हर हाकिम, शैतान हो गया...


उन्नत कृषि विग्यान हो गया.
भोंदू, वृद्ध किसान हो गया.


लोकतंत्र के नरकतंत्र में,
हर हाकिम, शैतान हो गया.


भूख उगा करती खेतों में,
रहन, फ़सल-खलिहान हो गया.


ऊंची हर दूकान हो गयी,
फीका हर पकवान हो गया.


आपस में लड़-लड़ कर घायल,
अपना हिन्दुस्तान हो गया.


राम-राज है, जब से डाकू,
थाने में दीवान हो गया.


काले धन के धर्म-कर्म में,
घूस खिलाना दान हो गया.


'नहीं चाहिये मुझको पोती'
दादी का फ़रमान हो गया.


बापू का बंदर पढ़-लिख कर,
लम्पट-बेईमान हो गया.
--योगेन्द्र मौदगिल


22 comments:

दिगम्बर नासवा said...

एक से बढ़ कर एक गुरु देव .. आज तो आपकी कलाम तेज़ छुरी सी चली है .... पता नही कितने घायल होंगे ...... सार्थक सामाजिक चिंतन है आपकी ग़ज़ल में ..........

डॉ. महफूज़ अली (Dr. Mahfooz Ali) said...

आपस में लड़-लड़ कर घायल,
अपना हिन्दुस्तान हो गया.



इन पंक्तियों ने दिल छू लिया... बहुत सुंदर ....रचना....

अजय कुमार झा said...

अपनी ही नस्ल को खाने वाला
इकलौती नस्ल का जानवर , इंसान हो गया....

Arshia Ali said...

गागर में सागर भर दिया आपने।
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ये तो बहुत ही आसान पहेली है?
धरती का हर बाशिंदा महफ़ूज़ रहे, खुशहाल रहे।

श्यामल सुमन said...

राम-राज है, जब से डाकू,
थाने में दीवान हो गया।

सटीक मौदगिल भाई। वाह। बहुत सुन्दर। चलिए एक तुकबंदी मेरी ओर से भी-

अब कसाब भी, जो तिहाड़ में
लगता है इन्सान हो गया।

सादर
श्यामल सुमन
09955373288
www.manoramsuman.blogspot.com

समयचक्र said...

बहुत सटीक सामयिक रचना ....

डॉ टी एस दराल said...

कमाल की पंक्तियाँ हैं ज़नाब।
बहुत बढ़िया।

निर्मला कपिला said...

पूरी रचना कमाल की है । आगे निशब्द हूँ। बधाई

Yogesh Verma Swapn said...

bahut sunder, lajawaab.

Unknown said...

waah prabhu !

bahut khoob !

Chandan Kumar Jha said...

बहुत मजेदार !

Udan Tashtari said...

घूस खिलाना दान हो गया...वाह भाई..यही हालात हैं..शानदार रचना!!

Sulabh Jaiswal "सुलभ" said...

सभी को धर दबोचा आपने.
बहुत सटीक

भारतीय नागरिक - Indian Citizen said...

सत्य ही सत्य है.

Pt. D.K. Sharma "Vatsa" said...

भई मौदगिल जी, आज तो रचना की तारीफ वास्तै शब्द की कोणी मिल रहे.....
एकदम जोरदार्!!!

ताऊ रामपुरिया said...

घणी जोरदार रचना.

रामराम.

विनोद कुमार पांडेय said...

चोरों का सम्मान हो गया,
विद्वानों का अपमान हो गया,
बेईमानों के शोर गुल में आज,
खामोश ईमान हो गया,


बढ़िया रचना ताऊ जी देर से पढ़ पाया पर सभी की सभी लाइन कमाल की स्पेशल रूप से दादी का फरमान..
अच्छा लगा..धन्यवाद जी

अर्कजेश said...

क्‍या बात है ! क्‍या बात है ! वाह ।

नीरज गोस्वामी said...

भाई जी आपकी ग़ज़ल एक बार नहीं बार बार पढ़ी और हर बार कहना पढ़ा...ग़ज़ब...
नीरज

Ravi Rajbhar said...

Bahut khub......jabab nahi aapki rachna ka. bahdai

राजीव तनेजा said...

हर पंक्ति में एक से बढकर एक व्यंग्य...बहुत बढिया

Himanshu Pandey said...

"बापू का बन्दर पढ़-लिख कर
लम्पट बेईमान हो गया ।" - बेहतरीन !

मूल्य-प्रतीकों के मूल्यहीन होने की सहज कहानी कह दी है आपने इन पंक्तियों में । आभार ।