क्षणिकाएं


ईंट यों कहने लगी सीमेन्ट से
क्या हुआ
तुझको कि तू ग़ारा हुआ
सीमेन्ट ने उत्तर दिया
ए डार्लिंग
मैं हू ठेकेदार का मारा हुआ


प्रेम से बोलो
वोटें किसकी
जो बांटेगा
मुर्गा-व्हिस्की


मिल मालिक
अंग्रेजी का
मजदूर देसी का मजा लेते हैं
दोनों यथासंभव
राजस्व में हिस्सा देते हैं


पत्नी बोली
सुनो जी
आज अपनी गैस खत्म हो गयी
इसलिये खाना हीटर पर पकाया है
सिर बुरी तरह चकराया है
पति बोला भाग्यवान
मैं तो पहले ही समझ गया था
जब रोटियों का स्वाद था
और दिनों से हटके
सब्जी में डुबोते ही
लग रहे थे
दो सौ तीस वाट के झटके
--योगेन्द्र मौदगिल

10 comments:

राज भाटिय़ा said...

प्रेम से बोलो
वोटें किसकी
जो बांटेगा
मुर्गा-व्हिस्की
बहुत ही अच्छी क्षणिकाएं हे, ओर गहरी सोच लिये .धन्यवाद

डॉ .अनुराग said...

ईंट यों कहने लगी सीमेन्ट से
क्या हुआ
तुझको कि तू ग़ारा हुआ
सीमेन्ट ने उत्तर दिया
ए डार्लिंग
मैं हू ठेकेदार का मारा हुआ

ye vali sabse badhiya lagi sar ji....

Amit Pachauri (अमित पचौरी) said...

"मिल मालिक
अंग्रेजी का
मजदूर देसी का मजा लेते हैं
दोनों यथासंभव
राजस्व में हिस्सा देते हैं"

... अति सुंदर

ताऊ रामपुरिया said...

जब रोटियों का स्वाद था
और दिनों से हटके
सब्जी में डुबोते ही
लग रहे थे
दो सौ तीस वाट के झटके


भई तगडी चोट कर रे हो !
बहुत सुथरा काम कर रे हो !
कभी तो समझ आवैगी !
शुभकामनाएं !

Udan Tashtari said...

वाह! बहुत उम्दा.

Anil Pusadkar said...

jay bolo murga whisky sateek likha aapne.badhai

Nitish Raj said...

आप का अपना एक क्लास है। बहुत बढ़िया लिखा है।
सब्जी में डुबोते ही
लग रहे थे
दो सौ तीस वाट के झटके
बहुत खूब।

वोट मुर्गा व्हिस्की क्या जोड़ा है।

seema gupta said...

पत्नी बोली
सुनो जी
आज अपनी गैस खत्म हो गयी
इसलिये खाना हीटर पर पकाया है
सिर बुरी तरह चकराया है
पति बोला भाग्यवान
मैं तो पहले ही समझ गया था
जब रोटियों का स्वाद था
और दिनों से हटके
सब्जी में डुबोते ही
लग रहे थे
दो सौ तीस वाट के झटके
" wah wah bhut sunder , hans hans kr lotpot ho gyen hain kmal"
Regards

योगेन्द्र मौदगिल said...

aap sabhi ka dhanyawaad

शोभा said...

पत्नी बोली
सुनो जी
आज अपनी गैस खत्म हो गयी
इसलिये खाना हीटर पर पकाया है
सिर बुरी तरह चकराया है
पति बोला भाग्यवान
मैं तो पहले ही समझ गया था
जब रोटियों का स्वाद था
और दिनों से हटके
सब्जी में डुबोते ही
लग रहे थे
दो सौ तीस वाट के झटके
--योगेन्द्र मौदगिल
बहुत सुन्दर लिखा है। बधाई