एक छंद फ़क़त आपके लिए........
बड़े-बड़े बंगले हैं, बंगलों में जंगलें हैं,
जंगलों में बंधे हुए, श्वेत श्वान देख लो..
वक्ष को उघाड़ें और देह को उभारें ऐसे,
फ़िल्मी-मसाले जैसे परिधान देख लो..
हेरोइन, कोनीन, दारू, चरस का फैशन है,
गली-गली अपराधों की दूकान देख लो..
गुटखे व बियर को चाट-चाट 'मौदगिल",
बच्चे सब हो गए है नौजवान देख लो...
---योगेन्द्र मौदगिल
15 comments:
वाह,उम्दा रचना ,आभार.
सन्नाट।
आज तो वाह के अलावा कोई और शब्द नहीं है।
बड़े-बड़े बंगले हैं, बंगलों में जंगलें हैं,
दिल से फिर भी कंगले के कंगले हैं ।
वर्तमान परिवेश पर बढ़िया कटाक्ष किया है योगेन्द्र जी ।
आज के वक़्त का आईना ..सटीक शब्द...सटीक वर्णन
yahi to durbhagya hai...
बहुत ख़ूब!!!
ज़बरदस्त कटाक्ष किया मौदगिल जी...
आज पहली बार कोई रचना गाकर खुद को सुनाई है।
काश! आपके मुख से भी इसे सुन पाता।
प्रणाम
लाज़वाब करता छंद...
बढ़िया कटाक्ष...
सादर...
खुबसूरत....
हमेशा की तरह अच्छा कटाक्ष.....!!!!!
waah!
वक्त जो ना दिखाये । बडी सटीक रचना .
गुटखे व बियर को चाट-चाट 'मौदगिल",
बच्चे सब हो गए है नौजवान देख लो...
-great
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