नंगा लगता है...........

वो भी मुझ जैसा लगता है.
शीशे में उतरा लगता है.

रोज टूटता बीच-बिचाले,
औरत का सपना लगता है.

खेल-खेल में टूट न जाना,
जुड़ने में वक्फ़ा लगता है.

बूढ़ी विधवा, टूटी लाठी,
दुक्खों का मेला लगता है.

गुम्बद, कंगूरे सिंदूरी..
सूरज घर लौटा लगता है.

इसको पानी देना री बहुऒं..!
ये पीपल प्यासा लगता है.

देख रहा टुक गहरे-गहरे,
अपनों का मारा लगता है.

रौशन हैं यों तो दीवारें,
लेकिन घर सूना लगता है.

जब भी तेरे सामने आया,
वक्त कहीं ठहरा लगता है.

बापू पैताने-सिर बेटा,
घर बदला-बदला लगता है.

खादी से तन ढांप लिया पर,
अब भी वो नंगा लगता है.

बंधन कितना पक्का यारों,
दिखने में धागा लगता है.
--योगेन्द्र मौदगिल
गजल सर्वाधिकार सुरक्षित

25 comments:

Anil Pusadkar said...

kya baat hai ji.kha....adi pahne logo ki to wat laga di.badhiya likha

gaganjaingarg said...

wah modgil ji aaj ke smrt smaj per kya vyang kiya hai
बापू पैताने-सिर बेटा,
घर बदला-बदला लगता है.
aaj ke yug main yuvak paitane ka mutlub hi nahi jante.
इसको पानी देना री बहुऒं..!
ये पीपल प्यासा लगता है.
bahunon ko to kitty party ka pata hai wo kyo jaane pipal ko pani dena.
bahut badhiya aap ko kotish sadhuwad hai.

जितेन्द़ भगत said...

पहले सोचा कि‍ ये एक छंद ज्‍यादा अच्‍छा है

रौशन हैं यों तो दीवारें,
लेकिन घर सूना लगता है.


पर बाकी भी लाजवाब लगीं-

जब भी तेरे सामने आया,
वक्त कहीं ठहरा लगता है.

खादी से तन ढांप लिया है,
फिर भी वो नंगा लगता है.

बंधन कितना पक्का यारों,
दिखने में धागा लगता है.

Arvind Mishra said...

खादी से तन ढांप लिया है,
फिर भी वो नंगा लगता है.
क्या खूब !

seema gupta said...

खेल-खेल में टूट न जाना,
जुड़ने में वक्फ़ा लगता है.

बूढ़ी विधवा, टूटी लाठी,
दुक्खों का मेला लगता है.

"wah, vhee klaa, vhee mnmohak andaj, beautiful"

Regards

योगेन्द्र मौदगिल said...

सीमा जी, अरविन्द जी, जीतेंद्र जी और अनिल जी,
आपके स्नेह से अभिभूत हूं....

और गगन जी,
आप मेरा हरियाणवी ब्लाग भी देखें:-
haryanaexpress.blogspot.com

डॉ .अनुराग said...

बापू पैताने-सिर बेटा,
घर बदला-बदला लगता है.
ये शेर सब पर भारी है योगेन्द्र जी..........बेमिसाल.....

ताऊ रामपुरिया said...

रोज टूटता बीच-बिचाले,
औरत का सपना लगता है.

क्या बात है भाई ? नमन आपको !

कंचन सिंह चौहान said...

रोज टूटता बीच-बिचाले,
औरत का सपना लगता है.

खेल-खेल में टूट न जाना,
जुड़ने में वक्फ़ा लगता है.

बंधन कितना पक्का यारों,
दिखने में धागा लगता है.

waaah

शोभा said...

बूढ़ी विधवा, टूटी लाठी,
दुक्खों का मेला लगता है.

गुम्बद, कंगूरे सिंदूरी..
सूरज घर लौटा लगता है.

इसको पानी देना री बहुऒं..!
ये पीपल प्यासा लगता है.
बहुत अच्छे . बधाई

Abhishek Ojha said...

बहुत सुंदर योगेन्द्रजी...
बापू पैताने-सिर बेटा,
घर बदला-बदला लगता है.

बहुत कुछ बदल रहा है !

राज भाटिय़ा said...

बापू पैताने-सिर बेटा,
घर बदला-बदला लगता है.
बहुत ही सुन्दर, योगेन्दर जी माफ़ी चाहता हू सब से बाद मे मेरा ना० आया
धन्यवाद सुन्दर कविता के लिये

vipinkizindagi said...

sir, behatarin likha hai.....

aur aapne abhi tak nahi bataya ki meri kitab zindagi kaisi lagi.

योगेन्द्र मौदगिल said...

अनुराग जी, ताऊ जी, कंचन जी, शोभाजी, अभिषेक जी, भाटिया जी और विपिन जी,
आप सभी का मेरे प्रति स्नेह खूब है...
कृपया यही भाव बनाए रखें......

admin said...

जब भी तेरे सामने आया,
वक्त कहीं ठहरा लगता है.

बापू पैताने-सिर बेटा,
घर बदला-बदला लगता है.

खादी से तन ढांप लिया पर,
अब भी वो नंगा लगता है.

दिल को छू जाने वाले शेर हैं, बधाई।
-जाकिर अली रजनीश

Smart Indian said...

बहुत सुन्दर कविता, बधाई!

travel30 said...

बापू पैताने-सिर बेटा,
घर बदला-बदला लगता है.

Sundar shabdo ke sath bahut hi karar vyangya sir ji...


New Post :
I don’t want to love you… but I do....

श्रद्धा जैन said...

wah bhaut sunder sher kahe hain

खादी से तन ढांप लिया पर,
अब भी वो नंगा लगता है.

बंधन कितना पक्का यारों,
दिखने में धागा लगता है.

ye dono to bhaut kamaal rahe

श्यामल सुमन said...

रौशन हैं यों तो दीवारें,
लेकिन घर सूना लगता है.

भाई बहुत खूब। मजा आ गया।

सादर
श्यामल सुमन
09955373288
मुश्किलों से भागने की अपनी फितरत है नहीं।
कोशिशें गर दिल से हो तो जल उठेगी खुद शमां।।
www.manoramsuman.blogspot.com

Kavita Vachaknavee said...

badhiya hai.

Dr. Amar Jyoti said...

'रोशन हैं युं तो दीवारें…'जीवन की निस्सारता से उपजे रिक्तता के भाव की प्रभावी अभिव्यक्ति।

वर्षा said...

कोसी कितना दर्द दे गई।

सचिन मिश्रा said...

Bahut badiya.

shama said...

"Yon to raushan deevaren..." behad achha laga...
Waise sabhi kavya rachnaye bohothi achhee lagi, tippanee ispe de rahee hun. Ismeki kuchh panktiyan dilme ghar kar gayeen hain !

Satish Saxena said...

बड़ा अफ़सोस है कि आपके ब्लाग पता ही नही था !