इस संभावना को ढूंढना.....

अजनबी चेहरों में भी कौलो-वफ़ा को ढूंढना.
जैसे इक अंधी गुफा में आत्मा को ढूंढना.

ऒढ़ कपड़ा गेरूवा फिर ज़िन्दगी से भाग कर,
चाहता है आदमी यारों खुदा को ढूंढना.

लोग खुद से रूबरू होकर यही कहते रहे,
कितना मुश्किल है मियां शर्मो-हया को ढूंढना.

अजनबी नगरी में अपनापन मिले तो किस तरह,
है बहुत मुश्किल यहां राहे-वफ़ा को ढूंढना.

सुर्खरू होने से पहले है जरूरी दोस्तों,
याद के मरुथल में हर इक नक्शे-पा को ढूंढना.

तेरी-मेरी टोपियों की आबरू कायम रहे,
अब मियां बच्चों में इस संभावना को ढूंढना.

बेखबर था मैं के या फिर थी हिमाकत 'मौदगिल'
पत्थरों के शहर में ताज़ी हवा को ढूंढना.
--योगेन्द्र मौदगिल

21 comments:

राजीव रंजन प्रसाद said...

आदरणीय योगेन्द्र जी,


आपका बडा प्रशंसक हूँ। आपकी रचनायें आपको उन मंचीय कवियों से अलग करती हैं जो कविता के अलावा बाकी कारणो से प्रसिद्ध हैं। आपकी कलम गंभीर और पैनी है..

अजनबी चेहरों में भी कौलो-वफ़ा को ढूंढना.
जैसे इक अंधी गुफा में आत्मा को ढूंढना.

तेरी-मेरी टोपियों की आबरू कायम रहे,
अब मियां बच्चों में इस संभावना को ढूंढना.

बेखबर था मैं के या फिर थी हिमाकत 'मौदगिल'
पत्थरों के शहर में ताज़ी हवा को ढूंढना.

वाह!!


***राजीव रंजन प्रसाद

श्रीकांत पाराशर said...

Sri yogendraji, bahut achha likhte hain janab. Prabhu ki kripa hogi to kabhi kavi sammelan men sunane ka bhi mouka milega. Hum yahan kavi sammelan karwate hain, kabhi aap bhi padharenge to bangalore ke shrota bhi dhanya ho jayenge. Aapki pichhali post bhi bahut achhi thi. Dhanywad saheb ek achhi rachana padhne ka avsar dene ke liye.

ताऊ रामपुरिया said...

अजनबी नगरी में अपनापन मिले तो किस तरह,
है बहुत मुश्किल यहां राहे-वफ़ा को ढूंढना

हमेशा की तरह बहुत शानदार ! शुभकामनाए!

भूतनाथ said...

पत्थरों के शहर में ताज़ी हवा को ढूंढना.

प्रणाम कवि वर ! भूतनाथ के दिल की बात कह दी
आपने ! इसीलिए हम आपके मुरीद हैं !

makrand said...

ऒढ़ कपड़ा गेरूवा फिर ज़िन्दगी से भाग कर,
चाहता है आदमी यारों खुदा को ढूंढना.

मोदगिल जी बड़े भिगो भिगो कर मारा है आपने !
बधाई साहब आपको !

दीपक "तिवारी साहब" said...

तिवारी साहब का प्रणाम बंधुवर !
मजा आ गया !

Nitish Raj said...

इस अजनबीपन पर बहुत ही खास है
बहुत ही बढ़िया,बहुत ही सुंदर...अति उत्तम।।।।

Arvind Mishra said...

बहुत प्रभावपूर्ण !
नजरे वफ़ा को ढूँढना करें तो कैसा रहेगा ?

शोभा said...

तेरी-मेरी टोपियों की आबरू कायम रहे,
अब मियां बच्चों में इस संभावना को ढूंढना.

बेखबर था मैं के या फिर थी हिमाकत 'मौदगिल'
पत्थरों के शहर में ताज़ी हवा को ढूंढना.
बहुत अच्छा लिखा है।

डॉ .अनुराग said...

ऒढ़ कपड़ा गेरूवा फिर ज़िन्दगी से भाग कर,
चाहता है आदमी यारों खुदा को ढूंढना.

लोग खुद से रूबरू होकर यही कहते रहे,
कितना मुश्किल है मियां शर्मो-हया को ढूंढना.

bahut khoob.......bahut achhe......

राज भाटिय़ा said...

योगेन्द्र जी, हमेशा की तरह से एक गहरी सोच लिये आप की यह कविता ...
ऒढ़ कपड़ा गेरूवा फिर ज़िन्दगी से भाग कर,
चाहता है आदमी यारों खुदा को ढूंढना.
बहुत बहुत धन्यवाद

राज भाटिय़ा said...

योगेन्द्र जी, हमेशा की तरह से एक गहरी सोच लिये आप की यह कविता ...
ऒढ़ कपड़ा गेरूवा फिर ज़िन्दगी से भाग कर,
चाहता है आदमी यारों खुदा को ढूंढना.
बहुत बहुत धन्यवाद

Abhishek Ojha said...

"ऒढ़ कपड़ा गेरूवा फिर ज़िन्दगी से भाग कर,
चाहता है आदमी यारों खुदा को ढूंढना."

कई पहलुओं पर ये बात लागू हो जाती है... एकदम फोर्मुले की तरह फिट हो जाती है.

बहुत अच्छी रचना !

Smart Indian said...

लोग खुद से रूबरू होकर यही कहते रहे,
कितना मुश्किल है मियां शर्मो-हया को ढूंढना.
अति सुंदर!

Dr. Chandra Kumar Jain said...

मर्म स्पर्शी रचना.
लापता आत्मा का पता बताती हुई
लेकिन जगाती हुई .... शुक्रिया.
===========================
डॉ.चन्द्रकुमार जैन

seema gupta said...

लोग खुद से रूबरू होकर यही कहते रहे,
कितना मुश्किल है मियां शर्मो-हया को ढूंढना.

"bhut sunder bhavnatmek sher'

Regards

कंचन सिंह चौहान said...

badhiya.n......!

vipinkizindagi said...

अजनबी नगरी में अपनापन मिले तो किस तरह,
है बहुत मुश्किल यहां राहे-वफ़ा को ढूंढना.
bahut sundar hai..

sir, meri kitab padi ya nahi...

admin said...

ऒढ़ कपड़ा गेरूवा फिर ज़िन्दगी से भाग कर,
चाहता है आदमी यारों खुदा को ढूंढना.

तेरी-मेरी टोपियों की आबरू कायम रहे,
अब मियां बच्चों में इस संभावना को ढूंढना.

बहुत प्यारे शेर हैं, एकदम दिल को छू जाने वाले।

योगेन्द्र मौदगिल said...

आप सभी का बहुत-बहुत आभार

shama said...

aapki rachnayon ke bareme mai ek adnasi hastee kya likhun??soorajko raushani kabhi "shama" dikha sakti hai??
Kabhi mere blogpe agar aap padharen to dhanya samjhungi apneaapko....archiveme kuchh kavitayen bhee hain, par mai na to peshewar lekhika hun na kavi...jo mera dard likhwata gaya so likhtee gayi...