भरा पेट हो त्योहारों की बातें अच्छी लगती हैं.
बुरे वक्त में दीवारों की बातें अच्छी लगती हैं.
जो बच्चे टीवीलीला में लीन हुए उन बच्चों को,
मोबाइल की और कारों की बातें अच्छी लगती हैं.
तेज हवा में उड़ते बादल देख के पंछी यों बोले,
सुन, कुदरत के हरकारों की बातें अच्छी लगती हैं.
जिस दिन से मेरे हिस्से को छीन लिया कुछ अपनों ने,
उस दिन से बस अंगारों की की बातें अच्छी लगती हैं.
खींच-खींच के रिक्शा जीवन यापन करने वाले को,
मुट्ठी में भिंचते नारों की बातें अच्छी लगती हैं.
मान बेच कर, ऐय्याशी के सभी योजनाकारों को,
श्रंगारों की, अभिसारों की की बातें अच्छी लगती हैं.
माइक पर इक गीतकार को देख मिनिस्टर जी बोले,
कभी-कभी इन बेचारों की बातें अच्छी लगती हैं.
--योगेन्द्र मौदगिल
22 comments:
जिस दिन से मेरे हिस्से को छीन लिया कुछ अपनों ने,
उस दिन से बस अंगारों की की बातें अच्छी लगती हैं.
खींच-खींच के रिक्शा जीवन यापन करने वाले को,
मुट्ठी में भिंचते नारों की बातें अच्छी लगती हैं.
रचना तो उत्कृष्ट है ही आपके भीतर के जनवादी तेवरों से भी परिचित हुआ।
***राजीव रंजन प्रसाद
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भरा पेट हो त्योहारों की बातें अच्छी लगती हैं.
बुरे वक्त में दीवारों की बातें अच्छी लगती हैं.
उत्कृष्ट रचना है,,,
bahot hi umda tippani hai aaj ke pariwesh pe badhai .....
regards
Arsh
बहुत जोरदार रचना ! बधाई !
शुभकामनाए !
तिवारी साहब का नमन इस काव्य रचना के लिए !
अति श्रेष्ठ रचना ! धन्यवाद !
शानदार रचना, बहुत ही अच्छी
जो बच्चे टीवीलीला में लीन हुए उन बच्चों को,
मोबाइल की और कारों की बातें अच्छी लगती हैं.
वाह बहुत ही बढ़िया
माइक पर इक गीतकार को देख मिनिस्टर जी बोले,
कभी-कभी इन बेचारों की बातें अच्छी लगती हैं.
व्यंग्य की धार और
कलम की मार से
इस दयनीय स्थिति पर
लगातार प्रहार ज़रूरी है.
गीत अगर जीवित है तो ही
जहां में जुम्बिश है...वरना सूने
गलियारों के सिवा कुछ भी नज़र
नहीं आयेंगे...सत्ता के गलियारों में ये बात
पूरी ताक़त से पहुँचाने की ज़रूरत हमेशा बनी रहेगी.
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आपके ब्लाग्स रुचिकर हैं.
डॉ.चन्द्रकुमार जैन
bahut hi sundar ghazal.........
yogendraji, bahut pyari gazal hai. sabhi sher achhe hai.
भरा पेट हो त्योहारों की बातें अच्छी लगती हैं.
बुरे वक्त में दीवारों की बातें अच्छी लगती हैं.
बहुत ही सुन्दर रचना लिखी हे आप ने.....
धन्यवाद
shaandar,
बेहतरीन ! आनन्द आ गया.
aaj ke halaton ko achchi terah qaid kiya aapne is ghazal mein. dhanyawaad
'खींच-खींच के रिक्शा जीवन यापन करने वाले को,
मुट्ठी में भिंचते नारों की बातें अच्छी लगती हैं.'
ये लाइन बहुत पसंद आई !
bado ki tik tik sun sun ke,
baccho ki khilkhilati baatein acchi lagti hai...
bahut hi sundar rachna hai...
भरा पेट हो त्योहारों की बातें अच्छी लगती हैं.
बुरे वक्त में दीवारों की बातें अच्छी लगती हैं.
बहुत बड़ी बात कह दी आपने योगेन्द्र जी......
तेज हवा में उड़ते बादल देख के पंछी यों बोले,
सुन, कुदरत के हरकारों की बातें अच्छी लगती हैं.
भाई वाह....ऐसा नायाब शेर यूँ ही न होता...बरसों की मेहनत लगती है तब कहीं जा कर होता है...कमाल की ग़ज़ल रे भाई...जिंदाबाद.
नीरज
माइक पर इक गीतकार को देख मिनिस्टर जी बोले,
कभी-कभी इन बेचारों की बातें अच्छी लगती हैं.
सुंदर
कुछ बातें भाई हमें भी अच्छी लगती हैं ! जैसे यह कविता
नये-पुराने सभी मित्रों का हार्दिक अभिनन्दन
आपकी स्नेहिल प्रतिक्रियाएं मुझे संबल देती हैं
स्नेह बनाए रखियेगा
bahut khub..likha hai aap ne badhai
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