१
पंडित जी
अब किस से कम
मूंह में राम
हाथ में रम
२
आदमी सस्ता
महंगा राशन
धन्य है परजा
धन्य है शासन
३
उनको बचपन से ही
आदत है
कमीशन खाने की
इसीलिये
पत्नी ने तौबा कर रखी है
बाज़ार से
सामान मंगवाने की
४
मां-बेटी को आधुनिकता
इतनी रास आई
कि गजब हो गया
बेटी ने प्यार किया
ब्याह
मां का हो गया
--योगेन्द्र मौदगिल
10 comments:
जबरदस्त!! कम शब्दो में धारधार क्षणिकाएं लिखी आपने.. बहुत बहुत बधाई
gazab kar diya,bina kapda utaare sabko nanga kar diya.bahut bahut bahut sunder
कुश भाई,
आपका ब्लाग दीख नहीं रहा..
बहुत बेहतर काम था आपका.
प्रतीक्षा है..
फिलहाल धन्यवाद.
अनिल जी, आप भी बड़ी शिद्दत से पढ़ते hain
आपकी पाठकीयता को नमन.
उनको बचपन से ही
आदत है
कमीशन खाने की
इसीलिये
पत्नी ने तौबा कर रखी है
बाज़ार से
सामान मंगवाने की
" ha ha ha ha ha patnee ne kya khub bachpan kee unkee aadet ko apnaya hai, isko kehten hain patnee hone ka dharm neebaya hai"
Regards
बहुत बढ़िया है भाई .... सारी की सारी.
जोरदार और धारदार लिखा सरजी.
पढ़कर
आनंद ही आनंद है.
भाई घणी तगडी धार सै ! थारी
ताई तो थारी क्षनीकाओं तैं ही
सब्जी काट लिया करै सै आजकल !
चलो चाकू का खर्चा बचा ! :)
बहुत गजब और सटीक ! बधाई !
सीमा जी, मीत जी, बालकिशन जी,
आपके बरकरार प्रेम से अभिभूत हूं.
अर् ताऊ,
ताई का काम मेरी क्षणिकाऒं तै चालजै..
होर के चहिये...
ईब तो बल्ले-बल्ले....
योगेन्द्र भाई,
जीवन की सच्चाई
इतने कम शब्दों में
फिट कैसे कराई?
bahut achchhe saahab bahut achchhe!
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