ग ज ल

गुम्बद से बरगद की बातें
याने हद से हद की बातें

बात-बात से बात निकलती
कद से निकली कद की बातें

वो मेरे मन में रहता है
वो क्या जाने बद की बातें

कद्दावर हो गये कसम से
कर-कर के अनहद की बातें

बेचा करती अखबारों को
मीनारों-गुम्बद की बातें

सौत सरीखी सी लगती हैं
घूंघट को सरहद की बातें

हद है करने लगे 'मौदगिल'
पत्थर भी पारद की बातें
--योगेन्द्र मौदगिल

10 comments:

Anil Pusadkar said...

sunder

Vinay said...

सौत सरीखी सी लगती हैं
घूंघट को सरहद की बातें

कहते हैं दिल कट लींदा!

ताऊ रामपुरिया said...

गुम्बद से बरगद की बातें
याने हद से हद की बातें


बहुत बेहतरीन ! शुभकामनाएं !

Ashok Pandey said...

बहुख खूब, धन्‍यवाद इस सुंदर प्रस्‍तुति के लिए।

vipinkizindagi said...

behatarin bate.......

Udan Tashtari said...

बहुत उम्दा,बधाई.

Abhishek Ojha said...

पत्थर भी पारद की बातें !
Waah !

admin said...

हासिले गजल शेर है यह। इसमें आपने प्रतीकात्मक रूप में बहुत बडी बात कही है।

योगेन्द्र मौदगिल said...

aap sabhi ka aabhaar

राज भाटिय़ा said...

वो मेरे मन में रहता है
वो क्या जाने बद की बातें
बहुत ही खुब , अति सुन्दर कविता
धन्यवाद