चार चमचे, चार चाकू, डार्लिंग.
यार हैं सारे हलाकू, डार्लिंग.
पूत की कम्प्यूटरी चैटिंग भरी,
हम समझते थे पढ़ाकू, डार्लिंग.
पाक दामन अब भला किसका रहा,
नापाक हैं पट्ठे लड़ाकू, डार्लिंग.
सारी आंटी, सारे अंकल हो गये,
ताई, बूआ, मामू, काकू, डार्लिंग.
पहन ली खादी, खुदा को खो दिया,
हो गये हिजड़े भी डाकू, डार्लिंग.
--योगेन्द्र मौदगिल
11 comments:
पूत की कम्प्यूटरी चैटिंग भरी,
हम समझते थे पढ़ाकू, डार्लिंग..
vaah.
bahoot khooob.
:):)
अब तो भगवान के घर भी कुबेर है ।
;)
वाह....योगेन्द्र जी
हास्य व्यंग की धाँसू रचना
व्यंग के माध्यम से ...डार्लिंग ......बहुत खूब ..संबोधन बहुत बढ़िया है ''डार्लिंग ''...........आभार
जबरजस्त सन्नाट व्यंग।
भाई
जिससे शादी होने वाली थी
इत्तफाकन
वो मिली
अपने बच्चे से बोली देखो तो शेखर कौन हैं --
बाबू,
अंकल ने ही जान बचाई थी तब--
मामा बनने से बच गए शायद ||
बहुत बढिया लिखा है भाईजी |
व्यंग्येंद्र साहब नमस्कार, आपकी डार्लिंगी कविता काफी अच्छी हैं, ये काफी मौडर्निल है, इसमें आपने पढ़ाकू पूत की कंप्यूटरी चैटिंग के कान उमेठे, पाक के नापाक पट्ठों के बारे में आगाह किया, अंकलों - आंटियों की खबर ली तथा खादीधारी डाकुओं से भी परिचय कराया है. समाज के लिए एक स्वास्थ्यवर्धक हास्य कविता है. बच्चे-जवान-बूढ़े सभी इसका सेवन कर सकते हैं.
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