युद्धरत यदि सर्वहारा चाहिये
जीतने पर विश्व सारा चाहिये
हार बैठे जंग हम तो क्या हुआ
एक हमला फिर दुबारा चाहिये
मध्यवर्गी जिन्दगी का लक्ष्य है
सिर्फ सुविधा से गुजारा चाहिये
होंसला टूटे न तो इन्सान को
एक तिनके का सहारा चाहिये
राख शोलों को उगल देगी अभी
बस हवाऒं का इशारा चाहिये
भव्य कविता की इमारत के लिये
कल्पना का ईंट-गारा चाहिये
--योगेन्द्र मौदगिल
18 comments:
इस गज़ल को पढने के बाद तो मैं आपको हास्य व्यंग्य कवि न कह कर साम्यवाद का वीररस कवि कहूँगा . माफ करें .
vivek ji se puri tarah sahmat hun.
हार बैठे जंग हम तो क्या हुआ
एक हमला फिर दुबारा चाहिये
मध्यवर्गी जिन्दगी का लक्ष्य है
सिर्फ सुविधा से गुजारा चाहिये
होंसला टूटे न तो इन्सान को
एक तिनके का सहारा चाहिये
bahut khoob..ek alag andaaz ki ghazal.
बहुत ही सुन्दर। आपके जुझारू तेवरों को सलाम।
क्या खूब लिखा है-
राख शोलों को उगल देगी अभी
बस हवाऒं का इशारा चाहिये
इस जज्बात को सलाम।
भव्य कविता की इमारत के लिये
कल्पना का ईंट-गारा चाहिये
बेहतरीन जी ! जोश आ गया हमको भी !
bahut achcha likha hai
badhiya....!
होंसला टूटे न तो इन्सान को
एक तिनके का सहारा चाहिये
राख शोलों को उगल देगी अभी
बस हवाऒं का इशारा चाहिये
" bhut jindadile se likhe gyee rachna hai, comendable"
Regards
हार बैठे जंग हम तो क्या हुआ
एक हमला फिर दुबारा चाहिये
बहुत ओज है !
"होंसला टूटे न तो इन्सान को
एक तिनके का सहारा चाहिये"
वैसे तो हर लाइन कमाल की है लेकिन ये पसंद आ गई. बहुत अच्छी रचना.
bahut hi sindar kruti hai.
भव्य कविता की इमारत के लिये
कल्पना का ईंट-गारा चाहिये
योगेन्दर जी, आशा से भरपुर हे आप की यह कविता.
धन्यवाद
मध्यवर्गी जिन्दगी का लक्ष्य है
सिर्फ सुविधा से गुजारा चाहिये
बहुत खूब!!
मध्यवर्गी जिन्दगी का लक्ष्य है
सिर्फ सुविधा से गुजारा चाहिये
hmmm sahi kaha aapne :)
मध्यवर्गी जिन्दगी का लक्ष्य है
सिर्फ सुविधा से गुजारा चाहिये
sirf in do line me aapne to sara bharta ka varnan kar diya bahot khub likha hai aapne ...sundar rachana ke liye badhai........
regards
Arsh
आप सभी सुधि पाठकों का वंदन-अभिनंदन....
aap ki is kalpana ko salaam !
bhut khoob ! yogendr ji !
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