हम वासी उस देश के

हम वासी उस देश के, जहां बिकाऊ घास.
भूखी जनता के लिये, रोटी भयी विलास.

हम वासी उस देश के, मिटा जहां विश्वास.
भूखी जनता बेचती, नित्य आस-उल्लास.

हम वासी उस देश के, जहां धर्म के दास.
मन्दिर-मस्जिद के लिये, भुना रहे अहसास.

हम वासी उस देश के, सोया जहां विकास.
नेता-अधिकारी सभी, मना रहे मधुमास.

हम वासी उस देश के, प्रतिभा जहां उदास.
मगर सिफारिश बेचती, मुट्ठी भर-भर आस.

हम वासी उस देश के, जित खादी का वास.
नेता फिरते नाचते, जनता खड़ी उदास.

हम वासी उस देश के, जहां राम की आस.
राजनीत के नाम पर, करती रोज विनास.

हम वासी उस देश के, जहां समंदर पास.
लेकिन दुर्लभ हो रहा, पानी एक गिलास.

हम वासी उस देश के, जहां भूख व प्यास.
पल-पल करवाती रहे, मृत्यू का आभास.

हम वासी उस देश के, ठिठका जहां उजास.
अपनों में बाकी नहीं, अपनों का अहसास.

हम वासी उस देश के, जहां देह के दास.
रहे बेचते उम्र भर, अपनों का विश्वास.
--योगेन्द्र मौदगिल

13 comments:

ताऊ रामपुरिया said...

हम वासी उस देश के, जहां देह के दास.
रहे बेचते उम्र भर, अपनों का विश्वास.


बहुत करारा व्यंग है भाई ! आपके सर पर
माँ सरस्वती की कृपा है सो आप अपनी
वेदना कविता के माध्यम से व्यक्त कर लेते हैं !
पर हम जैसे लोग तो आपकी लिखी वेदना पर
टिपणी ही कर सकते हैं ! आप इस टिपणी को
ही हमारी वेदना समझे ! और हम लोगो को
आपके साथ ही समझे की ये हम सब की
वेदना है !

महेन्द्र मिश्र said...

करारा व्यंग है.ये सब की वेदना है ...

दीपक "तिवारी साहब" said...

बहुत जोरदार व्यंग ! धन्यवाद !

Smart Indian said...

हम वासी उस देश के, जहां बिकाऊ घास.
भूखी जनता के लिये, रोटी भयी विलास.


योगेन्द्र जी, खालिस खरी बात कही है आपने - वह भी इतने मीठे शब्दों में.

अमिताभ मीत said...

हम वासी उस देश के, ठिठका जहां उजास.
अपनों में बाकी नहीं, अपनों का अहसास.

bahut khoob bhai ... achhii rachna.

Shiv said...

बहुत सुंदर रचना है.

Nitish Raj said...

बहुत ही सुंदर रचना साथ ही मनुष्य पर करारा व्यंग्य।

Udan Tashtari said...

सटीक..वाह!वाह! आनन्द आ गया.

लावण्यम्` ~ अन्तर्मन्` said...

हम वासी उस देश के, जहां धर्म के दास.
मन्दिर-मस्जिद के लिये, भुना रहे अहसास.
हम वासी उस देश के, जहां समंदर पास.
लेकिन दुर्लभ हो रहा, पानी एक गिलास
~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~
ऐसा क्योँ है ??
और कैसे बदला जाये ?
कविता बहुत पसँद आई ~~
- लावण्या

राज भाटिय़ा said...

योगेन्दर जी आप ने आज की कविता मे हम सब ( सभी आम भारतीयो ) की मन की भडास निकाल दी, बहुत अच्छी ओर सच्ची कविता के रुप मे एक करारा व्यंग्य
धन्यवाद

नीरज गोस्वामी said...

योगेन्द्र जी
देरी से आने के लिए माफ़ी...आप की रचना पढ़ कर हमेशा की तरह वाह वाह कर उठा...ज्वलंत समस्याओं को क्या खूब ढंग से बयां किया है आपने...आप वास्तव में महान हैं.
नीरज

Anonymous said...

आपके काव्य की जितनी प्रशंसा की जाये कम है!

Anonymous said...

Yogendra Ji,
Pahli bar aapke blog me.n aaya. Bahut sundar aur aakarshk hai.
हम वासी उस देश के, जहां समंदर पास.
लेकिन दुर्लभ हो रहा, पानी एक गिलास.
Is line ke liye badhai