जब भी कोई लीक ढूंढना.
प्यार के प्रतीक ढूंढना.
जि़न्दगी है लंबा सफ़र,
साथ ठीक-ठीक ढूंढना.
कोई जल्दबाज़ी नहीं,
दुश्मनी सटीक ढूंढना.
कल्पना में हिंद-कुश रहे,
अब ना रोमां-ग्रीक ढूंढना.
पत्थरों से दोस्ती हो तो,
मेरे सा हक़ीक ढूंढना.
प्रेम-धागा खो गया कहीं,
ध्यान से बारीक़ ढूंढना.
--योगेन्द्र मौदगिल
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गज़ल
घर में चिन्ता खड़ी हो गयीं.
बच्चियां अब बड़ी हो गयीं.
फूल हैरान हैं आजकल,
तितलियां सरचढ़ी हो गयीं.
इंद्र जैसी हुई कामना,
इंद्रियां उर्वशी हो गयीं.
बात-बातों में ढहने लगी,
बस्तियां भुरभुरी हो गयीं.
सुखनवर हो गया लो शह्र,
फिर नशिस्तें खरी हो गयीं.
पत्ते झड़ने लगे शाख से ,
वेदनाएं हरी हो गयीं.
पेट भरता नहीं 'मौदगिल',
बाजुएं अधमरी हो गयीं.
--योगेन्द्र मौदगिल
बच्चियां अब बड़ी हो गयीं.
फूल हैरान हैं आजकल,
तितलियां सरचढ़ी हो गयीं.
इंद्र जैसी हुई कामना,
इंद्रियां उर्वशी हो गयीं.
बात-बातों में ढहने लगी,
बस्तियां भुरभुरी हो गयीं.
सुखनवर हो गया लो शह्र,
फिर नशिस्तें खरी हो गयीं.
पत्ते झड़ने लगे शाख से ,
वेदनाएं हरी हो गयीं.
पेट भरता नहीं 'मौदगिल',
बाजुएं अधमरी हो गयीं.
--योगेन्द्र मौदगिल
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