वक्त के हस्ताक्षर.........

शबनमी तारे भी जिसकी आंख से वंचित रहे.
वक्त के हस्ताक्षर उस दर्प पर अंकित रहे.

घर के बाहर वो रहा अक्सर लबादे ऒढ़ कर,
घर के भीतर उसके पर नाटक कईं मंचित रहे.

भावना गूंगी, बधिर संवेदना के सामने,
मन, वचन, सत्कर्म ,श्रद्धा, नेह तक कुंठित रहे.

ऒढ़ खादी हो न पाया लोकनायक वो मियां,
उसके दोनों हाथ इक-दूजे पै ही शंकित रहे.

टीस का इस ज़िस्म से रिश्ता बहुत गहरा सा है,
इसलिये तो ज़ख्म हर इक पोर पर टंकित रहे.

इस कदर हावी रही वात्सल्य की दौर्बल्यता,
उम्र भर निर्णय सभी बस नेह से सिंचित रहे.

आज अपनी डायरी में हर तज़रबा दर्ज़ कर,
नस्ले-नौ के वास्ते कुछ 'मौदगिल' संचित रहे.
--योगेन्द्र मौदगिल

35 comments:

pallavi trivedi said...

इस रचना के दूसरे,पांचवे और छठवे शेर बहुत अच्छे लगे....कॉपी नही हो रहा था इसलिए शेर पूरे नही लिख पायी! बधाई....

P.N. Subramanian said...

मद्रासी क्या जाने कविता का स्वाद, संवेदनाओं से ओत प्रोत सविता जो चली.

"अर्श" said...

कमल की लेखनी ,असीम कृपा है आपपे,ग़ज़ल का मकता तो कमाल का है..
बहोत खूब लिखा है आपने ..
आपको ढेरो बधाई ..स्वीकार करें .......

एस. बी. सिंह said...

मन की बात मन की भाषा में। धन्यवाद

राज भाटिय़ा said...

बहुत खुब ,
धन्यवाद

गौतम राजऋषि said...

हर बार की तरह अद्‍भुत रचना है योगेन्द्र जी
और कई सारे नये काफ़ियों का इतना सुंदर प्रयोग देख चकित हूं

फिर से वाह वाह

जितेन्द़ भगत said...

बहुत सुंदर गजल/कवि‍ता।
अन्‍यथा न लें, सि‍र्फ जानने के ख्‍याल से पूछ रहा हूँ- गजल उर्दू शायरी पर आधारि‍त रही है। बाकी टि‍प्‍पणीकार भी इसे गजल बता रहे हैं, पर तत्‍सम शब्‍दों के अति‍शय प्रयोग से यह गजल की जगह कवि‍ता नहीं कही जाएगी ?

Anonymous said...

अच्‍छी रचना। बधाई।

ताऊ रामपुरिया said...

बहुत सुंदर रचना ! शुभकामनाएं !

राजा कुमारेन्द्र सिंह सेंगर said...

नमस्कार योगेन्द्र जी,
आपने सही कहा फंस ही गए थे...............नौकरी (पक्की) का जुगाड़ मिल गया था............इंटरव्यू था उसी की तैयारी में लगे रहे.
आज ही देकर फुर्सत पाए हैं .............अब आज से ही या कल से फ़िर आप सबके सामने आयेंगे.
याद रखने के लिए आभार

दीपक "तिवारी साहब" said...

सुन्दरतम काव्य ! तिवारीसाहब का सलाम !

भूतनाथ said...

सुंदर ! कविराज को प्रणाम !

Abhishek Ojha said...

कवि की ऐसी रचना पर क्या मिले? हमारी बजाई ताली तो पहुचेगी नहीं तो इस टिपण्णी को ही ताली समझिये !

Dr. Ashok Kumar Mishra said...

आधुिनक जीवन की िवसंगितयों को आपने बहुंत प्रभावशाली ढंग से अभिव्यक्त किया है ।

Alpana Verma said...

इस कदर हावी रही वात्सल्य की दौर्बल्यता,
उम्र भर निर्णय सभी बस नेह से सिंचित रहे.
ek sach hai....yah bhi.

sabhi alag rang hain--
bahut gahan soch parilakshit hoti hai aap ke lekhan mein

संगीता-जीवन सफ़र said...

भावना गूंगी,बधिर संवेदना के सामने
मन,वचन,सत्कर्म,श्रध्दा,नेह तक कुंटित रहे--
बहुत सुंदर अभिव्यक्ती है/आपको बहुत-बहुत बधाई/

Smart Indian said...

कविता तो अच्छी लगी ही हमेशा की तरह, PN सुब्रमनियन की टिप्पणी ने भी गुदगुदाया!

अमिताभ मीत said...

बहुत बढ़िया शेर भाई. भाषा का प्रयोग तो लाजवाब है.

Arvind Mishra said...

बहुत बढियां मौदगिल जी !

Anil Pusadkar said...

योगेन्द्र जी कविताओं मे मेरी रुची नही है लेकिन आपको पढे बिना रहा नही जाता।बहुत ही बढिया लिखते है आप् ,तारीफ़ के लिये शब्द भी नही है मेरे पास।बधाई हो आपको ।

पारुल "पुखराज" said...

bahut sundar rachnaa

बवाल said...

अहा योगी बड्डे, क्या ख़ूब हिन्दी ग़ज़ल सजाई है आपने. लगता १५.११.२००३ का दिन बेहतरीन ब्लॉग पेशकशों का दिन था. कम दर्ज हुईं पर क्या ख़ूब दर्ज हुईं है ना. और मक्ते का मिस्र-ए-सानी "नसले-नौ के वास्ते कुछ मौदगिल संचित रहे" ने ग़ज़ब रुतबा पैदा कर दिया ग़ज़ल में भाई, आज मज़ा आ गया.

बवाल said...

मुआफ़ करिए नस्ले-नौ

Vinay said...

qayaamat hai sh'er!

दिगम्बर नासवा said...

भावना गूंगी, बधिर संवेदना के सामने,
मन, वचन, सत्कर्म ,श्रद्धा, नेह तक कुंठित रहे.

सार-गर्भित रचना
हर शब्द, तमाम पंक्तियाँ जैसे बोल उठेंगी

कंचन सिंह चौहान said...

अतिम चार शेर विशेष असर वाले लगे मौद्गिल जी

अभिषेक मिश्र said...

ऒढ़ खादी हो न पाया लोकनायक वो मियां,
उसके दोनों हाथ इक-दूजे पै ही शंकित रहे.
खूब लिखा है आपने. बधाई.
हम bloggers को सोते से जगाने के बाद फ़िर पलट कर देखा भी नहीं आपने !

seema gupta said...

" tees ka is jism se rishta kuch gehra hai.......,kitne sehjta se jindge pr waqt ke hastakshtr ko ankit kiya hai aapne..."

Regards

भारतीय नागरिक - Indian Citizen said...

वो रहा अक्सर लबादे ऒढ़ कर,
घर के भीतर उसके पर नाटक कईं मंचित रहे

इसमें दुनिया की पूरी सच्चाई अंकित है.

admin said...

किस शेर पर दाद दूं, समझ में ही नहीं आया क्योंकि पूरी गजल ही लाजवाब है।

डॉ .अनुराग said...

आखिरी शेर बहुत खूब है .आपने कॉपी पेस्ट का आप्शन बंद कर रखा है

संगीता पुरी said...

बहुत सुंदर लिखा है। बधाई।

अनुपम अग्रवाल said...

मैंने सोचा,ढूँढू तो पाऊं,सराहूं तुझे
पढ़ अचम्भे में मेरे शब्द लंबित रहे

अनुपम अग्रवाल said...
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अनुपम अग्रवाल said...
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