तौफ़ीक़ अता कर.
behtareen ada hai makte kee. kya kahna !
क़ातिलाना रचना!
Beautiful! Sarey hi achche hain but loved the title She'r most!
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