गुम्बद से बरगद की बातें
याने हद से हद की बातें
बात-बात से बात निकलती
कद से निकली कद की बातें
वो मेरे मन में रहता है
वो क्या जाने बद की बातें
कद्दावर हो गये कसम से
कर-कर के अनहद की बातें
बेचा करती अखबारों को
मीनारों-गुम्बद की बातें
सौत सरीखी सी लगती हैं
घूंघट को सरहद की बातें
हद है करने लगे 'मौदगिल'
पत्थर भी पारद की बातें
--योगेन्द्र मौदगिल
10 comments:
sunder
सौत सरीखी सी लगती हैं
घूंघट को सरहद की बातें
कहते हैं दिल कट लींदा!
गुम्बद से बरगद की बातें
याने हद से हद की बातें
बहुत बेहतरीन ! शुभकामनाएं !
बहुख खूब, धन्यवाद इस सुंदर प्रस्तुति के लिए।
behatarin bate.......
बहुत उम्दा,बधाई.
पत्थर भी पारद की बातें !
Waah !
हासिले गजल शेर है यह। इसमें आपने प्रतीकात्मक रूप में बहुत बडी बात कही है।
aap sabhi ka aabhaar
वो मेरे मन में रहता है
वो क्या जाने बद की बातें
बहुत ही खुब , अति सुन्दर कविता
धन्यवाद
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