रीत पुरानी, नया ज़माना दुनिया में.
जिस का जैसा ठौर-ठिकाना दुनिया में..
क्या रोना, क्या हँसना-गाना दुनिया में.
संघर्षों का दौर पुराना दुनिया में..
सारी दुनिया आँख मूँद कर सुनती है,
अंधे बाबा का हर गाना दुनिया में.
कहीं मिला लंगोट, कहीं ताबूत मिला,
गज़ब है उसका ताना-बाना दुनिया में.
संबंधों पर उसने दांव लगा डाले,
सारे कहते खेल पुराना दुनिया में.
जुगनु, तारे. चंदा, सूरज उनके हैं,
अपना तो भई, है वीराना दुनिया में.
कब तक, आखिर कब तक हम भरमाएंगे,
वही एक सा आना-जाना दुनिया में.
--योगेन्द्र मौदगिल
18 comments:
कहीं मिला लंगोट, कहीं ताबूत मिला,
गज़ब है उसका ताना-बाना दुनिया में।
...
सही कह रहे हैं मौदगिल साहब। पूरी दुनिया उसकी ही तो है।
bahut badiya.......sangharsh rahit jeevan kee to kalpana hee nahee kee ja saktee ha kshamta sabkee alag alag hotee hai...aankne kee.
आदरणीय मौदगिल जी
नमस्कार !
कमाल की लेखनी है आपकी लेखनी को नमन बधाई
हमेशा की तरह आनंद आ गया भाई जी ! हार्दिक शुभकामनायें !
अपनी तो बस यही तमन्ना है मौदिगिल जी,
मरने से पहले सुकून है पा जाना दुनिया में,
बाकी जब तक जिन्दा है तब तक तो,
थोडा बहुत सबको हँसाना दुनिया में ....
लिखते रहिये ....
अंधे बाबा की जीवनी इस छोटीसी कविता में कलत्मक ढंग से समाई हुई है!...सुंदर कृति, धन्यवाद!
हम तो सबको मन में थामे खड़े रहे,
किसने हमको अपना माना दुनिया में।
बहुत सार्थक प्रस्तुति ...बस यही आना जाना लगा रहता है दुनिया में
मस्त कर दिया जी आप की इस कविता ने धन्यवाद
जुगनू तारे चन्दा सूरज उनके हैं,
अपना तो भई है वीराना दुनियां में....
वाह, क्या बात कही है...
सदैव की भांति मुग्धकारी अतिसुन्दर रचना...
आनंद आ गया पढ़कर ...
बहुत सटीक रचना.
रामराम.
भई वाह... वाह..
कब तक हम भरमाएंगे .. वही एक सा आना जाना है..बहुत खूब
बस इस आना जाना की असलियत को सब समझ लें तो मोह माया से छूट जाये.
सुंदर अभिव्यक्ति.
बहुत सुन्दर प्रस्तुति है योगेन्द्र जी ।
वाह वाह!! आनन्दम आनन्दम!!
धन्य हो भाई जी धन्य हो...आनंद की वर्षा हो गयी...गज़ब का लिख डाला आपने...बधाई स्वीकार करो...
नीरज
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