चार पैसे कमा लिये उसने.
यार अपने गँवा लिये उसने.
बाज़ से वायदा-फरोशी में,
छत पे पंछी बुला लिये उसने.
अपना साया तलक भी हार गया,
फिर भी पत्ते बिछा लिये उसने.
आज कोई नया शिगूफा है,
लोग इतने बुला लिये उसने.
फिर से इक मोड़ है कहानी में,
फिर से किस्से उठा लिये उसने.
रात भर करवटों से यारी थी,
फिर भी सपने बुला लिये उसने.
लोग कहते रहेंगे, कहने दो,
और शीशे चढ़ा लिये उसने.
भेद चमड़ी का जान कर 'मुदगिल"
सारे सिक्के चला लिये उसने.
--योगेन्द्र मौदगिल
25 comments:
वाकई में यार ...क्या चीज हैं आप ?
लोगों की पहचान खूब है :-)
शुभकामनायें !
चार पैसे कमा लिये उसने.
यार अपने गँवा लिये उसने.
बहुत सटीक, शुभकामनाएं.
रामराम.
waah waah
anand aa gaya bhai !
बहुत खूब ..अच्छी प्रस्तुति
फिर से इक मोड़ है कहानी में,
फिर से किस्से उठा लिये उसने.
waah...
बड़ी प्रभावशाली अभिव्यक्ति।
जीवन की सच्चाई - हर एक पद बढिया!
रोजाना पढता हूं आपकी रचनाएं । आज पहली बार अभिप्राय दे रहा हूं..
"रात भर करवटों से यारी थी,
फिर भी सपने बुला लिये उसने..."
बहुतही पसंद आया शेर...
चार पैसे कमा लिये उसने.
यार अपने गँवा लिये उसने.
बाज़ से वायदा-फरोशी में,
छत पे पंछी बुला लिये उसने.
बहुत खूब कहा है आपने ...बेहतरीन प्रस्तुति के लिये आभार ।
बहुत शानदार ग़ज़ल कही है आपने। हार्दिक बधाई स्वीकार कीजिए।
रात भर करवटों से यारी थी,
फिर भी सपने बुला लिये उसने.
anupam kriti
aap bhi aaiye
abhar
Naaz
सही खरी खरी सुना दी योगेन्द्र जी ।
बहुत बढ़िया ग़ज़ल ।
वाह ... क्या बात है सटीक खरी खरी सुनाई है ..
@ bhai satish saksena ji
जब लेखनी ही आन-बान-शान हो गई.
तो धीरे-धीरे दुनिया की पहचान हो गई..
मैंने भी देखा प्यार से सारे जहान को,
दुनिया इन्ही नज़रों की कदरदान हो गई..
@Tau......Ram-Ram
ताऊ तेरी शुभकामना मेरे ही लिए है.
ते राम-राम बांचना मेरे ही लिए है.
ना शाख , न पत्ते, कहीं ना डालियों की बात,
ये है जड़ों की वंदना मेरे ही लिए है.
abhi ek karyakram me jaane ka bulawa yane phone aa gaya varna sabhi shubhchintkon ka uttar muktak me hi deta.....aakar dekhta hoon...mood banaa raha to....
sach sach baat kah di yaar ki.
bahut khoob.
चार पैसे कमा लिये उसने.
यार अपने गँवा लिये उसने....
वाह,बहुत खूब.
बहुत खूब मौदगिल साहब आप तो बस कमाल हैं।
लोग कहते रहेंगे, कहने दो,
और शीशे चढ़ा लिये उसने.
भेद चमड़ी का जान कर 'मुदगिल"
सारे सिक्के चला लिये उसने.
...bahut badiya khari-khari prastuti ke liye dhanyavaad.
रात भर करवटों से यारी थी,
फिर भी सपने बुला लिये उसने.
वाह बहुत खूब .......
सपनो की दुनिया भी अपनी ही है ...इस लिए बिना बुलाये महेमान से चले आते है
बाज़ से वायदा-फरोशी में,
छत पे पंछी बुला लिये उसने.
रात भर करवटों से यारी थी,
फिर भी सपने बुला लिये उसने
बहुत खूबसूरत गज़ल कही है आपने ! हर शेर बेमिसाल है ! इंसानी फितरत की खूब पहचान है आपको ! बधाई !
छोटे बहर पर उम्दा और दिलचस्प ग़ज़ल
चार पैसे कमा लिये उसने.
यार अपने गँवा लिये उसने.
फिर से इक मोड़ है कहानी में,
फिर से किस्से उठा लिये उसने.
वाह जी वाह क्या खूब शेर कहा डाला....!
बहुत खूब ..अच्छी प्रस्तुति
वाह आज तो अलग हटकर !
उतनी ही सुंदर रचना.
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