खाली दीवारों से मुझको......

बिन बरसे कैसे जाऐगें शब्दों के घन छाए तो.
आंसू भी विद्रोह करेंगें हमने गीत सुनाए तो

उसे समर्थन और समर्पण मेरा पूरा है लेकिन,
वो भी तो भई गलती माने थोड़ा सा पछताए तो.

मार कुण्डली बैठा मन में इच्छाऒं का नाग अभी,
छोटे कैसे बच पाएंगें बड़े नहीं बच पाए तो.

खाली दीवारों से मुझको रोज सदाएं आती हैं,
दीवारों से मेरा रिश्ता कोई मुझे बताए तो.

सजन तुम्हारे-मेरे मन के भीतर शायद राम बसे,
लेकिन देह के रावण को यह बात कोई समझाए तो.

झूम-झूम इतराते भंवरे मादक गीत सुनाएंगें,
तेज हवा के डर से पागल ये बगिया मुस्काए तो.

घर का मुखिया अपने आंगन बैठा-बैठा सोच रहा,
तन्हा बैठा मर जाऊंगा घर मुझसे बतियाए तो.

पहले जैसी गति 'मौदगिल' पा ही जाएगा आखिर,
लेकिन शर्त यही है पहले थोड़ा सा सुस्ताए तो.
--योगेन्द्र मौदगिल

19 comments:

Smart Indian said...

मार कुण्डली बैठा मन में इच्छाऒं का नाग अभी,
छोटे कैसे बच पाएंगें बड़े नहीं बच पाए तो.

बहुत खूब मौदगिल साहब!

महेन्द्र मिश्र said...

बिन बरसे कैसे जाऐगें शब्दों के घन छाए तो.
आंसू भी विद्रोह करेंगें हमने गीत सुनाए तो
बहुत सुंदर योगेन्द्र जी बधाई.

Abhishek Ojha said...

घर का मुखिया अपने आंगन बैठा-बैठा सोच रहा,
तन्हा बैठा मर जाऊंगा घर मुझसे बतियाए तो.

बड़ा द्वंद्व है इस रचना में... भरा होते हुए भी खालीपन का जो चित्रण आपने किया है... लाजवाब है.

जितेन्द़ भगत said...

nice poem philosphical touch.

"अर्श" said...

घर का मुखिया अपने आंगन बैठा-बैठा सोच रहा,
तन्हा बैठा मर जाऊंगा घर मुझसे बतियाए तो.

shresth rachanawo mese ek ....bahot sundar ....badhi........



regards
Arsh

ताऊ रामपुरिया said...

सजन तुम्हारे-मेरे मन के भीतर शायद राम बसे,
लेकिन देह के रावण को यह बात कोई समझाए तो.

बहुत बढिया ! शुभकामनाएं !

भूतनाथ said...

आंसू भी विद्रोह करेंगें हमने गीत सुनाए तो
बहुत सुंदर , बधाई.

seema gupta said...

बिन बरसे कैसे जाऐगें शब्दों के घन छाए तो.
आंसू भी विद्रोह करेंगें हमने गीत सुनाए तो
"really fantastic, mind blowing"

Regards

दीपक "तिवारी साहब" said...

तन्हा बैठा मर जाऊंगा घर मुझसे बतियाए तो.

धन्यवाद और तिवारी साहब का सलाम आपको !

श्रीकांत पाराशर said...

Yogendraji, main kisi ek pankti ka ullekh karunga to doosari ke saath annyay hoga. aapke is geet ki har line behtarine hai. Maza aagaya. Aapka postal add bhejenge kya ?Mera add note karen- Editor, DAKSHIN BHARAT,12/1, Sowrashtrapet Main Road, BANGALORE-560 053. Personal no.099454 88004

योगेन्द्र मौदगिल said...

aap sabhi ka aabhaari hoon
Parashar g note kijiyega
--Yoginder Moudgil
2393-94, NHBC, Sector 12, PANIPAT 132103 haryana
09896202929, 09466202099

Udan Tashtari said...

गजब भाई!! बहुत खूब!!


निवेदन

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-समीर लाल
-उड़न तश्तरी

डॉ .अनुराग said...

खाली दीवारों से मुझको रोज सदाएं आती हैं,
दीवारों से मेरा रिश्ता कोई मुझे बताए तो.

bahut khoob......bahut achhe yogendar ji.....

राज भाटिय़ा said...

सजन तुम्हारे-मेरे मन के भीतर शायद राम बसे,
लेकिन देह के रावण को यह बात कोई समझाए तो.
योगेन्दर जी बहुत ही गुड बात कह दी आप ने.
धन्यवाद

राज भाटिय़ा said...

सजन तुम्हारे-मेरे मन के भीतर शायद राम बसे,
लेकिन देह के रावण को यह बात कोई समझाए तो.
योगेन्दर जी बहुत ही गुड बात कह दी आप ने.
धन्यवाद

vipinkizindagi said...

bahut sundar.......
behatarin.....

Manish Kumar said...

सजन तुम्हारे-मेरे मन के भीतर शायद राम बसे,
लेकिन देह के रावण को यह बात कोई समझाए तो

ye sher khas taur par pasand aaya.

संपादक सरल-चेतना said...

मौदगिल जी ध्यान दिलाने के लिये साधुवाद. अब आप दुबार " मेरी कविता" देखे और अपनी पृतिकिृया दें. आपके ब्लाॅग के लिये आपको बधाई.

Satish Saxena said...

कौन गलती मानता है अपनी आजकल , गज़ब की अभिव्यक्ति !