सम्मान्य मित्रों
क्षमा कीजियेगा. अभी टिपिया नहीं पा रहा हूँ.
दरअसल २४ और २५ दोनों ही तारीखों के सन्दर्भ में देश भर में अजीब सा भय व्याप्त था. इस सबके बावजूद मैं अपने कार्यक्रमों के प्रति कटिबद्ध था. रामपुर, मुरादाबाद, बरेली में बाढ़ की ख़बरें भी थी.
फिर भी.
खैर......
रस्ते भर मैं खिड़की से बाहर ही झांकता रहा. गजरोला के बाद रस्ते भर में कहीं थोडा कहीं ज्यादा खड़ा पानी बाढ़ की गवाही दे रहा था. रेलवे लाइन के दोनों तरफ बसी बस्तियां पानी के बीच थी..
बहरहाल ठीक ४ बजे आनंद भाई बोले कि योगेन्द्र जी अपन बतियाते रहे तो नींद नहीं आ पाएगी इसलिए मैं घर चलता हूँ आप भी सो जाइये. मैंने उठ कर उन्हें विदा कर दरवाजा और फिर ऐसी बंद किया और लेट गया.
नींद आने को थी कि ४.४० पर बिटिया का फोन आ गया. २५ तारीख थी मेरा अवतरण दिवस था. बेटा और श्रीमती जी फोन पर उपस्थित थे. आधे घंटे तक सभी से बधाई लेकर लेटा कि अब सो लूं.
झपकी आई.... फोन बेल बजी.
अपने ललित शर्मा बधाई लिए हाज़िर. ललित भाई का जब भी फोन आता है तो पता नहीं क्या बात है मैं अक्सर बाहर ही होता हूँ. पिछली बार जब उनका फोन आया तो मैं जोधपुर था. मैंने उन्हें बताया कि मैं बरेली में हूँ तो तुरंत अरे वाह बरेली में तो धीरू भाई हैं. मैं अभी उन को बताता हूँ वो आपसे जरूर मिलेंगे. बस फिर उसके बाद जो फोनबाज़ी का सिलसिला चला ११.३० तक मैं तो फोन से ही जूझता रहा. अंतिम फोन नीरज गोस्वामी जी का था.
अब मित्रों मैंने फिर सोचा कि चलो अब सो लूं. १२.३० पर धीरू भाई अपने एक मित्र के साथ फूलों का प्यारा सा गुलदस्ता लिए हाज़िर थे. जय हो... लगभग १२-१३ मिनट तो मुझे आलस्य दूर करने में लगे. फिर शुरू हुआ बातचीत का सिलसिला.
धीरू भाई के बारे में बहुत कुछ जाना. अपने विशालकाय व्यक्तित्व के साथ बहुत आराम से ठेट उत्तर प्रदेशीय लहजे में में उन्होंने पारिवारिक जानकारी दी. उनके पिता जी उस क्षेत्र से दो बार सांसद रहे हैं. अभी भी राजनीती और समाज सेवा से निर्बाध जुड़े हैं. एक ही बिटिया है जो नैनीताल में पढ़ रही है. भाभी जी अलीगढ में प्राध्यापिका हैं. वे स्वयं खेती के साथ साथ बदायूं में अपनी मारुती कार कि एजेंसी सँभालते हैं. घर से बार बार भोजन के लिए फोन आ रहा था. मैंने भी सोचा कि अब ये मानेंगे तो हैं नहीं भलाई इसी में है कि चुपचाप इनके साथ जा कर भोजन कर लूं वर्ना कुछ भी हो सकता है भैय्या उत्तर परदेस का मामला है. सो अपन कपडे पहन हो लिए तैयार.
धीरू भाई की बड़ी सी शानदार गाडी में जिसे वो स्वयं ड्राइव कर रहे थे. स्टेयरिंग उनके पेट को चूम रहा था. और मैं अपनी कल्पनाओं में झूम रहा था. रस्ते भर बरेली का परिचय उन्होंने दिया. मुझे बरेली कहीं-कहीं पानीपत जैसी नज़र आ रही थी. वही भीड़, वही सड़के वही होर्डिंग्स . करीब २० मिनट की यात्रा कर हम धीरू भाई के विशाल घर पर थे. उनका घर चूंकि कमर्शियल प्लेस पर है सो ग्राउंड फ्लोर व् पहली मंजिल किराये पर और तीसरी मंजिल पर उनकी रिहाइश.
मात्र तीसरी मंजिल के लिए लिफ्ट की व्यवस्था देख कर मैं आश्चर्य में था तो उन्होंने बताया की पिता जी के घुटनों की परेशानी के कारण लिफ्ट की व्यवस्था की गई है. ऊपर डाइनिंग टेबल तैयार थी. भाभी जी जो उस दिन कोलेज बंद होने के कारण बरेली में ही थी स्वयं रसोई संभाल रही थी. शानदार लंच लग चुका था. हम तीनो ने पेट ऊपर तक भरा और फिर पिता जी से मिले. थोड़ी देर उनसे वार्ता कर उनका आशीष ले कवि सम्मलेन में आने का न्याता दे वापिस गेस्ट हॉउस लौट चले क्योंकि सोना अभी शेष था. (क्रमश:)
7 comments:
अभी आप की पिछली पोस्ट पढ़ी , कभी हार्ड डिस्क ख़राब, अभी हिंदी सॉफ्टवेर की समस्या , आपको तो वाकई बड़ी भयंकर तकनीकी समस्याओं से जूझना पड़ता है .. ! चलिए दिखो तो सही ... कविताई कब सुना रहे है ?
लिखते रहिये ...
कुछ ज्यादा ही तारीफ़ कर रहे है आप .खैर वह एक यादगार दिन था .
कार में सीट कुछ आगे थी इसीलिये पेट कुछ स्टेरिंग से छू रहा था आज ही सीट पीछे करने की कोशिश की लेकिन सीट उससे पीछे जाती नही है :) और पेट किसी के वस मे हुआ आज तक
शानदार पलों का शानदार वर्णन । जारी रखिये ।
apanapan ise hee kahte hai........
blg se jud kar accha lag raha hai.
माहौल बनाये रखिये।
अगली कड़ी की प्रतीक्षा..
बहुत सुंदर विवरण जी,
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