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गज़ल

जब भी कोई लीक ढूंढना.
प्यार के प्रतीक ढूंढना.

जि़न्दगी है लंबा सफ़र,
साथ ठीक-ठीक ढूंढना.

कोई जल्दबाज़ी नहीं,
दुश्मनी सटीक ढूंढना.

कल्पना में हिंद-कुश रहे,
अब ना रोमां-ग्रीक ढूंढना.

पत्थरों से दोस्ती हो तो,
मेरे सा हक़ीक ढूंढना.

प्रेम-धागा खो गया कहीं,
ध्यान से बारीक़ ढूंढना.
--योगेन्द्र मौदगिल

गज़ल

घर में चिन्ता खड़ी हो गयीं.
बच्चियां अब बड़ी हो गयीं.

फूल हैरान हैं आजकल,
तितलियां सरचढ़ी हो गयीं.

इंद्र जैसी हुई कामना,
इंद्रियां उर्वशी हो गयीं.

बात-बातों में ढहने लगी,
बस्तियां भुरभुरी हो गयीं.

सुखनवर हो गया लो शह्र,
फिर नशिस्तें खरी हो गयीं.

पत्ते झड़ने लगे शाख से ,
वेदनाएं हरी हो गयीं.

पेट भरता नहीं 'मौदगिल',
बाजुएं अधमरी हो गयीं.
--योगेन्द्र मौदगिल