आज फिर इक गुनाह कर लूँगा......

एक टाइम - पास प्रयास
आज फिर इक गुनाह कर लूँगा.
तुझ को देखूंगा, आह कर लूँगा.

मैं शिवाले मैं चाह कर लूँगा.
आँख मूंदूंगा, वाह कर लूँगा.

मेरी आँखों में डूब जाओ तो
खुद को मैं बे-पनाह कर लूँगा.

भर नज़र देखना चरागों को,
मैं हवाओं में राह कर लूँगा.

एक मुद्दत से भूख है शायद,
मैं बदन को सियाह कर लूँगा.

'मौदगिल' मौज मुद्दआ मेरा
यों फकीरी को शाह कर लूँगा.
--योगेन्द्र मौदगिल

12 comments:

Kajal Kumar's Cartoons काजल कुमार के कार्टून said...

वाह ! क्या टाइम पास प्रयास है :)
सुंदर.

मनोज कुमार said...

यों फकीरी को शाह कर लूँगा.

मन को छू गई यह बात!

ये प्रयास टाइम पास नहीं है। ये तो ‘उस’ को पाने की चाह है जो मिल जाए तो फिर कुछ पाने की ज़रूरत ही नहीं रहती।
एक मुद्दत से भूख है ....

Satish Saxena said...

अगर टाईमपास में ऐसे गुनाह करते हो तो फुर्सत में क्या करते होगे यह समझ आ रहा है !
काश हम भी ऐसे गुनाह कर पायें !
हाय योगेन्द्र हम न हुए ....
:-)

भारतीय नागरिक - Indian Citizen said...

बहुत खूब निकला यह टाइमपास प्रवाह.

संगीता स्वरुप ( गीत ) said...

भर नज़र देखना चरागों को,
मैं हवाओं में राह कर लूँगा.


वाह ..बहुत सुन्दर

दिगम्बर नासवा said...

वाह ... गुरुदेव टाइम पास करते करते भी कमाल कर दिया आपने तो ...
लाजवाब ग़ज़ल है ...

vandana gupta said...

बहुत सुन्दर्।

Dr (Miss) Sharad Singh said...

वाह ..बहुत सुन्दर रचना...

नीरज गोस्वामी said...

बहुत खूब भाई जी अच्छा टाइम पास है.
नीरज

Dr Varsha Singh said...

वाह..क्या खूब लिखा है आपने।

SANDEEP PANWAR said...

खास

प्रवीण पाण्डेय said...

यही आवारगी आकर्षित करती है।